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जरा याद करो कुर्बानी : जब भड़क उठा अहमदाबाद, नहीं मनाई दीवाली

By Kanhaiya
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अहमदाबाद। 9 अगस्त, 1942 रविवार अर्थात् भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को निर्णायक मोड़ देने वाला क्रांतिकारी-ऐतिहासिक दिन। पूरे देश की तरह अहमदाबाद भी ‘अंग्रेजों, भारत छोड़ो' आंदोलन के नारों से गूंज उठा। अहमदाबाद की पोलों (गलियों)-मोहल्लों और सडक़ों पर लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। साथ ही शुरू हुआ गिरफ्तारियों, लाठीवार, गोलीबारी और बम धमाकों का सिलसिला। इस आंदोलन में विद्यार्थियों ने सर्वाधिक योगदान दिया। यहां तक कि उमाकांत कडिया और विनोद किनारीवाला सहित एक दर्जन से ज्यादा विद्यार्थियों ने प्राणों की आहूति दे दी, वहीं सैकड़ों घायल हुए और हजारों जेल गए।

राष्ट्र भक्ति का वह ज्वार पूरे अहमदाबाद पर छाया हुआ था। विद्यार्थियों ने अपने कैरियर का पूरा एक वर्ष इस आंदोलन को समर्पित कर दिया। दूसरी तरफ शहर में उस वर्ष बमों के धमाके तो बहुत हुए, पर शहीदों की स्मृति में दीवाली पर पटाखे नहीं छोड़े गए। अहमदाबाद के विभिन्न क्षेत्रों में नौ माह तक कर्फ्यू का सिलसिला चला। कर्फ्यू के दौरान भी लोग छतों पर चढ़ कर ‘अंग्रेजो चाल्या जाव' के नारे लगाते।

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महात्मा गांधी के 9 अगस्त से ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन करने के फैसले की घोषणा डेढ़ माह पूर्व 17 जन, 1942 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नई दिल्ली में संवाददाताओं के समक्ष की। इस घोषणा के साथ ही आंदोलन की तैयारियां शुरू हो गईं। ब्रिटिश शासकों ने भी आंदोलन से निपटने की तैयारी कर ली। इसीलिए पुलिस ने महात्मा गांधी, नेहरू, सरदार पटेल, सरोजिनी नायडू सहित प्रमुख नेताओं को 9 अगस्त को सुबह 6 बजे ही दिल्ली के बिरला हाउस से गिरफ्तार कर लिया।

9 अगस्त को सुबह से ही गर्म माहौल
इधर अहमदाबाद में 9 अगस्त को सुबह से ही माहौल गर्म था। जगह-जगह जुलूस निकलने शुरू हो गए। पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठीवार से लेकर गोलीबारी तक हर कदम उठाए। पूरे शहर में बंद की स्थिति थी। मिल-कारखाने, व्यवसायिक प्रतिष्ठान, सरकारी-गैर सरकारी कार्यालय हर जगह पर विद्यार्थियों ने बंद करवा दिया। उस समय अहमदाबाद में सिर्फ चार कॉलेज थे। गुजरात कॉलेज, एच. एल. कॉलेज ऑफ कॉमर्स, एल. डी. आर्ट्स कॉलेज एवं सर एल. ए. शाह लॉ कॉलेज। छोटे-बड़े 30 से 35 विद्यालय थे। छात्रों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहा था राष्ट्रीय विद्यार्थी मंडल। दूसरी तरफ पुलिस ने भद्र स्थित कांग्रेस हाउस को सील कर गणेश वासुदेव मावळंकर सहित प्रमुख नेताओं की सामूहिक धरपकड़ की।

बेकाबू अहमदाबाद, उमाकांत प्रथम शहीद
शहर की स्थिति बेकाबू होते देख ब्रिटिश शासकों ने दोपहर बाद पुलिस की मदद में सेना को बुला लिया। मांडवी की पोल, आस्टोडिया, रायपुर, खाडिया, गांधी रोड जैसे क्षेत्रों में स्थिति पर नियंत्रण पाना मुश्किल हो रहा था। शाम करीब पांच बजे खाडिया डाक घर के पास आंदोलनकारियों का बड़ा जुलूस निकला। पुलिस ने इन पर गोलीबारी की, जिसमें युवक उमाकांत कडिया शहीद हो गया। कडिया इस आंदोलन में अहमदाबाद के प्रथम शहीद के रूप में नाम दर्ज करवा कर इस दुनिया से अलविदा हो गए। वे तत्कालीन राइफल एसोसिएशन के सचिव थे। शाम सात बजे तो शहर में कर्फ्यू लगाने की घोषणा कर दी गई।

