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नीतीश कुमार की सुबह स्पीकर से तक़रार, शाम को गवर्नर से मुलाक़ात, आख़िर माजरा क्या है?

बीजेपी के साथ नीतीश कुमार बिहार में गठबंधन सरकार चला रहे हैं. लेकिन रह-रह कर बीजेपी और जेडीयू में खटपट की ख़बरें आती रहती हैं. सोमवार को विधानसभा में वो स्पीकर विजय कुमार सिन्हा पर जम कर बरसे.

By BBC News हिन्दी
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बिहार विधानसभा में सोमवार को नीतीश कुमार का जो रूप जनता ने देखा, वो अब से पहले कई बार लोगों ने देखा है. पिछले दो साल में कभी वो सदन में विपक्ष के नेता पर नाराज़ होते दिखे तो कभी पत्रकारों पर, तो कभी चुनावी रैलियों में जनता पर.

लेकिन सोमवार को जो हुआ वो कई मायनों में अलग था. इस बार उनकी नाराज़गी अपने ही पक्ष के साथी नेताओं से थी.

सवाल पूछने वाले बीजेपी के विधायक थे और जिनको नीतीश कुमार संविधान के हिसाब से सदन चलाने की नसीहत दे रहे थे, वो स्पीकर, बीजेपी के ही नेता हैं. पिछली सरकार में उनके कैबिनेट में मंत्री भी रहे हैं. बिहार में मौजूदा सरकार जेडीयू और बीजेपी गठबंधन की है.

नीतीश कुमार से सोमवार को हुई नोंकझोंक के बाद स्पीकर विजय कुमार सिन्हा मंगलवार को सदन में नहीं आए. वहीं राष्ट्रीय जनता दल ने मुख्यमंत्री द्वारा स्पीकर के अपमान के ख़िलाफ़ काली पट्टी बांध कर कर मंगलवार को विरोध प्रदर्शन भी किया.

https://twitter.com/sshaktisinghydv/status/1503416983710486530

गठबंधन में सब ठीक है?

जेडीयू नेता केसी त्यागी ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में कहा, "ये पूरा मामला कोर्ट में चल रहा है, विशेषाधिकार कमेटी को मामला दे दिया गया, फिर सदन में इस पर बहस नहीं होनी चाहिए. बात बस इतनी है.

जेडीयू और बीजेपी में कोई तकरार नहीं है. रिश्ते सौहार्दपूर्ण हैं. ये संवाद मुख्यमंत्री और स्पीकर के बीच का था. इसे जेडीयू और बीजेपी के बीच जोड़ कर और तोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए."

सुबह बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री और स्पीकर के बीच तकरार की ये तस्वीर दोपहर तक सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. शाम होते होते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजभवन में राज्यपाल से मिलने पहुंचे.

हालांकि सीएम ऑफिस की तरफ़ से इसे शिष्टाचार भेंट बताया गया, लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन में तकरार की अटकलों को इसी मुलाकात से हवा भी मिली.

बिहार की राजनीति पर क़रीब से नज़र रखने वाले जानकार इस घटना को नीतीश कुमार की राजनीतिक असहजता से जोड़ कर देख रहे हैं.

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अपना स्पीकर न बनवा पाने की मज़बूरी

पीटीआई के वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, "जिस अंदाज़ में मुख्यमंत्री ने स्पीकर से बात की, वो निश्चित तौर पर हैरान करने वाला था. बुनियादी तौर पर नीतीश कुमार को खीझ तो अपने गठबंधन के साथी बीजेपी को लेकर ही है. स्पीकर भी बीजेपी के ही हैं."

वो आगे कहते हैं, "ये पहली बार है जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बने लेकिन अपनी पार्टी का स्पीकर नहीं बनवा पाए. इससे पहले बीजेपी के साथ गठबंधन में नीतीश सीएम थे, तो उदय नारायण चौधरी दो टर्म के लिए स्पीकर बने. जब नीतीश कुमार आरजेडी के साथ सत्ता में थे तो विजय कुमार चौधरी को वो स्पीकर बनवाने में कामयाब रहे. लेकिन इस बार दोनों डिप्टी सीएम भी बीजेपी के हैं और स्पीकर भी. गठबंधन में किसी तरह की दिक़्क़त के समय स्पीकर सबसे अहम व्यक्ति हो जाता है."

