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करोड़ों भारतीयों की आस्था और अर्थव्यवस्था का आधार गौ माता संकट में

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राजस्थान में पिछले एक सप्ताह से चल रहे सियासी भूचाल के कारण जो खास मुद्दा मीडिया में पीछे चला गया, वह है काल के ग्रास में समाती हजारों गायों की दुर्दशा, जिनकी 'लंपी' महामारी के कारण अकाल मौत हो रही है। गायों में फैली महामारी लंपी से गायों की मौतों का सिलसिला लगभग पिछले 4 महीनों से जारी है।

Cows in crisis due to lumpy disease

एक ओर प्रदेश की सत्तारूढ कांग्रेस और विपक्षी पार्टी भाजपा लंपी पर गायों की सेवा के बहाने एक दूसरे पर राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राजधानी जयपुर की सबसे बड़ी हिंगोनिया गौशाला में सैंकड़ों गाएं मर चुकी हैं।

ऐसे में प्रदेश के सुदूर जिलों में बनी गौशालाओं की हालात की बात कौन करे। अकेले जयपुर में 2775 गाय लंपी वॉयरस से मौत की शिकार हो चुकी हैं।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लंपी से सख्ती से निपटने के निर्देश पशुपालन विभाग के अधिकारियों को दिए हैं फिर भी गायों की मौत का सिलसिला रुक नहीं पा रहा है।

धर्म अर्थ का मूल है गाय

प्रदेश भर में गोपालक गायों को बचाने की कोशिश अपने स्तर पर कर रहे हैं। वे अंग्रेजी दवाओं, आयुर्वेदिक ओषधियों और देशी उपचारों से गायों का जीवन बचाने में लगे हैं।

गो सेवा के पीछे जो भाव है, वह सनातन है। इस भाव के साथ हजारों सालों पुरानी परंपरा है, जिसमें गाय को देवताओं के समान उच्च स्थान प्राप्त है। एक पुरानी कहावत है कि भारत की पहचान गौ, गीता, गायत्री और गंगा है।

यह कम दुख की बात नहीं है कि आधुनिक भारत में चारों की सार्थकता और प्रासंगिकता पर बेतुके सवाल उठाकर उन्हें राजनीति के कुचक्र में फंसाया जाता है। यह राजनीति की मांग हैं, जिससे वोटों की खेती की जाती है।

जो लोग गायों की इतनी बड़ी संख्या में मौत पर भी राजनीति कर रहे हैं, उन्हें समझना चाहिए कि गाय भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आधार की प्रतीक है। उसके बिना न धर्म संस्कृति की चर्चा हो सकती है और न ही भारत के अर्थशास्त्र की।

वह लोगों को धर्म से जोड़ती है, वह करोड़ों लोगों की रोजी रोटी की आधार है। यही कारण रहा होगा कि परंपरा ने गाय को अवध्या (जिसे मारा नहीं जा सकता) घोषित किया। व्यासस्मृति (1/12-113) में गाय का मांस खाने वाली सभी जातियां 'अन्त्यज' कही गई हैं, जिससे लोग गाय का मांस खाने की बजाय उसका संरक्षण करे।

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शास्त्रों में अवध्य हैं किन्नर, गाय, हिरण और ऊंट

ऋग्वेद काल में गाय काटने योग्य नहीं समझी जाती थी। ऋग्वेद में गाय को देवी, निर्दोष और अदिति कहा गया है। अथर्ववेद में गाय को पवित्र माना गया है। ऐतरेयब्राह्मण (6/8) के मत से गाय, किम्पुरुष (किन्नर), गौरमृग (चकत्तेदार हरिण), गवय और उष्ट्र (गाय और ऊंट) नामक पशुओं की बलि नहीं दी जा सकती थी न ही वे खाए जा सकते थे।

गाय इतनी पवित्र है कि बहुत-से दोषों के निवारणार्थ उसके दूध, दही, घृत, मूत्र और गोबर से 'पंचगव्य' बनता है। गाय के सभी अंग पवित्र माने गए हैं। मनुस्मृति (11/79) ने भी गाय की प्रशंसा की बात की है।।

