'वन नेशन-वन एजुकेशन' लागू करने के लिए भाजपा प्रवक्ता ने लिखी पीएम मोदी को चिट्ठी
माननीय प्रधानमंत्री जी, इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान वर्तमान समय में लागू असमान शिक्षा प्रणाली की तरफ आकृष्ट करना चाहता हूँ। मैकाले द्वारा बनाई गई यह शिक्षा पद्धति संविधान की मूल भावना के बिलकुल विपरीत है और समतामूलक समाज के निर्माण की बजाय जातिवाद भाषावाद क्षेत्रवाद संप्रदायवाद और वर्गवाद को बढ़ाती है
संविधान के आर्टिकल 14 के अनुसार भारत के सभी नागरिक समान हैं, आर्टिकल 15 के अनुसार जाति धर्म भाषा क्षेत्र रंग-रूप लिंग और जन्मस्थान के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव नहीं किया जा सकता है तथा आर्टिकल 16 के अनुसार नौकरियों में सबको समान अवसर दिया जाएगा। आर्टिकल 17 शारीरिक और मानसिक छूआछूत को प्रतिबंधित करता है और आर्टिकल 19 प्रत्येक नागरिक को देश में कहीं भी बसने और रोजगार करने का अधिकार देता है। आर्टिकल 21A के अनुसार शिक्षा 14 वर्ष तक के सभी बच्चों का मौलिक अधिकार है। आर्टिकल 38(2) के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह समस्त प्रकार की असमानता को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाए। आर्टिकल 39 के अनुसार बच्चों के समग्र, समावेशी और संपूर्ण विकास के लिए कदम उठाना केंद्र और राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। आर्टिकल 46 के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और गरीब बच्चों के शैक्षिक और आर्थिक विकास के लिए विशेष कदम उठाना केंद्र और राज्य सरकार का कर्तव्य है। आर्टिकल 51(A) के अनुसार देश के सभी नागरिकों में भेदभाव की भावना समाप्त करना,आपसी भाईचारा मजबूत करना तथा वैज्ञानिक और तार्किक सोच विकसित करना भी केंद्र और राज्य सरकार का नैतिक कर्तव्य है लेकिन वर्तमान शिक्षा प्रणाली संविधान की उपरोक्त भावनाओं के बिलकुल विपरीत है।
वर्तमान समय में स्कूलों की 5 केटेगरी है और किताब भी 5 प्रकार की है। EWS बच्चों की किताब और सिलेबस अलग, LIG बच्चों की किताब और सिलेबस अलग, MIG बच्चों की किताब और सिलेबस अलग, HIG बच्चों की किताब और सिलेबस अलग और एलीट क्लास बच्चों की किताब और सिलेबस बिलकुल ही अलग। यदि बोर्ड के हिसाब से देखें तो CBSE की किताब और सिलेबस अलग, ICSE की किताब और सिलेबस अलग, बिहार बोर्ड की किताब और सिलेबस अलग, बंगाल बोर्ड की किताब और सिलेबस अलग, असम बोर्ड की किताब और सिलेबस अलग तथा गुजरात बोर्ड की किताब और सिलेबस सबसे अलग है, जबकि IAS, JEE, NEET, NDA, SSC, CDS, TET और CLAT सहित अधिकांश एग्जाम राष्ट्रीय स्तर पर पर होते हैं और पेपर भी एक होता है, परिणाम स्वरूप देश के सभी छात्र-छात्राओं को समान अवसर नहीं मिलता है।
इस समय देश में 5+3+2+2+3 शिक्षा व्यवस्था लागू है अर्थात 5 साल प्राइमरी, 3 साल जूनियर हाईस्कूल, 2 साल सेकंडरी, 2 साल हायर सेकंडरी और 3 साल ग्रेजुएशन। यह व्यवस्था वर्तमान परिप्रेक्ष में बिलकुल अप्रभावी और अवांछित है इसलिए इसके स्थान पर 5+5+5 शिक्षा व्यवस्था लागू करना चाहिए अर्थात 5 साल प्राइमरी, 5 साल सेकंडरी और 5 साल ग्रेजुएशन। प्राइमरी और सेकंडरी का सिलेबस पूरे देश में एक समान होना चाहिए और सभी बच्चों के लिए इसे अनिवार्य करना चाहिए। संविधान के आर्टिकल 345 और 351 की भावना के अनुसार 10वीं तक त्रिभाषा का अध्ययन सभी बच्चों के लिए अनिवार्य होना चाहिए।
जिस प्रकार पूरे देश में "एक देश-एक कर" लागू किया गया उसी प्रकार "एक देश-एक सिलेबस" भी लागू किया जा सकता है। पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम भले ही अलग-अलग हो लेकिन सिलेबस पूरे देश में एक समान किया जा सकता है। "वन नेशन वन एजुकेशन" लागू करने के लिए GST कौंसिल की तर्ज पर NET (नेशनल एजुकेशन कौंसिल) बनाया जा सकता है (HRD मिनिस्टर NEC के अध्यक्ष और सभी राज्यों के शिक्षामंत्री NEC के सदस्य) यदि पूरे देश के लिए एक शिक्षा बोर्ड नहीं बनाया जा सकता है तो केंद्रीय स्तर पर एक शिक्षा बोर्ड और राज्य स्तर पर एक शिक्षा बोर्ड बनाना चाहिए।
माननीय प्रधानमंत्री जी, "एक देश एक शिक्षा" लागू करने से संविधान के आर्टिकल 14 के अनुसार भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलेगा, आर्टिकल 15 के अनुसार जाति धर्म भाषा क्षेत्र रंग-रूप लिंग और जन्मस्थान के आधार पर चल रहा भेदभाव समाप्त होगा तथा आर्टिकल 16 के अनुसार नौकरियों में सबको समान अवसर मिलेगा। समान पाठ्यक्रम लागू करने से आर्टिकल 17 की भावना के अनुसार शारीरिक और मानसिक छूआछूत समाप्त होगा और आर्टिकल 19 के अनुसार प्रत्येक नागरिक को देश में कहीं भी बसने और रोजगार करने का समान अवसर मिलेगा। आर्टिकल 21A के अनुसार शिक्षा 14 वर्ष तक के सभी बच्चों का मौलिक अधिकार है इसलिए पढ़ने-पढ़ाने की भाषा भले ही अलग हो सिलेबस पूरे देश का एक समान होना चाहिए। "एक देश एक पाठ्यक्रम" लागू करने से आर्टिकल 38(2) की भावना के अनुसार समस्त प्रकार की असमानता को समाप्त करने में मदद मिलेगी और आर्टिकल 39 के अनुसार बच्चों का समग्र, समावेशी और संपूर्ण विकास होगा। समान शिक्षा अर्थात समान पाठ्यक्रम लागू करने से आर्टिकल 46 के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और गरीब बच्चों का शैक्षिक और आर्थिक विकास होगा तथा आर्टिकल 51(A) के अनुसार देश के सभी नागरिकों में भेदभाव की भावना समाप्त होगी,आपसी भाईचारा मजबूत होगा तथा वैज्ञानिक तार्किक और एक जैसी सोच विकसित करने में मदद मिलेगी और देश की एकता अखंडता मजबूत होगी। इसलिए आपसे विनम्रता पूर्वक आग्रह है कि समान शिक्षा अर्थात "एक देश एक शिक्षा" लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।
इस विषय पर मैं आपसे मिलकर चर्चा करना चाहता हूँ इसलिए अपना बहुमूल्य 10 मिनट समय देने की कृपा करें।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)