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कोरोना वायरसः अपने डॉक्टरों को संक्रमण से कैसे बचाएगा भारत?

दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत भी अपने डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ़ को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए मास्क जैसे ज़रूरी सुरक्षा उपकरण (पीपीई) हासिल करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा है लेकिन दूसरी तरफ़ वक़्त उसके हाथ से तेज़ी से फिसल भी रहा है. भारत में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामलों की संख्या 12,000 के पार हो गई है और इसकी वजह से

By विकास पांडे
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भारत में मेडिकल स्टाफ़
Reuters
भारत में मेडिकल स्टाफ़

दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत भी अपने डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ़ को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए मास्क जैसे ज़रूरी सुरक्षा उपकरण (पीपीई) हासिल करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा है लेकिन दूसरी तरफ़ वक़्त उसके हाथ से तेज़ी से फिसल भी रहा है.

भारत में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामलों की संख्या 12,000 के पार हो गई है और इसकी वजह से 400 से ज़्यादा लोगों की जान गई है.

कोरोना संक्रमण के पहले सौ मामले बड़े शहरों से रिपोर्ट हुए थे लेकिन अब इसका दायरा छोटे शहरों तक पहुंच गया है.

यही वजह है कि देश भर में काम कर रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स (पीपीई) की मांग तेज़ी से बढ़ी है और राज्य सरकारें इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष करती हुई दिख रही हैं.

कुछ मामलों में डॉक्टरों को मजबूर होकर बरसाती (रेन कोट) और बाइक की हैलमेट पहने हुए भी देखा गया है.

जवानों से तुलना...

कोरोना का टेस्ट करते डॉक्टर
Reuters
कोरोना का टेस्ट करते डॉक्टर

लखनऊ के एक सरकारी अस्पताल की एक महिला डॉक्टर ने बीबीसी से कहा, "हमें पीपीई किट्स उतनी जल्दी नहीं मिल पा रहे हैं, जितनी तेज़ी से ये होना चाहिए था."

वो कहती हैं, "ये एक जंग की तरह है और हमारी तुलना जवानों से की जा रही है. लेकिन आप अपने सिपाहियों को बिना असलहों के मैदान-ए-जंग में नहीं भेज देते हैं."

दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में कई डॉक्टर और दूसरे मेडिकल स्टाफ कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं. वे जिन अस्पतालों में काम कर रहे थे, उन्हें बंद कर दिया गया है.

कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जारी जंग में ये डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी मोर्चे पर सबसे आगे हैं लेकिन अभी जो हालात हैं, उसकी वजह से इनकी सुरक्षा की गंभीर चिंता खड़ी हो गई है.

ऐसा नहीं है कि पीपीई किट्स की ज़रूरत केवल स्वास्थ्यकर्मियों को है.

पुलिस वालों पर ख़तरा

दिल्ली पुलिस
Getty Images
दिल्ली पुलिस

स्वास्थ्यकर्मियों की मदद कर रहे पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के लोग, क्वारंटीन सेंटर की देखरेख कर रहे लोगों को भी पीपीई किट्स की ज़रूरत है.

उत्तर प्रदेश पुलिस के एक सीनियर अधिकारी ने बीबीसी से कहा कि पुलिसकर्मियों पर कोरोना वायरस के संक्रमण का ख़तरा सबसे ज़्यादा है.

उन्होंने बताया, "हाल में कोरोना वायरस से संक्रमित एक शख़्स क्वारंटीन सेंटर से भाग गया. पुलिस को उसे पकड़कर वापस लाना पड़ा. इसलिए हमें अपने बचाव की ज़रूरत है."

हालांकि इस पुलिस अधिकारी का कहना था कि उन्हें पीपीई किट्स मुहैया कराए गए हैं पर आने वाले समय में उन्हें और ज़्यादा किट्स की ज़रूरत होगी.

कई मुख्यमंत्रियों ने भी ये बात मानी है कि स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमण से बचाने के लिए ज़्यादा पीपीई किट्स की ज़रूरत है.

