ओबामा की स्वागत योग्य शुरुआत
गैर-जिम्मेदार
बुश
न्यूयार्क
के
वर्ल्ड
ट्रेड
सेंटर
पर
हुए
हमले
के
बाद
तो
बुश
मानों
अर्द्घविक्षिप्त
हो
गए
थे।
उसी
हालत
में
बाद
के
कई
वर्षो
तक
अमरीका
का
प्रशासन
चलाया।
अदूरदर्शी
तो
इतने
थे
कि
दुनिया
के
हर
कोने
में
उन्होंने
अपने
लिए
दुश्मन
बना
लिए
थे।
उनकी
निजी
असंगति
के
कारण
पैदा
हुए
उनके
दुश्मन
अमरीका
के
भी
दुश्मन
बन
गए।
मुसलमानों
के
खिलाफ
उनके
तरकश
में
बहुत
सारे
ज़हरीले
तीर
थे
जिनका
वे
बहुत
ही
उदारतापूर्वक
इस्तेमाल
करते
थे।
इसी
कारण
से
इस्लामी
दुनिया
में
उन्हें
निहायत
ही
गैरजिम्मेदार
किस्म
का
इंसान
माना
जाता
है।
ज़ाहिर
है
कि
इस
तरह
की
सोच
से
कोई
देश
नहीं
चल
सकता।
इसलिए
जब
बराक
ओबामा
ने
अमरीका
के
राष्ट्रपति
पद
के
रूप
में
शपथ
ली
तो
उन्होंने
पूरी
गंभीरता
से
मुसलमानों
को
यह
बताने
की
कोशिश
की
वह
व्यक्तिगत
रूप
से
और
अमरीका
एक
देश
के
रूप
में
मुसलमानों
का
दुश्मन
नहीं
है।
उनको
शुरुआती
सफलता
भी
मिली
है।
सत्ता
संभालने
के
बाद
से
ही
उन्होंने
यह
संदेश
देने
की
कोशिश
की।
ओबामा
की
कामयाबी
शपथ
ग्रहण
के
दौरान
जब
उन्होंने
अपने
आपको
बराक
हुसैन
ओबामा
कहा
तो
साफ
लग
रहा
था
कि
अमरीका
को
एक
ऐसा
राष्ट्रपति
नसीब
हुआ
है
जिसके
पास
अपने
इस्लामी
संबंधों
को
गर्व
के
साथ
दुनिया
के
सामने
रखने
की
तमीज
है।
और
जब
मिस्र
के
काहिरा
विश्वविद्यालय
में
उन्होंने
श्रोताओं
का
अभिवादन
अस्सलाम
अलैकुम
कहकर
किया
तो
वे
अपने
मकसद
की
कामयाबी
का
एक
अहम
सफर
तय
कर
चुके
थे।
उनका भाषण सुनकर लगा कि अपनी बात कहने की कोशिश कर रहा एक ईमानदार राजनेता अपने पूर्ववर्ती की गलतियों को सुधारना चाह रहा है, उसके किए की माफी मांग रहा है। पूरी दुनिया के मुसलमानों ने ओबामा की बात को गंभीरता से लिया है। यहां तक कि हमास जैसे अमरीका विरोधी संगठन ने कहा कि अमरीकी नीतियों से हटकर कही गई ओबामा की बात में तो दम है लेकिन उन्होंने कोई ऐसा तरीका नहीं बताया जिसको लागू करके वे पुराने अमरीकी ढर्रे से हट पाएंगे।
भारत
में
भी
स्वागत
ओबामा
के
भाषण
की
भारत
में
भी
सराहना
हुई
है।
सहाफत
मुंबई
के
संपादक
हसन
कमाल
की
बात
मोटे
तौर
पर
भारतीय
मुसलमान
के
दृष्टिकोण
का
प्रतिनिधित्व
करती
है।
हसन
कमाल
ने
कहा
कि
उन्होंने
दुनिया
के
कई
बड़े
नेताओं
का
भाषण
सुना
है
लेकिन
ईमानदारी
की
बात
यह
है
कि
ओबामा
के
भाषण
के
टक्कर
का
कोई
भाषण
अभी
तक
नहीं
सुना।
उन्होंने
यह
भी
कहा
कि
ओबामा
ने
मुसलमानों
और
पूरे
विश्व
को
एक
आशा
की
एक
किरण
दिखाई
है।
अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा कि मुस्लिम औरतों के बुर्क़ा पहनने से उन्हें कोई परेशानी नहीं है। अगर जरूरी है तो वह परंपरा चलती रहे लेकिन उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा दी जानी चाहिए और उन्हें उचित सम्मान दिया जाना चाहिए। ओबामा ने अपने भाषण में पवित्र गंथ, कुरान शरीफ से भी उद्घरण दिया और पूरी दुनिया को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की उन्हें इस्लाम की समझ है और वे पूरी दुनिया को यह समझाने में सफल होंगे कि इस्लाम शांति और भाईचारे का धर्म है।
अमेरिका
की
नई
तस्वीर
फिलिस्तीन,
इराक,
इरान,
अफ़गानिस्तान
और
पाकिस्तान
में
बड़ी
संख्या
में
मुसलमान
रहते
हैं।
इन
इलाकों
में
अशांति
है
और
अवाम
परेशान
है।
सारी
परेशानी
की
जड़
अब
तक
की
गलत
अमरीकी
नीतियां
है।
इन
इलाकों
के
लोगों
की
रोजमर्रा
की
जिंदगी
में
जो
भी
मुसीबतें
हैं,
वह
सब
अमरीकी
कूटनीति
की
विफलता
की
सनद
हैं।
ओबामा
की
बात
से
लगा
कि
वे
इसे
दुरुस्त
करना
चाहते
है।
मसलन
जब
उन्होंने
संकेत
दिया
कि
इराक
में
उलझकर
अमरीका
ने
गलती
की
तो
लगा
कि
वे
पूरी
दुनिया
को
समझदार
लोगों
की
ज़बान
बोल
रहे
हैं।
उनके
इस
ऐलान
पर
कि
ईराक
और
अफगानिस्तान
से
अमरीकी
फौजें
हटा
ली
जाएंगी,
विश्वास
करने
का
मन
कहता
है।
जब ओबामा ने कहा कि फिलिस्तीनियों को अपनी ज़मीन पर बसने का हक है और इजरायल को क़ब्जे वाले इलाकों में यहूदियों को बसाने का हक नहीं है तो लगा कि काश इसके पहले के अमरीकी राष्ट्रपतियों ने भी इसी तरह सोचा होता। बहरहाल बराक ओबामा ने दुनिया भर के मुसलमानों के सामने अमरीका की एक नई तस्वीर पेश करने की कोशिश की है। इन नई शुरुआत का स्वागत किया जाना चाहिए।
[शेष नारायण सिंह वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार हैं।]
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