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दशहरा: महाराष्ट्र के संगोला गांव में रावण दहन नहीं, 200 वर्षों से इस वजह से होती है उसकी पूजा

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नई दिल्ली- दशहरे के दिन पूरे देश के लोग और देश से बाहर रहने वाले भारतीय बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा मनाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। शाम को रावन वध के लिए बड़े-बड़े कार्यक्रमों का आयोजन होता है। प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति तक के हाथों से रावण के पुतले में धनुष चलवाकर आग लगाई जाती है। लेकिन, महाराष्ट्र के अकोला जिले में संगोला गांव में लोग पिछले 200 वर्षों से अलग ही परंपरा निभा रहे हैं। वे रावण को अति-श्रेष्ठ और ज्ञानी मानकर उसकी पूजा करते हैं और वहां दशहरे के दिन भी रावण का दहन नहीं किया जाता, बल्कि लोग उसकी पूजा ही करते हैं।

यहां रावण वध नहीं, पूजा की परंपरा है

यहां रावण वध नहीं, पूजा की परंपरा है

हम में से ज्यादातर लोगों के लिए दशहरा रावण पर भगवान राम की जीत का उल्लास मनाने का पर्व है। इसे हम बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाते हैं और इस पर्व का संदेश भी यही है। लेकिन, महाराष्ट्र के अकोला जिले में एक छोटा सा गांव संगोला है, जहां के लोग उतने ही हर्ष और उल्लास के साथ राक्षस राज रावण की पूजा-अर्चना करते हैं। संगोला गांव के लोगों के मुताबिक वे पिछले 200 साल से इसी परंपरा का पालन करते आ रहे हैं। संगोला में रावण की काले पत्थर वाली एक विशालकाय प्रतिमा स्थापित है, जिसमें उसे दशावतार रूप में दिखाया गया है, जिसके 10 सिर और 20 भुजाएं हैं।
(तस्वीर प्रतीकात्मक)

क्यों करते हैं रावण की पूजा?

क्यों करते हैं रावण की पूजा?

गांव के बुजुर्ग रावण के चरित्र को भयानक तो माते हैं, लेकिन उसे बहुत बड़ा विद्वान भी मानते हैं। एक स्थानीय पुजारी हरीभाऊ लखंडे ने कहा कि उनके गांव में रावण की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि वह बहुत बुद्धिमान था और उसमें तवस्वियों वाले गुण थे। लखंडे के मुताबिक उनका परिवार कई पीढ़ियों से इस गांव में रावण की पूजा करता आ रहा है। उनका दावा है कि, "महान सम्राट रावण के चलते ही गांव में खुशहाली, शांति और संतोष है।"

भगवान राम में विश्वास है, लेकिन रावण में भी है आस्था

भगवान राम में विश्वास है, लेकिन रावण में भी है आस्था

संगोला के लोग भगवान राम को मानते हैं, वे रावण के चरित्र से डरते हैं, लेकिन उसमें आस्था भी रखते हैं। गांव के दनायनेस्वर धाकरे ने रावण में आस्था के बारे में बताया कि, "हम मानते हैं कि रावण ने राजनीतिक कारणों से सीता का अपहण किया और उनकी पवित्रता सुरक्षित रखी। हम भगवान राम में विश्वास करते हैं, लेकिन हमें रावण में भी आस्था है, इसलिए हम उसके पुतलों का दहन नहीं करते।" वे आगे बताते हैं कि,"रावण से सभी डरते हैं, लेकिन गांव में सभी लोग उसकी पूजा भी करते हैं। दशहरे के मौके पर देशभर से लोग उनके गांव में रावण की मूर्ति देखने आते हैं और कुछ तो उसकी प्रार्थना भी करते हैं।"

शास्त्रों में भी रावण को बताया जा चुका है असाधारण

शास्त्रों में भी रावण को बताया जा चुका है असाधारण

शास्त्रों में भी रावण के गुणों का खूब जिक्र हुआ है। यहां तक कहा जाता है कि जब रावण भगवान राम के बाण से घायल होकर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा था, तब भगवान ने लक्ष्मण को उसके पास उसके गुणों को जानने के लिए भेजा था। वाल्मिकी ने भी लिखा है कि रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्‍त था और उन्‍हें प्रसन्‍न करने के लिए उसने अपने सिर की बलि दे दी थी। उसने 10 बार ऐसा किया और फिर भगवान शिव ने प्रसन्‍न होकर उसके 10 सिरों को लौटा दिया। वाल्मिकी की रामायण में जहां रावण को एक असाधारण दानव बताया है, वहीं गोस्‍वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में उसे बड़ा शिवभक्त का दर्जा दिया है।

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English summary
Dusshera: Sangola village in Maharashtra has a tradition of worshiping Ravana
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