पीपीई किट्स का इंतज़ाम

जांच करते डॉक्टर
Reuters
जांच करते डॉक्टर

हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, "हमें पीपीई किट्स की तत्काल ज़रूरत है और हमने इसके बारे में केंद्र सरकार को लिखा भी है. मैं नहीं चाहता कि हमारे डॉक्टर और नर्स बिना सुरक्षा उपकरणों के काम पर जाएं."

भारत सरकार की कंपनी एचएलएल लाइफ़केयर लिमिटेड को पीपीई किट्स का इंतज़ाम करने के लिए कहा गया है.

कंपनी के मुताबिक़ भारत को इस समय कम से कम दस लाख पीपीई किट्स की ज़रूरत है. इसके साथ ही चार करोड़ N95 मास्क, दो करोड़ सर्जिकल मास्क और दस लाख लीटर हैंड सैनिटाइज़र की ज़रूरत है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने नौ अप्रैल को कहा था कि एक करोड़ 70 लाख पीपीई किट्स के ऑर्डर जारी कर दिए गए हैं. एचएलएल लाइफ़केयर लिमिटेड के अपने अनुमान से ये आंकड़ें कहीं ज़्यादा हैं.

मंत्रालय ने कहा है कि उन्होंने पीपीई किट्स के निर्माण के लिए 20 देसी मैन्युफैक्चरर्स को इसकी मंज़ूरी दी है.

छोटे शहरों में कोरोना संक्रमण

लेकिन अभी इस बारे में तस्वीर साफ़ नहीं है कि ये कंपनियां पीपीई किट्स की मांग पूरी करने में कितना वक़्त लेंगी. 30 मार्च को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मंत्रालय ने बताया था कि पीपीई किट्स की आपूर्ति करने वाले रोज़ाना 15 हज़ार किट्स के उत्पादन में सक्षम थे.

सरकार की तरफ़ से ये भी जानकारी दी गई थी कि सिंगापुर और चीन जैसे देशों में विदेशी कंपनियों को भी पीपीई किट्स की सप्लाई के ऑर्डर दिए गए हैं. कुछ पीपीई किट्स सरकार को डोनेशन (दान) के रूप में भी मिले हैं.

लेकिन डर इस बात का है कि अगर छोटे शहरों में कोरोना संक्रमण तेज़ी से फैला तो पीपीई किट्स की ये सप्लाई नाकाफी साबित हो सकती है.

पीपीई किट्स की मांग और आपूर्ति के अंतर को कम करने के इरादे से कुछ छोटी कंपनियां और स्वयं सहायता समूह मदद के लिए आगे आए हैं. लेकिन इनमें से ज़्यादातर मास्क और 'फेस शील्ड' जैसी चीज़ें बना रहे हैं.

फेस शील्ड का आइडिया

डिजाइनर्स को प्लेटफ़ॉर्म देने वाली फर्म 'मेकर्स असाइलम' कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जारी जंग में मोर्चे पर सबसे आगे काम कर रहे लोगों के लिए 'फेस शील्ड' का आइडिया लेकर सामने आया है.

'मेकर्स असाइलम' की मैनेजिंग पार्टनर ऋचा श्रीवास्तव बताती हैं, "हम सामान्यतः डिजाइनर्स को औज़ार और जगह मुहैया कराते हैं. लेकिन हम अब मैन्युफैक्चरिंग में आ गए हैं क्योंकि देश को इसकी ज़रूरत थी. 'फेस शील्ड' लोगों को बार-बार अपना चेहरा छूने से रोकेगा. हमने देश भर में ऐसे 12 लैब शुरू किए हैं और अभी तक एक लाख 'फेस शील्ड' बना चुके हैं."

महिलाओं के नेतृत्व में चलने वाले कुछ समूहों ने केरल और कश्मीर जैसी जगहों पर कपड़ों से मास्क बनाने का काम शुरू किया है.

लेकिन भारत में मेडिकल ग्रेड वाले पीपीई किट्स के उत्पादन को जल्द तेज़ करने की ज़रूरत है.

