Gateway to Hell: क्या बंद हो जाएगा धरती पर मौजूद एकमात्र 'नर्क का दरवाजा' ?
काराकुम, 09 जनवरी। तुर्कमेनिस्तान के काराकुम रेगिस्तान में पिछले 50 साल से जल रहे 'नर्क का दरवाजा' यानी 'गेटवे टू हेल' का नाम तो आपने सुना ही होगा। अगर अभी तक इसे आपने अपनी आंखों से नहीं देखा तो जल्द ही देख लें, वरना आने वाले कुछ समय में इसका नामों निशान मिटने वाला है। जीं हां, तुर्कमेनिस्तान सरकार ने अब इस 'नर्क के द्वार' को हमेशा के लिए बंद करने का फैसला किया है। इसके पीछे की वजह आपको हैरान कर देगी।
क्या है ये 'नर्क का दरवाजा' ?
दुनियाभर में 'नर्क का दरवाजा' नाम से मशहूर 'गेटवे टू हेल' दरअसल, 229 फीट चौड़ा और 66 फीट गहरा मीथेन गैस से भरा एक गड्ढा है। यहां पिछले 50 साल से लगातार मीथेन गैस का रिसाव हो रहा है, जिसकी वजह से गड्ढे में दिन-रात लगातार आग जलती रहती है। अब इस नर्क के द्वार को बंद करने की तैयारी की जा रही है, हालांकि यह पहली बार नहीं है जब ऐसा आदेश दिया गया है। इससे पहले भी कई बार कोशिश की जा चुकी है।
अब बंद होगा 'गेटवे टू हेल'
तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्डीमुखामेदोव ने अपने अधिकारियों को आदेश दिया है कि इस गड्ढे में लगी आग को बुझाकर उसे पूरी तरह बंद कर दिया जाए। गुरबांगुली ने यह आदेश गड्ढे से निकलने वाले प्रदूषण के चलते पर्यावरण को होने वाले नुकसान का हवाला देते हुए दिया है। इस गड्ढे को गैस क्रेटर के नाम से भी जाना जाता है, जो 1971 से लगातार धधक रहा है। इस गड्ढे को पूरी तरह से बंद करने के निर्देश 2010 में भी दिए गए थे।
इस तरह बना था गड्ढा
गैस क्रेटर (नर्क का द्वार) के पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है। सोवियत रूस के वैज्ञानिकों ने यहां मौजूद गैस के बारे में जानने के लिए खुदाई शुरू की थी, लेकिन गड्ढे से मीथेन गैस के लीक होने के बाद खुदाई रोक दी गई। गैस पूरे वातावरण को दूषित कर रही थी, जिसके बाद वैज्ञानिकों ने गड्ढे में आग लगा दी। तब से ही यह आग लगातार जल रही हैं, और इसे नर्क का द्वार कहा जाने लगा। हालांकि अब यह पर्यनट स्थल बन गया है।
आस-पास के गांवों को खतरा
तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली ने अपने एक बयान में कहा कि इंसनों की गलती की वजह से हमारा पर्यावरण दूषित हो रहा है और लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। गड्ढे से निकलने वाली गैस आस-पास के गांव में रहने वाले लोगों की सेहत बिगाड़ रही है। इसके अलावा हम अपना बेशकीमती संसाधन भी खो रहे हैं। हम अगर इसी मीथेन गैस का उपयोग किसी अच्छे काम में करें तो यह उर्जा का स्त्रोत बन सकता है।
समय के साथ बड़ा होता गया गड्ढा
पहले भी इस गड्ढे की आग को बुझाने की कोशिश की गई थे लेकिन हर बार नाकामी ही मिली। गड्ढा बंद करने की सूरत में सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें कितनी भी मिट्टी भर दी जाए लेकिन गैस लीक होने से नहीं रोका जा सकता। मीथेन गैस के रिसाव से प्रदूषण और अधिक होगा। रेतीला मैदान होने की वजह से रेत के खिसकने की वजह से गड्ढे की चौड़ाई बढ़ती चली गई। हालांकि अब यह मशहूर पर्यटन स्थल बन गया है लेकिन इससे सैलानियों को भी खतरा है।
आग को बुझाएंगे कैसे?
मीथेन गैस की वजह से जल रही आग से भी बुरी और बेहोश करने वाली दुर्गंध आती है। ज्यादा देर यहां खड़े रहने से तबियत बिगड़ सकती है। साल 2018 में इस गड्ढे का नाम 'नर्क के द्वार' से बदलकर शानिंग ऑफ काराकुम कर दिया गया था, लेकिन इसे लोगों ने नर्क का द्वार ही कहा। गड्ढे से होने वाले नुकसान की भरपाई नाम बदलने से तो नहीं होगी, अब देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रपति के आदेश के बाद एक्सपर्ट इस आग को बुझाएंगे कैसे?
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