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कोरोना वायरस: क्या भारत में लॉकडाउन पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ?

भारत में एक दिन में रिकॉर्ड कोरोना संक्रमण के मामले दर्ज किए जा रहे हैं जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा हैं.

By तारेंद्र किशोर
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कोरोना: क्या भारत में लॉकडाउन पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ?

भारत में बीते पांच दिनों से हर रोज़ संक्रमण के 75 हज़ार से अधिक नए मामले सामने आ रहे हैं. मौजूदा समय में किसी भी दूसरे देश में हर रोज़ संक्रमण इतने अधिक नए मामले सामने नहीं आ रहे हैं. रोज़ाना के नए मामलों की संख्या भारत में सबसे अधिक है.

हालांकि अब भी संक्रमण के सबसे ज़्यादा कुल मामले अमरीका में हैं और दूसरे स्थान पर ब्राज़ील है. संक्रमण के कुल मामलों के लिहाज़ से भारत तीसरे पायदान पर है. लेकिन एक दिन में सबसे ज्यादा संक्रमण के मामलों में भारत पहले स्थान पर पहुँच चुका है.

सिर्फ़ यहीं नहीं एक दिन में सबसे अधिक संक्रमण के मामले अब तक किसी भी देश में भारत के आंकड़े के बराबर नहीं पहुँचे हैं. जिस गति से भारत में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं उससे बहुत हद तक संभव है कि आने वाले दिनों में कुल संक्रमण के मामले में भी भारत पहले स्थान पर पहुँच जाए.

भारत में लॉकडाउन में छूट के साथ ही संक्रमण के मामले भी बढ़ने लगे थे.

1 जून से केंद्र सरकार ने पहली बार लॉकडाउन की पाबंदियों में छूट देने की शुरुआत की जिसे अनलॉक-1 कहा गया.

इसके बाद राज्यों में आर्थिक गतिविधियों की धीरे-धीरे शुरुआत हुई.

अनलॉक-1 के साथ ही संक्रमण के मामलों में तेज़ी से वृद्धि हुई. तब उस वक्त भी सवाल खड़ा हुआ था कि क्या लॉकडाउन से जो कुछ हासिल हुआ उस पर अनलॉक-1 ने पानी फेर दिया?

कोरोना: क्या भारत में लॉकडाउन पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ?

जब पहली बार 25 मार्च से शुरू हुए 21 दिनों के लॉकडाउन की समय सीमा समाप्त हो रही थी तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने जान और जहान दोनों में से किसी एक को चुनने की चुनौती थी.

उस दौरान केंद्र सरकार ने लॉकडाउन की समय सीमा बढ़ाने का फैसला किया था और लॉकडाउन 14 अप्रैल से बढ़ाकर 3 मई तक के लिए कर दिया था. इसके बाद भी लॉकडाउन की समय सीमा बढ़ती रही और आख़िरकार 1 जून से अनलॉक की शुरुआत हुई.

अब अनलॉक के भी तीन चरण बीत चुके हैं और चौथे चरण की शुरुआत होने जा रही है और इसी दौरान भारत में कोरोना संक्रमण के हर दिन नए रिकॉर्ड आंकड़े भी सामने आ रहे हैं.

तो क्या इन आंकड़ों का यह मतलब निकाला जाए कि भारत में लॉकडाउन पूरी तरह से असफल साबित हुआ है?

पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के डॉक्टर गिरिधर आर बाबू इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते हैं कि लॉकडाउन पूरी तरह से असफल साबित हुआ है.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "लॉकडाउन का मकसद था कि संक्रमण की रफ़्तार में कमी आए और लॉकडाउन के दौरान हम ज़रूरी तैयारियाँ कर पाएं. इन दोनों ही मकसदों में कामयाबी मिली है. ऐसा नहीं था कि लॉकडाउन की वजह से संक्रमण के मामले पूरी तरह से गायब हो जाएंगे. जब तक वैक्सीन नहीं है तब तक संक्रमण के मामले तो आएँगे ही."

कोरोना: क्या भारत में लॉकडाउन पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ?

डॉक्टर गिरिधर मानते हैं कि लॉकडाउन की असफलता स्थानीय प्रशासन के स्तर पर है. जैसे कि मुंबई और दिल्ली में लॉकडाउन के दौरान संक्रमण के मामले सामने आए.

लेकिन जेएनयू में सेंटर ऑफ़ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ की चेयरपर्सन डॉ. संघमित्रा आचार्या लॉकडाउन के कामयाब होने की बात से सहमति नहीं रखती हैं और लॉकडाउन को पूरी तरह से असफल मानती हैं.