प्रोडक्शन के लिए गाइडलाइंस

पीपीई किट की सिलाई
EPA
पीपीई किट की सिलाई

पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट अनंत भान की राय में सरकार को इस बारे में बिना देरी किए फ़ैसला लेना चाहिए.

वे कहते हैं, हमें जनवरी में ही मालूम था कि महामारी आने वाली थी और हमें इन चीज़ों को इकट्ठा करने का काम शुरू कर देना चाहिए था.

सरकार ने पीपीई किट के प्रोडक्शन के लिए 23 मार्च को गाइडलाइंस जारी की. अनंत भान कहते हैं, "मैन्युफैक्चरर्स को ये गाइडलाइंस बहुत देर से मिली."

"उन्हें कच्चा माल जुटाना पड़ता है, प्रोडक्शन लाइन एडजस्ट करनी पड़ती है ताकि पीपीई किट के लिए ज़रूरी गाइडलाइंस का पालन किया जा सके और इन सब चीज़ों में वक़्त लगता है."

विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ दूसरे क्षेत्र भी हैं, जहां से सरकार मांग की आपूर्ति कर सकती है.

क्वॉलिटी का सवाल

पीपीई किटों की सिलाई
EPA
पीपीई किटों की सिलाई

एसोसिएशन ऑफ़ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के राजीव नाथ का कहना है कि सरकार को कच्चा माल जल्द ही आयात करना चाहिए ताकि ज़्यादा मैन्युफैक्चरर्स इस काम में जुट सकें.

"रेडीमेट कपड़े और सेना की वर्दी बनाने वाली कंपनियों को इस काम में लगाया जाना चाहिए क्योंकि पीपीई किट्स के प्रोडक्शन के लिए ज़रूरी रूपरेखा हमारे पास मौजूद है."

लेकिन अनंत भान का मानना है कि ये बहुत आसान नहीं है.

वे कहते हैं, "ये सुनने में अच्छा लगता है कि रेडीमेड कपड़े बनाने वाली कंपनियां मदद के लिए आगे आ रही हैं लेकिन पीपीई किट्स के निर्माण के लिए ख़ास तरह की काबिलियत और अनुभव दोनों की ही ज़रूरत पड़ती है."

अनंत भान गुणवत्ता का सवाल भी उठाते हैं क्योंकि ख़राब पीपीई किट जैसी चीज़ के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है.

उन्होंने बताया, "ये विषाणु संक्रमण के लिहाज से बेहद ख़तरनाक़ है और डिफेंस की मेडिकल टीमों के पास अच्छी क्वॉलिटी के पीपीई किट्स हैं."

और भी चिंताएं हैं...

जांच करते डॉक्टर
Reuters
जांच करते डॉक्टर

लेकिन गुणवत्ता ही एकमात्र समस्या नहीं है. भारत में इस समय लॉकडाउन लागू कर दिया गया है. आयातकों का कहना है कि काम करने वाले स्टाफ़ और कच्चा माल जुटाना दोनों ही बड़ी चुनौती है.

अनंत भान कहते हैं कि ऐसी चिंताएं वाजिब हैं.

वे कहते हैं, "पीपीई किट्स के उत्पादन को आपातकालीन ज़रूरत के तौर पर लिया जाना चाहिए. सरकार की पूरी मशीनरी इसमें लगा दी जानी चाहिए. फ़ैक्ट्रियों और उनमें काम करने वाले लोगों का पास दिए जाने चाहिए ताकि वे आसानी से आ-जा सकें."

देश के दूरदराज़ के इलाक़ों में पीपीई किट्स की आपूर्ति अलग से एक चुनौती है. अनंत भान कहते हैं कि पीपीई किट बनाने का कोई मतलब नहीं होगा अगर हम उन्हें सबसे ज़रूरतमंद लोगों को पहुंचा न सकें.

"ये अच्छी बात है कि हम अपने डॉक्टरों की तुलना सैनिकों से करते हैं. लेकिन उन्हें बिना पूरे सुरक्षा किट के साथ ड्यूटी पर जाने का जोखिम उठाने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए."

BBC Hindi
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English summary
Coronavirus: How will India protect its doctors from infection?
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