शहीद हुए वीर किनारीवाला, कर्फ्यू के बीच उबाल
अगले दिन 10 अगस्त को सुबह पुलिस ने गुजरात कॉलेज परिसर और छात्रावास पर लाठीवार और गोलीबारी की। इससे पूरे शहर में रोष भडक़ उठा। इसके विरुद्ध लॉ कॉलेज से छात्रों का एक जुलूस निकला और गुजरात कॉलेज पहुंचा। विद्यार्थियों ने कॉलेज परिसर में घुसने की कोशिश की, परंतु अंग्रेज डीवायएसपी तथा पुलिस की टुकड़ी ने उन्हें रोक दिया। जुलूस में करीब एक हजार छात्र थे। अग्रिम पंक्ति में विनोद किनारीवाला सहित कुछ छात्र हाथों में तिरंगा लिए हुए थे। अंग्रेज सार्जेंट ने छात्रों के हाथ से राष्ट्र ध्वज छीनने की कोशिश की। इससे पुलिस और छात्रों में झड़प हुई। उत्तेजित छात्रों ने पुलिस पर जमकर पथराव किया। इससे गुस्साई पुलिस ने सीधे गोलीबारी शुरू कर दी। इस गोलीबारी में एक गोली विनोद किनारीवाला को लगी और वे कॉलेज परिसर में ही शहीद हो गए। गोलीबारी में कई छात्र घायल भी हुए। पुलिस के दमनचक्र और किनारीवाला की शहादत से आंदोलनकारियों का रोष और भडक़ा। 29 अगस्त को युवतियों के एक जुलूस ने अहमदाबाद महानगर पालिका भवन पर राष्ट्र ध्वज फहरा दिया।

दीवानों ने किए बम धमाके
9 सितंबर को आंदोलन का एक माह पूर्ण होने के अवसर पर शहर में सम्पूर्ण हड़ताल रही और जगह-जगह जुलूस निकले। पुलिस ने आंदोलनकारियों पर जमकर लाठियां बरसाईं। 15 सितंबर को छात्रों ने गुजरात कॉलेज में घुस कर जबर्दस्त तोडफ़ोड़ की। 20 सितंबर की रात खाडिया कालूपुर में छात्रों ने जुलूस निकाले। कर्फ्यू लागू होने के बाद लोगों ने छतों पर चढ़ कर अंग्रेजी शासन के खिलाफ नारे लगाए। 21 सितंबर को सरसपुर में एक कार्यक्रम रखा गया, जहां आंदोलनकारियों ने टेलीफोन के वायर तोड़े और डाक घर फूंक दिया। 25 सितंबर को आर. सी. हाईस्कूल पर राष्ट्र ध्वज फहराया गया। आंदोलन के दौरान जमकर बम धमाके किए गए। जगह-जगह सरकारी सम्पत्तियों को बम धमाकों से नुकसान पहुंचाया गया। बम बनाने का काम भी स्वयं विद्यार्थी ही करते थे। 30 सितंबर को रायपुर पिपरडी की पोल में नरहरिप्रसाद रावल और नंदलाल जोशी नामक दो युवक बम बनाते समय हुए विस्फोट में घायल हो गए, जिसमें शिहोर (भावनगर) के जोशी की तुरंत मृत्यु हो गई, जबकि कुछ दिन बाद रावल ने भी दम तोड़ दिया।

साढ़े तीन महीने बंद रही मिलें
शहर की अशांत स्थिति को देखते हुए 9 अगस्त से जारी कर्फ्यू की अवधि एक सप्ताह और बढ़ा दी गई। छात्रों ने आंदोलन के दौरान माणेकचौक स्थित डाक घर को निशाना बनाया, जिसके बाद शहर के ज्यादातर डाक घर अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस दौरान रायपुर दरवाजा बाहर स्थित डाक घर को लूटने का भी प्रयास किया गया। आंदोलन के दौरान छात्रों ने तरह-तरह के कार्यक्रमों के जरिए ब्रिटिश शासकों और पुलिस की नाक में दम कर दिया। छात्रों ने आंदोलन को सफल बनाने के लिए हर संभव प्रयास किए। इस जब भनक लगी कि माणेकचौक स्थित अहमदाबाद शेयर बाजार में गुपचुप सौदे हो रहे हैं, तो छात्रों ने बाजार पर हमला कर उसे बंद करवा दिया। आंदोलन के उस दौर में शहर की स्थिति ऐसी हो गई थी कि रोजाना दोपहर 12 से 3 बजे तक बाजार बंद ही रहा करते थे। विद्यार्थी हड़ताल तो 9 अगस्त से जारी ही थी। मिलें भी उसी दिन से बंद थीं। अहमदाबाद मजदूर महाजन संघ ने 23 नवंबर से मजदूरों को काम पर लौटने की अपील की। साढ़े तीन माह बाद मिलें चलने लगीं।

