'भारतीय लोकतंत्र के लिए यह बात बेहद घातक'
क्या सत्तारूढ़ सरकार कार्यपालिका और विधायिका के बीच की लकीर लांघ रही है?
संसद का शीतकालीन सत्र शुक्रवार से शुरू हो रहा है और इस बार कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा किए जाने की उम्मीद है.
लेकिन सत्र शुरू होने से पहले ही यह चर्चा के केंद्र में है क्योंकि सरकार ने इस सत्र के समय को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया था.
अक्तूबर में संसदीय मामलों की कैबिनेट कमेटी ने फ़ैसला लिया था कि शीतकालीन सत्र 21 नवंबर से शुरू होगा, लेकिन बाद में इसकी तारीखों को आगे कर दिया गया.
हाल के सालों में ये पहली बार है जब शीतकालीन सत्र की तारीखों के बीच क्रिसमस की छुट्टियां होंगी. विपक्ष ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री के गृहराज्य गुजरात में विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र ऐसा किया गया था. गौरतलब है कि पिछले साल संसद का शीतकालीन सत्र 16 दिसंबर को समाप्त हो गया था.
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लकीर को लांघने की कोशिश
भाजपा पर विपक्ष आरोप लगाती है कि कई बार पार्टी ने कार्यपालिका और विधायिका के बीच में खींची लकीर को लांघने की कोशिश की है चाहे वो गुजरात चुनाव की तारीख की घोषणा के मामले में हो या राहुल गांधी को आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में नोटिस थमाने का हो.
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता भक्त चरण दास कहते हैं, "भारत के इतिहास में ये पहली बार हुआ है कि शीतकालीन सत्र को चुनाव के चलते आगे बढ़ा दिया गया है. प्रधानमंत्री के गृहराज्य में चुनाव उनके जीवन-मरण की बात बन गई और इसी कारण भाजपा ने संसद की गरिमा का हनन किया."
वो कहते हैं, "संसद की गरिमा को बनाए रखने की पहली ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री की है. हार-जीत हानि-लाभ तो होता ही रहता है."
वो मानते हैं कि भारतीय लोकतंत्र के लिए ये घातक बात है.
विपक्ष का काम है आरोप लगाना
लेकिन भाजपा का कहना है कि सरकार पहले ही इसकी सफाई दे चुकी है, "चुनाव लोकतंत्र का पर्व है और सभी मंत्रियों को अपने क्षेत्र में जाना होता है. दोनों काम एक साथ नहीं हो सकते."
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल कहते हैं कि पहले भी ऐसा हो चुका है, पहली बार नहीं है जब ऐसा किया गया है.
राहुल गांधी के चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में गोपाल कृष्ण अग्रवाल कहते हैं, "विपक्ष का काम है आरोप लगाना और वो बिना सोचे समझे आरोप लगा रहे हैं."
आचार संहिता पर राहुल, मोदी आमने सामने
लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता भक्त चरण दास कहते हैं, "राहुल गांधी के इंटरव्यू से पहले भाजपा के मोदी जी और बीजेपी के बड़े नेताओं ने इस तरह लोगों को बहकाने वाली बातें की हैं. उनके भाषण में उकसाने वाली या गालियां देने वाली बात तो थी नहीं."
वो कहते हैं कि भाजपा ने आख़िरी दम तक निर्वाचन आयोग को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है. वो कहते हैं, "जब हिमाचल प्रदेश के चुनावों के तारीखों की घोषणा हुई तो गुजरात के विधानसभा चुनावों की घोषणा साथ ही क्यों नहीं की गयी. सरकार ने अपने समय के अनुसार चुनाव करवाने के बारे में क्यों सोचा? निर्वाचन आयोग को खुली छूट क्यों नहीं दी गयी? सरकार इसे अपना हथियार बना कर क्यों काम कर रही है?"
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन मिश्रा कहते हैं कि ये बात बार-बार सामने आ रही है कि भाजपा कार्यपालिका और विधायिका के बीच में ख़ींची लकीर को लांघ रही है. वो कहते हैं कि एक तरफ भाजपा राहुल के इंटरव्यू के ख़िलाफ़ खड़ी होती है तो दूसरी तरफ वोट देने के बाद प्रधानमंत्री ने खुद ही रोड शो किया.
गुजरात चुनाव की तारीखों पर सवाल
साबरमती में वोट डालने के बाद मोदी काफ़िले के साथ वहां से रवाना हुए थे. कांग्रेस ने इस पूरे वाक़ये को चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन बताया.
गुजरात के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी बी बी स्वेन ने इस मामले में कहा कि अहमदाबाद के ज़िला निर्वाचन पदाधिकारी से इस बारे में रिपोर्ट मांगी है. लेकिन यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि वो 'काफ़िला' आचार संहिता का उल्लंघन था.
अरविंद मोहन मिश्रा कहते हैं, "राहुल को अलग-थलग करना और चुनाव की तारीख हिमाचल प्रदेश की घोषित की गई लेकिन गुजरात की नहीं. सब लोग देख रहे हैं कि इस बात की गुंजाइश रहे नतीजे साथ में निकलें."
इसके पीछे कारण यह है कि इस बीच कई सारी ऐसी योजनाएं लाई गई जो चुनाव में फायदा देतीं. दनादन ऐसी योजनाएं लाई गईं जो केंद्र की योजनाएं थी और जिनमें विदेश भी शामिल था (जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे की गुजरात यात्रा) उसी समय में कराई गई.
कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका के बीच की लकीर भूल रही सरकार
वो कहते हैं कि ये केवल कार्यपालिका या विधायिका का मुद्दा नहीं है बल्कि इसमें न्यायपालिका, चुनाव आयोग को शामिल किया गया.
अरविंद मोहन मिश्रा कहते हैं, "पहले चरण की वोटिंग से पहले राम मंदिर के मामले में सुनवाई शुरू की गई और ये सबसे बड़ा मुद्दा बन गया. ये तैयारियां बताती हैं कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच एक लकीर है लेकिन सरकार इसे भूलती जा रही है."
"हर चीज़ का इस्तेमाल चुनाव जीतने के लिए किया जा रहा है. पार्टी बस चौबीसों घंटे चुनाव जीतने के बारे में ही सोच रही है तो हम इसे केवल कार्यपालिका और विधायिका का मुद्दा ना मानें."