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क्या सात साल में ही बेअसर हो गया मोदी मैजिक ?

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नई दिल्ली, 27 सितंबर। क्या सात साल में ही मोदी मैजिक बेसर हो गया ? क्या भाजपा को अब नरेन्द्र मोदी के नाम पर जीत का भरोसा नहीं ? फिर उसने क्यों उत्तर प्रदेश में जातीय राजनीति के सामने घुटने टेक दिये ? भाजपा ने गैरयादव पिछड़ी जातियों और गैररविदास (जाटव) अनुसूचित जातियों को साधने के लिए योगी कैबिनेट का विस्तार किया।

Has pm narendra modi magic become less effective in seven years?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले 15 अगस्त को लाल किले से कहा था, मैं भाग्य पर नहीं कर्म के फल पर विश्वास करता हूं। अगर नरेन्द्र मोदी को अपने काम पर इतना भरोसा है तो फिर भाजपा जातीय राजनीति के लिए कम्प्रोमाइज क्यों कर रही है ? दो महीने पहले तक भाजपा को धमकी देने वाले नेता संजय निषाद को एमएलसी बना कर मंत्री बनाया गया। आखिर ये मजबूरी क्यों ? क्या अब मोदी-शाह की जोड़ी में पहले वाला दम-खम नहीं रह गया ?

जाति नाम केवलम

जाति नाम केवलम

योगी कैबिनेट में सात नये मंत्रियों में तीन पिछड़ा वर्ग, दो अनुसूचुत जाति और एक अनुसूचुत जाति से ताल्लुक रखते हैं। एक सवर्ण हैं। गाजीपुर की विधायक संगीता बिंद मल्लाह, विधान पार्षद धर्मवीर प्रजापति कुम्हार, बहेड़ी (बरेली) के विधायक छत्रपाल गंगवार कुर्मी समुदाय से आते हैं। इन तीन पिछड़ी जातियों की आबादी करीब 9 फीसदी है जो कि यादव के समाज (9 फीसदी) के बराबर है। अगर इनमें राजभर समुदाय के 1.32 फीसदी वोट को और जोड़ दिया जाय तो भाजपा गैरयादव पिछड़ी जातियों के दम पर जीत हासिल कर सकती है। 2014 और 2017 में भाजपा ने इसी समीकरण से प्रचंड जीत हासिल की थी। उत्तर प्रदेश में रविदास समुदाय का वोट मायावती को मिलते रहा है। इसलिए भाजपा ने अनुसूचित जाति में गैररविदास समुदाय को अपने पाले में करने की कोशिश की है। बलरामपुर के विधायक पलटू राम सोनकर (अनुसूचित जाति) समुदाय से आते हैं। मेरठ के विधायक दिनेश खटिक, खटिक समुदाय से (अनुसूचित जाति) से ताल्लुक रखते हैं। सोनभद्र के विधायक संजय गोंड अनुसचित जनजाति से आते हैं। इस तरह भाजपा ने बसपा के खेमे से अलग दलित और आदिवासी वोटरों को लुभाने की कोशिश की है। कांग्रेस से भाजपा में आये जितिन प्रसाद ब्राह्मण बिरादरी से हैं।

कम हुआ मोदी मैजिक ?

कम हुआ मोदी मैजिक ?

कोरोना महामारी ने देश की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था को झकझोर दिया है। जान-माल की हानि से मोदी सरकार की लोकप्रियता में भारी कमी आयी है। इससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी चिंतित है। गत मई में संघ की एक बैठक हुई थी। इस बैठक में विचार मंथन हुआ था कि कोरोना संकट का केन्द्र सरकार पर क्या असर पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा अमित शाह और जेपी नड्डा जैसे शीर्ष भाजपा नेता भी इस बैठक में शामिल थे। आत्मविश्लेषण में ये बात सामने आयी की कोरोना की दूसरी लहर के दौरान आमलोगों की केन्द्र सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ी है। उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले मोदी सरकार की इस छवि से नुकसान की आशंका ने भाजपा को डरा दिया है। वह संगठन को मजबूत करने के अलावा अन्य विकल्पों पर गौर करने के लिए मजबूर हो गयी है। चुनावी राजनीति में जाति ही अंतिम सत्य है। विकास तो बस बहलाने वाला मुखौटा है। मोदी सरकार की लोकप्रियता में कमी को देख कर भाजपा डैमेज कंट्रोल में जुटी है। मंत्रिमंडल विस्तार के जरिये उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण को दुरुस्त करने की कवायद, इसकी एक बानगी है।

भाजपा कॉम्प्रोमाइज की स्थिति में !

भाजपा कॉम्प्रोमाइज की स्थिति में !

उत्तर प्रदेश में भाजपा को पहले खुद पर भरोसा था। इस साल जुलाई में जब मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ था तब प्रवीण निषाद को जगह नहीं मिली थी। भाजपा सांसद प्रवीण निषाद, निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद के पुत्र हैं। जब पुत्र को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली तो संजय निषाद ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। भाजपा में आत्मविश्वास था इसलिए उसने संजय निषाद के विरोध को नजरअंदाज कर दिया था। निषाद समुदाय का दावा है कि उत्तर प्रदेश की 160 विधानसभा सीटों पर उसकी निर्णायक स्थिति है। इस बीच मोदी और योगी सरकार की जमीनी हकीकत बदलने से भाजपा स्टैंड बदलने के लिए मजबूर हो गयी।

निषाद पार्टी का दबाव

निषाद पार्टी का दबाव

निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने कुछ समय पहले ही ये धमकी दी थी कि अगर भाजपा अपनी गलती नहीं सुधारती है तो 2022 में उसे निषाद समुदाय की गहरी नाराजगी झेलनी पड़ेगी। मजबूर हो कर भाजपा ने निषाद पार्टी से चुनावी समझौता कर लिया। संजय निषाद को आनन-फानन में एमएलसी बना कर मंत्री बनाया गया। संजय निषाद ने भाजपा पर दबाव बनाने के लिए अभी ही अपनी पसंद की 70 विधानसभा सीटों की सूची भी सौंप दी है। जाहिर भाजपा अब कॉम्प्रोमाइज की स्थिति में पहुंच गयी है। 2017 में निषाद पार्टी ने पीस पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था। तब उसे केवल सीट मिली थी। इस बार भाजपा, निषाद पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही। अब भाजपा के साथ उसके पिछले साझीदार ओमप्रकाश राजभर नहीं हैं। क्या संजय निषाद इसकी भरपायी कर पाएंगे ? क्या भाजपा का 'कास्ट कार्ड' उसे जीत दिला पाएगा ?

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English summary
Has pm narendra modi magic become less effective in seven years?
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