क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

आतंकवाद को मुसलमानों से जोड़ना बंद हो

By सलीम अख्तर सिद्दीकी
Google Oneindia News

Terrorists
राजनीति का स्तर इस कदर नीचे आ जाएगा, इसकी कल्पना नहीं की गयी थी। आम आदमी के बुनियादी मुद्दों को छोड़कर राजनीति किसी भी मुद्दे पर की जा सकती है। आतंकवाद जैसे गम्भीर और राष्ट्रीय समस्या पर भी राजनैतिक दल राजनीति करने से बाज नहीं आते हैं। पुणे की जर्मन बेकरी में हुए बग धमाके के बाद यही किया जा रहा है। कुतर्क दिया जा रहा है कि क्योंकि महाराष्ट्र सरकार का पूरा जोर शाहरुख खान की फिल्म 'माय इज नाम खान' को रिलीज कराने पर लगा रहा और आतंकवादियों को अपना काम करने का मौका मिल गया।

सवाल यह है कि अब तक जितने भी राज्यों में बम धमाके हुए हैं, उनकी राज्य सरकारें कब 'माय नेम इज खान' रिलीज सरीखे कामों में उलझी हुई थीं ? 26/11 से पहले तो महाराष्ट्र सरकार किसी फिल्म को रिलीज कराने में व्यस्त नहीं थी, फिर 26/11 कैसे हो गया था ? संसद पर हमले से पहले तो केन्द्र सरकार किसी फिल्म को रिलीज कराने में व्यस्त नहीं ? यह भी तो कहा जा सकता है कि यदि शिवसेना 'माय इज नेम खान' पर बेमतलब का बवंडर खड़ा नहीं करती तो महाराष्ट्र सरकार को अपनी पूरी ताकत मात्र एक फिल्म को रिलीज कराने में खर्च नहीं करनी पड़ती। क्या यह कहा जाए कि शिवसेना ने आतंकवादियों को मौका देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ? यहां यह सब लिखने का मतलब महाराष्ट्र सरकार को बरी करने का मकसद नहीं है। मकसद केवल बम धमाकों पर राजनीति करने वालों को तथ्यों से अवगत कराना मात्र है।

कई वर्गों में असंतोष व्‍याप्‍त

भारत बड़ा और विभिन्न नस्लों के लोगों का देश है। विभिन्न मांगों और समस्याओं से घिरे भारत में बहुत से वर्गों में असंतोष व्याप्त है। लेकिन इस्लामी आतंकवाद का ऐसा मिथक घड़ दिया गया है कि किसी भी आतंकवादी घटना में सिमी, अलकायदा, लश्कर, इंडियन मुजाहिदीन और आईएसआई का आंख मूंदकर हाथ मान लिया जाता है। आज तक यह बात समझ में नहीं आई कि बम धमाकों के चन्द घंटों बाद ही देश की खुफिया एजेंसियों की शक सूईं कैसे लश्कर या इंडियन मुजाहिदीन की ओर घूम जाती है ? यदि देश की खुफिया एजेंसियां इतनी ही काबिल हैं तो फिर बम धमाकों से पहले ही यह पता क्यों नहीं लगाया जाता कि आतंवादी कब और कहां आतंकवादी घटना को अंजाम दे सकते हैं।

खुफिया एजेंसियां कुछ दिनों बाद लश्कर या इंडियन मुजाहिदीन के नाम पर चन्द मुसलमानों को बम धमाकों का मास्टर माइंड बता कर बात खत्म कर देती है। लेकिन बम धमाकों के मास्टर माइंड को लेकर खुफिया एजेंसियां और राज्यों की पुलिस में मतभेद होते रहे हैं। बटला हाउस एनकाउण्टर में में मारे गए आतिफ को 2008 में हुए दिल्ली, गुजरात, जयपुर और उत्तर प्रदेश के बम धमाकों का मास्टर माइंड बताया गया था। यह भी दावा किया गया था कि आतिफ ही इंडियन मुजाहिदीन का मास्टर माइंड था। इसके विपरीत गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि अबुल बशर और सुभान कुरैशी उर्फ तौकीर इंडियन मुजाहिदीन के असली मास्टर माइंड थे और उन्होंने ही गुजरात और जयपुर में बम धमाके किए थे। लेकिन राजस्थान पुलिस अबुल बशर को मास्टर माइंड मानने को तैयार नहीं थी। उत्तर प्रदेश का दावा था कि वाराणसी सहित उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में बम धमाके बंगला देश के संगठन हुजी के मास्टर माइंड वलीउल्लाह ने कराए थे।