भारतीय परंपरा में तीन प्रकार के दान सर्वोत्तम कहे गए हैं - गाय, भूमि और विद्या। इन तीनों के दान को अतिदान कहा गया है। अतिदान का तात्पर्य अत्यंत महिमा संपन्न वाले दान से है। साफ है कि गोदान की परंपरा पुरातन है, जिससे किसी असहाय के परिवार के पालन पोषण की दृष्टि जुड़ी है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सोचिए कि यदि गौमाता को कष्ट हुआ तो पाप का भागी कौन है? भागवत पुराण का कथन है कि समुद्र मंथन के समय 5 दिव्य कामधेनु (नंदा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला, बहुला) गाय निकलीं।

गोपाष्टमी और वत्स-द्वादशी पर्व गौमाता की पूजन-परिक्रमा के बिना पूर्ण नहीं होते। दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोपूजन पर्व पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है। ऐसे में सवाल है कि क्या इस बार भक्त श्रद्धालु लंपी से पीडित गाय की पूजा कर अपने मन में शांति पा सकेंगे?

आस्था और अर्थव्यवस्था की धुरी गौमाता

गाय जीवन ही नहीं मृत्यु के बाद भी साथ देती है। गाय आस्था और अर्थव्यवस्था की धुरी है। तभी तो वैतरणी पार करने के लिए गोदान की प्रथा आज भी है। पुराणों में कहा गया है कि गाय की सींग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु एवं देह में सारे देवता विद्यमान हैं। अतः गाय को ग्रास देने से सभी देवी-देवताओं को भोग लग जाता है।

शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने गोहत्या पर मृत्युदंड का कानून बनाया था। सवाल ये है कि अतीत और वर्तमान में गाय से जुड़ी इतनी बातें होने के बावजूद हम गाय के दूध का कर्ज नहीं क्यों चुका पा रहे हैं?

यदि धर्म नहीं तो फिर गोधन से जुड़ी अर्थव्यवस्था को समझ कर ही उसे बचाइए। विश्व में सबसे ज्यादा 28.17 करोड़ गाय भारत में हैं। 1.39 करोड़ गायों के कारण राजस्थान दुग्ध उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। गुजरात अव्वल है।

अकेले राजस्थान में पशुओं से जुड़ी 1.20 लाख करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था है। किसी भी शहर और गांव में दुग्ध उत्पादों का बाजार हजारों करोड़ रुपए का है।

शरीर के लिए बेहद जरूरी कैल्शियम, प्रोटीन, आयोडीन और विटामिन-ए और बी-12 गाय के दूध में ही मिलते हैं। एक कप गाय के दूध में 10.8% पौटैशियम होता है। 1000 पाउंड वजन वाली गाय हर साल औसतन 10 टन खाद का उत्पादन कर सकती है। केंद्र सरकार की गोबर धन योजना-2022 के तहत गोवंश के गोबर से कंपोस्ट और बायो-गैस बनाकर कमाई संभव है।

लंपी वॉयरस के साथ सियासी संक्रमण का भी फैलाव

राजस्थान में लंपी वॉयरस के साथ सियासी संक्रमण भी तेजी से फैल रहा है। बीते दिनों एक सप्ताह के लिए चले राजस्थान विधानसभा के सत्र में लंपी पर मात्र दो विधायकों के सवाल सूचीबद्ध हुए।

विपक्षी भाजपा के हंगामे के चलते विधानसभा में केवल एक दिन लंपी रोग पर चर्चा हुई। पर इस चर्चा के मायने भी गाय की रक्षा कम और सियासी ज्यादा रहे। उस चर्चा का कोई परिणाम धरातल पर नहीं दिख पाया।

वरिष्ठ भाजपा विधायक नरपत सिंह राजवी का कहना है कि गायों की सुरक्षा के लिए गहलोत सरकार जो टीका गायों को लगा रही है, वास्तव में वह भेड़ बकरियों के लिए है। सरकारी लापरवाही से लाखों गाय मर चुकी हैं पर सरकार आंकड़े छिपाकर कम बता रही है।

उधर, प्रदेश के पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया राजवी के आरोप को नकारते हुए कहते हैं कि गहलोत सरकार गायों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। भाजपा गाय के नाम पर वोटों की राजनीति कर रही है।

सियासी दावों के बीच सच्चाई यह है कि राजनेताओं के नथुनों तक शायद ही गायों की लाश की दुर्गंध पहुंचे। इन्हें गाय कम 2023 के चुनाव ज्यादा दिख रहे हैं।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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Cows in crisis due to lumpy disease
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