Jupiter Effect 2021: वृश्चिक के सुखद यात्राओं के योग हैं
Jupiter Effect 2021: वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को गुरु का स्थान हासिल है। बृहस्पति कुंडली में बुद्धि, ज्ञान, विवेक, शिक्षा, सदाचार, धन, विवाह, करियर के कारक होते हैं। जीवन में नौकरी, विवाह, संतान जैसी अहम घटनाओं में बृहस्पति के प्रभाव या उसके गोचर की अहम भूमिका होती है। अगर कुंडली में बृहस्पति मजबूत स्थिति में हैं तो जीवन में सारे काम आसानी से होते जाते हैं, अन्यथा हर मोड़ पर संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
वर्ष 2021 में बृहस्पति मकर और कुम्भ राशि में भ्रमण करेंगे। इसलिए विभिन्न राशियों पर इसका अलग-अलग प्रभाव रहेगा। बृहस्पति के मकर राशि में गोचर के अलग परिणाम होंगे, जहां वह नीच के होते हैं और कुम्भ में गोचर के अलग परिणाम होंगे। हालांकि मकर और कुम्भ दोनों ही शनि की राशि हैं।
बृहस्पति का गोचर
2021 में बृहस्पति 6 अप्रैल की अर्ध रात्रि 1.50 बजे मकर से कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। बृहस्पति वक्री अवस्था में 14 सितंबर की अर्धरात्रि में एक बार फिर से मकर राशि में लौट आएंगे। इसके बाद मार्गी होकर 21 नवंबर को रात 02.06 बजे कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे।
बृहस्पति मार्गी और वक्री
वर्ष 2021 में बृहस्पति 120 दिन तक वक्री स्थिति में रहेंगे। बृहस्पति 20 जून को रात्रि 8.15 बजे वक्री हो जाएंगे,18 अक्टूबर को सुबह 9.15 बजे बृहस्पति फिर से मार्गी स्थिति में आ जाएंगे।
बृहस्पति अस्त और उदय
इसके अलावा बृहस्पति वर्ष के दौरान 28 दिन तक अस्त स्थिति में रहेंगे।बृहस्पति 19 जनवरी को शाम 6.22 बजे अस्त होंगे और 16 फरवरी को सुबह 6.17 बजे तक अस्त स्थिति में रहेंगे।
बृहस्पति का वृश्चिक पर असर
अप्रैल से सितंबर के दौरान परिवार में उतारचढ़ाव, सतर्क रहें। हालांकि प्रॉपर्टी खरीदना फायदे का सौदा हो सकता है। घरेलू खर्च भी बढ़ सकता है। सितंबर से नवंबर के दौरान सुखद यात्राओं के योग हैं। कार्यक्षेत्र में प्रगति और कमाई के भी अच्छे योग बनेंगे। नवंबर के बाद पारिवारिक तनाव से मुक्ति मिलेगी। संतान से किसी कारण दूरी कायम हो सकती है या संतान की विदेश यात्रा के योग बन सकते हैं।
इन उपायों से प्राप्त होगी बृहस्पति की कृपा
- गुरु की शांति के लिए बृहस्पति स्तोत्र और बृहस्पति कवच का पाठ करें।
- गुरु मंत्र ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः या ऊं गुं गुरवे नमः के 19 हजार जाप स्वयं करें या पंडित से करवाएं।
- गुरुवार का व्रत करें, पीले धान्य का भोजन करें एवं पीले वस्त्र धारण करें।
- श्रीहरि का नियमित पूजन करें। पीपल, केले के वृक्ष का पूजन करें। गुरु के बीज मंत्रों से हवन करें।
- तर्जनी अंगुली में पुखराज रत्न या उपरत्न सुनहला- लाजवर्त मणि धारण करें।
- पीले वस्त्र, पीले धान जैसे चने की दाल, पीतल, कांसा पात्र, हल्दी, पीले फलों, धार्मिक ग्रंथ रामायण, गीता आदि का दान करें।