नचिकेता कहते हैं, ''सीएम असहाय नज़र आते हैं. इस बार की उनकी खीझ में इस बात की झलक भी देखने को मिली. ''

बीजेपी उनकी इस मजबूरी को समझती भी है और रह-रह कर समय-समय पर परोक्ष रूप से अहसास भी कराती है.

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अफ़सरशाही का दबदबा

जानकारों का मानना है कि सत्तारूढ़ गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा, उसकी दूसरी वजह है, जेडीयू राज में अफसरशाही का दबदबा. ऐसी आवाज़ें रह-रह कर आती रही हैं कि बिहार में अफसरशाही की ज्यादा चलती है और नेताओं की कम सुनी जाती है. इसके आरोप नीतीश कुमार पर लंबे समय से लग रहे हैं.

बीजेपी के साथ साथ विपक्ष के नेता भी उन पर इस तरह के आरोप लगाते हैं.

लखीसराय मामले में भी उन पर अफसरशाही को बचाने के ही आरोप लग रहे हैं.

लखीसराय में इस साल सरस्वती पूजा के दौरान गई जगहों पर ऑर्केस्ट्रा का आयोजन किया गया था, जिसमें नाच-गाना जम कर हुआ. आयोजन का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ. पूजा आयोजन के दौरान कोरोना गाइडलाइन्स का उल्लंघन हुआ.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ कई लोगों ने शराबबंदी क़ानून का उल्लंघन किया, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें निषेधाज्ञा क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया.

स्पीकर विजय कुमार सिन्हा लखीसराय से विधायक हैं.

कई मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ स्पीकर सिन्हा ने इस मामले में नाखुशी जाहिर की थी. आरोप लगे कि कई लोगों को ग़लत तरह से गिरफ़्तार किया गया है.

इस मामले में सदन की विशेषाधिकार समिति ने पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि वो लखीसराय में एक डिप्टी एसपी और एसएचओ की ओर से स्पीकर से किए गए कथित दुर्व्यवहार की जांच कराएं.

विधानसभा के इस सत्र में एक बार नहीं, कई बार बीजेपी ने अलग-अलग तरीके से इस मामले को उठाया. इसका मक़सद सरकार को केवल ये बताना था कि इलाके के दारोगा तक चुने हुए प्रतिनिधियों की बात नहीं सुन रहे.

सोमवार को इसी मामला को दरभंगा के बीजेपी विधायक संजय सरावगी ने ये कहते हुए उठाया कि लखीसराय में क़ानून-व्यवस्था की हालत ठीक नहीं है. पुलिस की छवि ख़राब हो रही है.

जवाब में बिहार सरकार के मंत्री बिजेंद्र प्रताप सिंह ने बताया, "महोदय लगातार पुलिस कार्रवाई कर रही है."

विधायक सरावगी ने दोबारा सवाल उठाया और स्पीकर से कहा, "आप हमारे कस्टोडियन हैं. आप ख़ुद जान रहे हैं कि निर्दोष को पकड़ लिया गया है. इसलिए सरकार को समयबद्ध बताना चाहिए."

इसके बाद स्पीकर सिन्हा ने मंत्री से कहा, "इस मामले को लेकर सदन में कई बार हंगामा हुआ है. परसों इस पर पूरी डिटेल जानकारी लेकर रिपोर्ट दीजिए."

बस फिर क्या था, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ग़ुस्सा आया. उन्होंने स्पीकर को ही संविधान के तहत सदन चलाने की नसीहत दे डाली.

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नरेंद्र मोदी के साथ नीतीश कुमार
Getty Images
नरेंद्र मोदी के साथ नीतीश कुमार

गठबंधन मज़बूती या मजबूरी

नीतीश कुमार, बीजेपी के साथ गठबंधन में कम सीटों के साथ मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री बन कर जब उन्होंने 'बिग ब्रदर' की भूमिका स्वीकार की थी तब भी कई राजनीतिक विश्लेषकों को इस पर आश्चर्य हुआ था.

समय-समय पर बीजेपी के नेता, नीतीश कुमार को इस बात का अहसास कराते रहते हैं कि उनकी सीटें बीजेपी से कम है.