बीबीसी से बातचीत में वो कहती हैं, "मेरी राय में लॉकडाउन ने कोई भी उद्देश्य पूरा नहीं किया है. शुरू में इतने सख़्त लॉकडाउन की जरूरत नहीं थी. इसे धीरे-धीरे करना था. शुरू के दौर में सिर्फ़ हॉटस्पॉट्स में उस स्तर की सख़्ती बरतनी चाहिए थी ना कि पूरे देश में एक साथ. ऐसा कभी भी किसी भी महामारी के वक्त नहीं देखा गया. अब जब संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं तो अनलॉक करने के सिवा कोई विकल्प नहीं दिख रहा है. पहले कहा गया कि हमें लोगों की जान बचानी है और अब उस लॉकडाउन से जो समस्या पैदा हुई तो उसके बाद कहने लगे कि लोगों के जीविकोपार्जन के बारे में भी सोचना है."

सख़्त लॉकडाउन पहले के चरण में ना करके बाद में धीरे-धीरे करना चाहिए था, इस बात को लेकर डॉ. गिरिधर आर बाबू सहमत नहीं दिखते हैं.

वो कहते हैं, "यह अब बोलना आसान है लेकिन जिस वक्त भारत में लॉकडाउन हुआ उस वक्त अमरीका और ब्राज़ील में नहीं हुआ. अब वहाँ से तुलना कर के देखिए तो भारत में इन दोनों ही देशों से कम मौतें हुई हैं. मृत्य दर कम है."

वो आगे कहते हैं, "वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर देखेंगे तो पाएँगे कि जिन देशों में एक साथ देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया है वहीं पर मौत और संक्रमण के मामले कम हैं. कई सारे देशों के अध्ययन से यही पता चल रहा है."

लेकिन मृतकों और संक्रमितों के आंकड़ों को लेकर डॉक्टर संघमित्रा आचार्या की राय अलग है.

कोरोना: क्या भारत में लॉकडाउन पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ?

वो कहती हैं, "पहले सरकार ने बढ़ते हुए मामलों के आंकड़े दिखाकर लोगों के मन में भय पैदा किया लेकिन आप अगर कोरोना वायरस के फैलने की प्रवृत्ति देखेंगे तो संक्रमण दर तो बहुत दिखेगी लेकिन मृत्यु दर बहुत कम. शुरू से सभी आंकड़े यही दिखा रहे हैं. भारत में कभी तीन फ़ीसदी से अधिक मृत्यु दर नहीं बढ़ी. इसलिए संक्रमितों की संख्या हमेशा बड़ी दिखती रही लेकिन जब सरकार को अपनी प्राथमिकता बदलने की जरूरत पड़ी तो उसने ये तथ्य दिखाने शुरू कर दिए कि रिकवरी रेट बढ़ रहे हैं और मृत्यु दर में कमी आई है जबकि सच्चाई तो यह है कि ये ट्रेंड्स तो पहले से भी थे."

वो कहती हैं कि अगर इस महामारी के इन ट्रेंड्स को पहले से ही बताया जाता रहता तो ये जो डर का माहौल पैदा हुआ, वो नहीं होता. इससे जुड़ी दूसरी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ नहीं होतीं.

वो आगे कहती हैं, "सरकार ने जिस तरह से अपनी प्राथमिकता में बदलाव लाया है, वो एक मसला है क्योंकि शुरू में आप संक्रमण के मामले बताकर डर पैदा करते रहे थे और अब जब आपको लगता है कि अर्थव्यवस्था को बचाना ज़रूरी है, जो वाकई में ज़रूरी है भी तो आप रिकवरी रेट और डेथ रेट कम होने की बात करने लगे. जबकि होना यह चाहिए था कि संक्रमण के मामलों के साथ-साथ उसकी रिकवरी रेट और डेथ रेट को भी उतनी ही प्रमुखता से बताना चाहिए था. जहाँ तक अर्थव्यवस्था की बात है तो वो इतनी जल्दी पटरी पर आती तो दिख नहीं रही है."

केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार 2020-21 वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून के बीच विकास दर में 23.9 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.

ऐसा अनुमान लगाया गया था कि कोरोना वायरस महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण भारत की जीडीपी की दर पहली तिमाही में 18 फ़ीसदी तक गिर सकती है.

वहीं, देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई का अनुमान था कि यह दर 16.5 फ़ीसदी तक गिर सकती है लेकिन ताज़ा आंकड़े चौंकाने वाले हैं.

BBC Hindi
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English summary
Coronavirus: Did the lockdown in India fail completely?
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