नहीं मनाई दीपावली
इससे पूर्व शहर में प्रकाश पर्व दीपावली नहीं मनाई गई। शहर में किसी ने पटाखे नहीं छोड़े, लेकिन दीवाली के जाते ही जगह-जगह बमों के धमाके शुरू हो गए। आंदोलनकारियों ने अहमदाबाद विद्युत कम्पनी के छह सब स्टेशनों को विस्फोट से उड़ा दिया। 7 दिसंबर को दोपहर तीन बजे दाणापीठ (खमासा) स्थित दसक्रोई तहसीलदार कार्यालय को पेट्रोल छिडक़ कर फूंक दिया गया। 9 दिसंबर को आंदोलन के चार माह पूर्ण होने के दिन कई कार्यक्रम हुए, जिनमें भारी पथराव और बमबमारी की गई। इस दौरान ढाल की पोल में रहने वाले छात्र रसिकलाल जानी की पुलिस की गोली से मौत हो गई।

जारी रही शहादतें
एक माह बाद 9 जनवरी, 1943 को आंदोलन के पांच माह पूर्ण होने के अवसर पर रायपुर शामला की पोल के पास आयोजित कार्यक्रम में पुलिस की गोलीबारी में सिटी हाईस्कूल के दसवीं कक्षा के छात्र गुणवंतलाल माणेकलाल शाह के सीने में गोली उतर गई। बदा पोल-ढाल की पोल में रहने वाला शाह शहीद हो गया। अगले दिन 10 जनवरी को कर्फ्यू के दौरान खाडिया में सुथारवाडा की पोल में 15 वर्षीय पुष्पवदन त्रिकमलाल मेहता ने जैसे ही खिडक़ी से बाहर झांका, अंग्रेज अधिकारी ने गोली चला दी और पुष्पवदन शहीद हो गया। 9 मार्च को शामला की पोल के नुक्कड़ पर पुलिस गोलीबारी में वसंतलाल मोहनलाल रावल नामक छात्र शहीद हो गया। आंदोलन का यह सिलसिला लगातार चलता रहा।

पाँच साल सात दिन बाद स्वतंत्रता
पांच साल सात दिन बाद भारत में स्वतंत्रता का सूर्योदय हुआ, लेकिन इस स्वतंत्रता की पक्की नींव रखने वाले भारत छोड़ो आंदोलन में अहमदाबाद के विद्यार्थियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा, जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। गुजरात कॉलेज परिसर में स्थापित किनारीवाला का स्मारक आज भी पुराने संस्मरणों का ताजा करता है।

अहमदाबाद के शहीद : उमाकांत से मधुकांत
उमाकांत मोतीभाई कडिया - 9.8.42
विनोद जमनादास किनारीवाला - 10.8.42
नारणभाई मोहनभाई पटेल - 25.9.42
नानूभाई कानजीदास पटेल - 30.9.42
नंदलाल कानजीभाई जोशी - 30.9.42
नरहरि माणेकलाल रावल - 3.10.42
नाथालाल सोमचंद शाह - 9.11.42
गोरधनदास छगनलाल रामी - 29.11.42
गुणवंतलाल माणेकलाल शाह - 9.1.43
पुष्पवदन त्रिकमलाल मेहता - 10.1.43
वसंतलाल मोहनलाल रावल - 9.3.43
जयवंतीबेन संघवी - 6.4.43
मधुकांत डाह्यालाल सोनी - 2.10.43

English summary
9th August is calls August Kranti Diwas. 9th August, 1942 is the day, when Quit India Movement started against British rule. On this day, Ahmedabad Also yelled against British rule. Veer Vindo Kinariwala and 12 others students have sacrificed in this movement in Ahmedabad.
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