कौन लोग थे मालेगांव विस्‍फोट के पीछे

खुफिया एजेंसियों और राज्यों की पुलिस के परस्पर विरोधी दावों के बीच पता चला था कि 'अभिनव भारत' नाम के एक संगठन के कुछ लोग भी बम धमाके करके लोगों की जान ले रहे थे। इसमें सबसे बुरी बात यह थी कि धर्मनिरपेक्ष समझी जाने वाली फौज का पुरोहित नाम का एक कर्नल बम धमाकों की साजिश रच रहा था। यह तो अच्छा हुआ था कि मालेगांव और हैदराबाद की मक्का मस्जिद समेत अन्य स्थानों पर हुए बम धमाकों में साध्वी प्रज्ञा सिंह और कर्नल पुरोहित की संलिप्तता सामने आ गयी थी, वरना खुफिया एजेंसियां इन बम धमाकों को भी सिमी या इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठनों के खाते में डलाकर इतिश्री कर लेती। हालांकि कई शहरों में हिन्दुवादी संगठन के लोग बम बनाते समय हुए विस्फोट में मारे गए थे, लेकिन पता नहीं किसके इशारे पर इन घटनाओं पर परदा डालने की कोशिश की गयी थी। शहीद हेमंत करकरे ने जांच करके पता लगाया था कि मालेगांव समेत कई शहरों में 'अभिनव भारत' नाम के एक संगठन ने धमाके किए थे। अब पुणे के बम धमाके को 26/11 के एक साल बाद पकड़ में आए हेडली को जिम्मेदार बताने की कवायद की जा रही है। इस धमाके के पीछे भारत और पाकिस्तान के बीच 25 फरवरी को विदेश सचिव स्तर की शुरु होने वाली वार्ता प्रभावित होने की अटकलें लगाई जा रही हैं।

पढ़ें- फिर पूछें कि कौन दुश्मन है...

सवाल यह है कि जब अभी तक यही पता नहीं चला है कि पुणे बम विस्फोट में पाकिस्तान का हाथ है तो वार्ता स्थगित करने की मांग क्यों की जा रही हैं। करने की बातें भी की जा रही है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। जब भी भारत और पाकिस्तान करीब आना चाहते हैं, अक्सर इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम दिया जाता रहा है। सवाल यह है कि भारत और पाकिस्तान करीब न आने पाए, यह कौन चाहता है ? जब शिवसेना जैसे संगठन आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खिलाने की मात्र बात करने से ही हायतौबा मचाते हों, वह कैसे यह बर्दाश्त करेंगे कि भारत और पाकिस्तान बातचीत करें। यह नहीं भूलना चाहिए कि 'अभिनव भारत' के लोगों का ताल्लुक भी महाराष्ट्र से है। किसी भी बम धमाके के बाद कूदकर शक की सूई तब तक किसी की ओर घूमाने से पहले खुफिया एजेंसियों को सही तरह से जांच-पड़ताल करना बहुत जरुरी है। चन्द घंटों की जांच की बाद ही किसी की ओर शक की सूई धुमाने से खुफिया एजेंसियां की नीयत पर सवाल उठेंगे ही।

ऐसा नहीं है कि आतंकवाद की आग में मुसलमान नहीं झुलसे हैं। 18 फरवरी 2007 को समझौता एक्सप्रेस, 18 मई 2007 को हैदराबाद की मक्का मस्जिद, 8 सितम्बर 2007 को मालेगांव की एक मस्जिद, 11 अक्टूबर 2007 को अजमेर की दरगाह में हुए बम धमाकों में सौ से अधिक लोग मारे गए थे। मरने वाले सभी मुसलमान थे। बम धमाकों में बेगुनाह लोगों की जान लेने वालों की पहचान बहुत जरुरी है। लेकिन जब तक आतंकवाद जैसे गम्भीर और राष्ट्रीय समस्या को एक ही समुदाय से जोड़कर राजनीति होती रहेगी, आतंकवाद को खाद-पानी मिलता रहेगा।

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X