सुप्रीम कोर्ट का फैसला, आर्टिकल 370 पर बड़ी बेंच नहीं करेगी सुनवाई
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संविधान पीठ ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के मामले पर सुनावाई की। इस दौरान कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को बड़ी पीठ के पास भेजे जाने से इनकार कर दिया।
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आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मामले पर 23 याचिकाओं पर सुनवाई होनी है। दरअसल, याचिकाकर्ताओं ने पांच जजों के संविधान पीठ के दो अलग- अलग और विरोधाभासी फैसलों का हवाला देकर मामले क बड़ी बेंच को भेजे जाने की मांग की थी। इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 23 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।आज फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने मामले को बड़ी बेंच के पास नहीं भेजने का निर्णय किया।
क्या है आर्टिकल 370
जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ कैसा संबंध होगा, इसका मसौदा जम्मू-कश्मीर की सरकार ने ही तैयार किया था। जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने 27 मई, 1949 को कुछ बदलाव सहित आर्टिकल 306ए (अब आर्टिकल 370) को स्वीकार कर लिया। फिर 17 अक्टूबर, 1949 को यह आर्टिकल भारतीय संविधान का हिस्सा बन गया। ध्यान रहे कि संविधान को 26 नवंबर, 1949 को अंगीकृत किया गया था। 'इंस्ट्रूमेंट्स ऑफ ऐक्सेशन ऑफ जम्मू ऐंड कश्मीर टु इंडिया' की शर्तों के मुताबिक, आर्टिकल 370 में यह उल्लेख किया गया कि देश की संसद को जम्मू-कश्मीर के लिए रक्षा, विदेश मामले और संचार के सिवा अन्य किसी विषय में कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा। साथ ही, जम्मू-कश्मीर को अपना अलग संविधान बनाने की अनुमति दे दी गई।
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इन्हीं विशेष प्रावधानों के कारण भारत सरकार के बनाए कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते हैं। इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर का अपना अलग झंडा भी है। वहां सरकारी दफ्तरों में भारत के झंडे के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर का झंडा भी लगा रहता है। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को दोहरी नागरिकता भी मिलती है। वह भारत का नागरिक होने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर का भी नागरिक होता है। कुल मिलाकर कहें तो आर्टिल 370 के कारण मामला एक देश में दो रिपब्लिक जैसा हो गया है।
इस आर्टिकल के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले कुछ विशेष अधिकार
- जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य सरकार को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है। यानी, वहां राष्ट्रपति शासन नहीं, बल्कि राज्यपाल शासन लगता है।
- भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
- जम्मू - कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है, जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
- संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्व भी वहां लागू नहीं होते।
- कश्मीर में अल्पसंख्यकों को आरक्षण नहीं मिलता।
- धारा 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई जैसे महत्वपूर्ण कानून लागू नहीं होते है।
- जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
- जम्मू-कश्मीर का ध्वज अलग होता है।
- भारतीय संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य की सरकार से अनुमोदन कराना होगा।