मकान पर कब्जा नहीं कर सकेंगे किरायेदार
हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि यदि मकान मालिक को मकान की आवश्यकता है तो किरायेदार को उसे खाली करना ही पड़ेगा। किरायेदार यह तय नहीं कर सकता कि जो हिस्सा मकान मालिक के पास है वह उसके रहने के लिए पर्याप्त है। अदालत ने पिछले 62 वर्ष से किराये पर रह रहे किरायेदार को मकान खाली करने का निर्देश देते हुए उक्त टिप्पणी की। न्यायमूर्ति पीके भसीन ने किरायेदार हंसराज तनेजा की याचिका खारिज कर दी।
अदालत ने तनेजा के उस तर्क को खारिज कर दिया कि मकान मालिक पुष्पा रानी के पास दो कमरे और किचन है और वह इन कमरों में सात सदस्यों के साथ रह सकती है। याची यह नहीं कह सकता कि सात लोगों के रहने के लिए कितना स्थान उचित है कितना नहीं। इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि मकान मालकिन की विधवा पुत्री और उसके दो बच्चों को मात्र इस कारण साथ रखा गया है ताकि वह सदस्यों की संख्या अधिक दिखा सके।
अदालत ने कहा यदि पुष्पा के साथ उसकी विधवा पुत्री और बच्चे रह रहे हैं तो वह उस पर आपत्ति नहीं जता सकता। इसमें मकान मालिक की कोई बदनियती नहीं है। इसके अलावा उसे कमरा रहने के लिए दिया गया था जबकि उसने बिना मकान मालिक की इजाजत उसे दुकान में तब्दील कर दिया जो कानून गलत है। अदालत ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि उसे कमरा पुष्पा के ससुर ने रहने के लिए दिया था और वह उसमें गुजारे के लिए दुकान करने का हकदार है।
दरअसल तनेजा ने भोगल में एक कमरा और किचन वर्ष 1950 में किराये पर लिया था। संपत्ति के बंटवारे में उक्त कमरा पुष्पा के पति के हिस्से में आया। पुष्पा के पति की वर्ष 1998 में मौत हो गई। इसने कमरा खाली करने के लिए तर्क रखा कि उसका पुत्र, पुत्रवधू और उनके बेटे के अलावा उनके साथ विधवा पुत्री और उसके दो बच्चे रहते है और जगह कम होने के कारण उसे यह चाहिए। अतिरिक्त रेंट कंट्रोलर ने एक अगस्त 2001 को उसके हक में फैसला दिया जिसे तनेजा ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इस फैसले तमाम लोगों को राहत मिली है जो मकान रहते हुए भी बदहाली में जिदंगी गुजार रहे हैं।