विधानसभा में सोमवार को जो कुछ हुआ उसे जानकार वैसी ही कोशिश करार दे रहे हैं.

इसके अलावा, भी कई दूसरे मौक़े पर बीजेपी के नेता सीएम की धैर्य की परीक्षा लेते रहे हैं.

यूपी में जीत पर बिहार विधानसभा में जय श्री राम के नारे लगे. यूपी की तर्ज पर कश्मीर फाइल्स फ़िल्म को भी टैक्स फ्री करने की माँग बीजेपी विधायक ने उठाई. नीतीश कुमार इन सब बातों से थोड़ा असहज ज़रूर होते हैं.

हालांकि नीतीश भी मौका देखते ही बीजेपी से इतर राय रखने में संकोच नहीं करते. वो बीजेपी को समय समय पर ये बताते रहते हैं कि जेडीयू के बिना बीजेपी बिहार में सत्ता में नहीं रह सकती.

पिछले साल जुलाई में उत्तर प्रदेश के प्रस्तावित जनसंख्या क़ानून के विरोध में नीतीश कुमार ने खुल कर बयान दिया, फिर जातिगत जनगणना पर भी बीजेपी से इतर लाइन ली.

ओम प्रकाश चौटाला से पिछले साल अगस्त में मुलाक़ात की, तब तीसरे मोर्चे में जाने की अटकलें तेज़ हो गई. पेगासस जासूसी मामले में उन्होंने जाँच की भी माँग की जिसके बाद उनपर गठबंधन राजधर्म के पालन नहीं करने का आरोप लगा.

लेकिन विधानसभा में सोमवार को जो कुछ हुआ, उससे गठबंधन की परेशानी अब उनके चेहरे पर साफ़ दिख रही है.

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गठबंधन में किसके पास क्या विकल्प हैं?

कई जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार के पास कोई विकल्प नहीं है. जिनमें से एक नचिकेता नारायण भी हैं.

वो कहते हैं, "आरजेडी विपक्ष में रहते हुए भी अब काफ़ी ताक़तवर हो गई है. आरजेडी के साथ गठबंधन में कम सीटों के साथ नीतीश को बीजेपी गठबंधन वाला ट्रीटमेंट नहीं मिलेगा. इतना ही नहीं, जिस पार्टी की सीटें कम होती हैं, उसमें टूट की संभावनाएं ज़्यादा बढ़ जाती है.''

नीतीश के पास 43 विधायक है. पार्टी में किसी तरह की टूट के लिए 30 विधायक ही काफ़ी होंगे. नीतीश जज़्बाती नेता नहीं है. वो ये सारे गुणा-भाग जानते हैं. जब पिछली बार नीतीश बीजेपी से अलग होकर आरजेडी के पास गए थे तो उनके पास 100 से ज़्यादा विधायक थे. लेकिन आज की स्थिति में वो ऐसा क़दम उठाएंगे तो पार्टी टूट सकती है."

वहीं ऐसे भी जानकार हैं, जो इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखते . उनमें से एक हैं जानकार वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी. वो मानते हैं कि बीजेपी के पास विकल्प नहीं है.

बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, " इस विधानसभा सत्र में लगभग हर दिन बीजेपी किसी ना किसी तरह से इस मुद्दे को उठा ही रही है. एक ना एक दिन ये होना ही था. सोमवार को आख़िरकार सीएम ने बोल ही दिया. ''

''स्पीकर लखीसराय की घटना को साख का सवाल बना बैठे हैं और सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. जबकि सरकार एनडीए गठबंधन की है. गठबंधन धर्म ऐसा करने की इज़ाज़त नहीं देता. नीतीश की नाराज़गी स्पीकर से थी, ना कि बीजेपी से."

कन्हैया आगे कहते हैं, "बीजेपी नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कर सकती. बीजेपी को बिहार की सत्ता में रहने के लिए नीतीश के साथ की ज़रूरत है. यही वजह है कि मुकेश साहनी लगातार बीजेपी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए हैं, बावजूद इसके नीतीश के मंत्रिमंडल का वो हिस्सा हैं. टट

''नीतीश कुमार उनको सरकार से नहीं निकाल रहे और बीजेपी ऐसा करने को उनको मजबूर भी नहीं कर पा रही है. ''

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English summary
cm nitish kumar angry over assembly speaker meet to governor
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