जगन मोहन रेड्डी ने लूट ली महफिल, महामारी से लड़ने में सबका साथ जरूरी
नई दिल्ली, 8 मई। वाह जगन जी, वाह ! लाख टके बात कही है। "यह समय किसी पर उंगली उठाने का नहीं बल्कि कोरोना के खिलाफ कारगर लड़ाई के लिए देश के प्रधानमंत्री के साथ खड़ा होने का है।"
जगनमोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश से मुख्यमंत्री हैं। वे वाइएसआर कांग्रेस पार्टी के नेता हैं और भाजपा के खिलाफ राजनीति करते हैं। लेकिन राष्ट्रीय विपदा के समय उन्होंने जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का समर्थन किया है वह काबिलेतारीफ है। अभी मौत रोज सैकड़ों लोगों को निवाला बना रही है। यह वक्त कोरोना से लड़ने का है, आपस में लड़ने का नहीं। इसके बाद भी राज्य बनाम केन्द्र की लड़ाई जारी है। एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए नकरात्मक राजनीति चरम पर है। ऐसे में जगन मोहन रेड्डी की यह उदारवादी सोच रेगिस्तान में पानी के सोते की तरह है। यही पॉलिटिक्स तो चाहता है इंडिया।
आपस में नहीं बल्कि कोरोना से लड़िये
6 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना की भयावह स्थिति के बीच आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और झारखंड के मुख्यमंत्रियों से बात की थी। उन्होंने राज्य सरकारों से कोरोना की स्थिति की जानकारी ली थी। इस बातचीत के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नरेन्द्र मोदी की खिल्ली उड़ाने के लिए एक ट्वीट किया- "आज आदरणीय प्रधानमंत्री ने फोन किया। उन्होंने सिर्फ अपने मन की बात की। बेहतर होता यदि वे काम की बात करते और काम की बात सुनते।" आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी को ये बात पसंद नहीं आयी। इसके जवाब में उन्होंने हेमंत सोरेन को समझाने के ख्याल से ट्वीट किया- प्रिय हेमंत सोरेन, मैं आपका बहुत सम्मान करता हूं। लेकिन एक भाई के रूप में अनुरोध करता हूं। हमारे बीच चाहे जितने भी मतभेद क्यों न हों उनका इस स्तर की राजनीति में कोई महत्व नहीं है, क्योंकि इससे हमारा देश केवल कमजोर ही होगा। राष्ट्रीय आपदा का सामना कोई एक सरकार नहीं कर सकती। यह सबके सहयोग और समर्थन से ही संभव है। अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव सरीखे नेताओं के सामने जगन मोहन रेड्डी ने एक नयी लकीर खींच दी है।
जब देश के लिए एक हो गया था पूरा विपक्ष
1971 में अमेरिका की चेतावनी के बाद भी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय फौज भेज कर बांग्लादेश को स्वतंत्र कराने की लड़ाई लड़ी थी। 16 दिस्मबर 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हरा कर बांग्लादेश को आजाद करा दिया था। इसके बाद दुनिया भारत की ताकत का लोहा मानने लगी। अमेरिका को चुनौती देकर भारत ने यह कामयाबी हासिल की थी। इंदिरा गांधी के साहस और सटिक फैसले से भारत के सभी विपक्षी दल अभिभूत हो गये। इंदिरा गांधी के कट्टर विरोधी मोरारजी देसाई और जनसंघ के पिताम्बर दास ने तो उनकी तारीफों के पुल बांध दिये। अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, अगर सरकार को हालात से निबटने के लिए और शक्ति चाहिए तो हम इसके लिए भी तैयार हैं। इस जीत के बाद जब इंदिरा गांधी लोकसभा में पहुंची तो क्या पक्ष और क्या विपक्ष, सभी सदस्यों ने मेज थपथपा कर उनका सदन में स्वागत किया। सिर्फ सीपीएम ने खुद को अलग रखा था। लोकसभा में विपक्षी सदस्यों ने नारा लगाया, जय बांग्ला, जय इंदिरा। राज्यसभा में सभी सदस्यों ने एक साथ खड़ा हो कर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का स्वागत किया। आठ महीना पहले ही इंदिरा गांधी ने विपक्ष को हरा कर प्रधानमंत्री का पद पाया था। लेकिन चुनाव की सारी कटुता भूला कर पिपक्षी दलों ने भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में इंदिरा गांधी को तहेदिल से समर्थन दिया था। जाहिर है भारत की जीत पर उनकी खुशी प्रधानमंत्री से कम न थी।
नकारात्मक राजनीति रही तो कैसे जीतेंगे जंग
कोरोना की पहली लहर के समय न्यूजीलैंड ने इसके खिलाफ सबसे कारगर लड़ाई लड़ी थी। लेबर पार्टी की नेता जेसिंडा आर्डर्न प्रधानमंत्री के पद पर थीं। जब उन्होंने कोरोना संक्रमण रोकने के लिए देश में कठोर प्रतिबंधों को लागू किया तो विपक्षी दल नेशनल पार्टी भी सरकार का साथ दिया। नेशनल पार्टी ने यह नहीं सोचा कि इस समर्थन से उसे क्या राजनीतिक नुकसान होगा। समय पर पाबंदियां लोगू होने से न्यूजीलैंड में सबसे कम संक्रमण और मौत हुई। सरकार ने बेहतर काम किया और लोगों की जिंदगी सुरक्षित रही। सितम्बर 2020 में चुनाव होना था लेकिन कोरना के असर को देखते हुए चुनाव को एक महीने के लिए टाल दिया गया। अक्टूबर 2020 में चुनाव हुआ तो जेसिंडा आर्डर्न ने भारी बहुत से फिर जीत हासिल कर ली। उनकी लेबर पार्टी को 48.9 फीसदी वोट मिले। विपक्षी दल नेशनस पार्टी के केवल 27 फीसदी वोट मिले। नेशनल पार्टी बेशक चुनाव हार गयी। लेकिन उसने देश के नागरिकों के जीवन को सुरक्षित बनान में कोई कमी नहीं रखी। सकारात्मक राजनीति से देश का भला होता है। जगन मोहन रेड्डी ने इसी सोच को आगे बढ़ाया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से चाहे जितना भी विरोध क्यों न हो लेकिन कोरोना के भयावह रूप को रोकने के लिए उनके साथ खड़ा होना जरूरी है। वैसे ही जैसे 1971 में पूरा देश प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ खड़ा था। ये करोडों लोगों की जिंदगी का सवाल है।