इस्लाम के नाम पर बने पाकिस्तान को इस्लाम ने ही बर्बाद कर दिया?
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने 14 अगस्त को पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का न केवल उल्लेख किया बल्कि उनका एक वीडियो भी चलाया। एस जयशंकर का वह वीडियो यूरोप के फोरम पर की गयी बातचीत का है जिसमें अपनी उर्जा जरूरतों के लिए रूस से कच्चा तेल खरीदनें का बचाव कर रहे हैं। इमरान खान को बहुत रंज है कि जब भारत अपनी शर्तों पर दुनिया के देशों के साथ रिश्ता रख सकता है तो पाकिस्तान क्यों नहीं? आखिर दोनों एक ही दिन तो अस्तित्व में आये थे?
इमरान खान के इस दर्द को समझने के लिए पाकिस्तान के गठन को इतिहास में जाकर समझना होगा। रिलीजन या मजहब के नाम पर बना पाकिस्तान अब तक का पहला और आखिरी देश है। सवाल ये है कि जिस जिद्द से भारतीय मुसलमानों के एक बड़े वर्ग द्वारा 1947 में पाकिस्तान बनाया गया, आज 75 साल बाद इमरान खान को ही कमजोर और फेल्ड स्टेट क्यों नजर आ रहा है?
मुसलमानों के एक बड़े वर्ग द्वारा हिन्दुओं से अलग होने की जिद्द के कई कारण उनके लीडरों द्वारा गिनाये गये थे। इसमें दो कौमी नजरिया के साथ साथ हिन्दू शाहूकारों का डर और नेहरु के सोशलिज्म की आहट सब कुछ शामिल था। उस समय मुस्लिम लीडरशिप मुसलमानों को समझा रही थी कि हिन्दू मुस्लिम दो अलग कौमें हैं जिनका आपस में कुछ भी साझा नहीं हो सकता, इसलिए अंग्रेज जाएं इससे पहले वो इन दोनों कौमों को अलग अलग जमीन देकर जाएं।
सर सैय्यद अहमद खान से लेकर अल्लामा इकबाल तक सभी यही डर मुसलमानों में बेचते रहे। उस समय कम्युनिस्टों ने भी इस्लाम को एक 'प्रोग्रेसिव रिलीजन' की तरह प्रस्तुत किया जो हिन्दू धर्म जैसा "पिछड़ा और दकियानूसी" नहीं है। कम्युनिस्ट पार्टी उस समय (1940 में) पाकिस्तान की मांग के साथ इसलिए खड़ी हो गयी क्योंकि इस्लाम में बराबरी है। जातिवाद और छूआछूत नहीं है। उनके लिए वह एक ऐसा रिलीजन था जिसमें सबको आगे बढने का समान अवसर था।
अपने तीव्र हिन्दू प्रतिक्रियावाद में पाकिस्तान शुरुआत के एक डेढ दशक भारत से हर मोर्चे पर आगे भी रहा। 1965 तक पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भारत से बेहतर बनी रही। पाकिस्तान का सैन्य साजो सामान, पाकिस्तान का रेलवे, पाकिस्तान में शिक्षा की स्थिति और पाकिस्तान का स्वास्थ्य ढांचा सब कुछ भारत से बेहतर ही था। लेकिन यह हिन्दू प्रतिक्रियावाद आखिर कब तक चलता? इस्लाम जिसे भारत के हिन्दू विरोधी लोगों द्वारा बहुत 'प्रगतिशील और मॉडर्न मजहब' बताया गया था, उसकी परिभाषा करने के लिए मौलाना मौदूदी और सैय्यद अताउल्लाह शाह बुखारी जैसे लोग मैदान में उतर चुके थे। उन्होंने यह बताना शुरु किया कि सच्चा मुसलमान आखिर है कौन? और सच्चे मुसलमान की खोज में सबसे पहले पाकिस्तान में उन्होंने उस अहमदिया समुदाय के खिलाफ मोर्चा खोला जिसने पाकिस्तान बनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी।
स्वतंत्र पाकिस्तान में पहला दंगा इन्हीं अहमदियों के खिलाफ 1953 में हुआ और लाहौर में हजारों अहमदी मुसलमानों को यह कहकर कत्ल कर किया गया क्योंकि वो 'खत्म ए नबूवत' पर यकीन नहीं करते थे। इसलिए सुन्नी कायदों के मुताबिक वो मुसलमान हो ही नहीं सकते। उनकी मस्जिदों को आग लगा दी गयी। कुछ को ढहा दिया गया और कुछ मस्जिदों पर पाकिस्तान सरकार ने कब्जा कर लिया। इस दंगे की जांच करने के लिए जस्टिस मुनीर की अगुवाई में एक कमेटी का गठन हुआ। जस्टिस मुनीर ने अपनी रिपोर्ट में इस्लाम के प्रोग्रेसिव रिलीजन होने की पोल खोलकर रख दी। पहली बार आधिकारिक रूप से जस्टिस मुनीर कमेटी ने स्वीकार किया कि 'इस्लाम में हर फिरका अपने अलावा बाकी सबको वाजिबुल कत्ल मानता है।' इस्लाम को जिस तरह से प्रगतिशील मजहब बताकर एक आदर्श राज्य के लिए पाकिस्तान को जरूरी बताया था, उसका ताना बाना पांच सात साल में ही बिखर गया।
पाकिस्तान की अपनी मांग को प्रोग्रेसिव बताते हुए स्वयं जिन्ना ने दिल्ली में रॉयटर के पत्रकार दून कैम्पबेल से कहा था कि "पाकिस्तान एक आधुनिक राज्य होगा जिसकी संप्रभुता उसके लोगों में निहित होगी। जाति, धर्म से ऊपर हर नागरिक को समान अधिकार होगा।" 1953 के दंगे के बाद जस्टिस मुनीर ने जब मौलानाओं से पूछा कि पाकिस्तान के कायद तो ऐसा पाकिस्तान चाहते थे जिसमें जाति धर्म का भेद न हो, तो हर फिरके का मौलाना ऐसे किसी पाकिस्तान को बनाने से असहमत हो गया। उसे ऐसा पाकिस्तान नहीं चाहिए था जैसा इस्लाम को प्रोग्रेसिव बतानेवाले इकबाल, जिन्ना या कम्युनिस्ट शायर घोषित करते थे।
उसे वह पाकिस्तान चाहिए था जो कुरान और हदीस की रोशनी में सही अर्थों में शरीयत को लागू करे और सच्चा इस्लामिक स्टेट बने। एक ऐसा इस्लामिक स्टेट जिसमें काफिर के अधिकार मोमिन के बराबर न हों। जहां काफिर को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रखा जाए। जहां अहमदी और शिया को गैर मुस्लिम घोषित किया जाए। जिसकी अर्थव्यवस्था शरीयत के मुताबिक ब्याजमुक्त अर्थव्यवस्था हो। जहां गैर मुस्लिमों से जजिया कर लिया जाए और बिल्कुल इस्लामिक तरीके से उनको सुरक्षा दी जाए।
1971 में पूर्वी पाकिस्तान के अलग होकर बांग्लादेश बन जाने के बाद मानों पश्चिमी पाकिस्तान के पैरों की बेड़ी निकल गयी। अब वो बहुत इत्मीनान से पाकिस्तान को इस्लामिक स्टेट बनाने में जुट गये। इस इस्लामिक स्टेट का घोषित दुश्मन भारत था जिससे निरंतर लड़ते रहना था। अपनी तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पाकिस्तान ने ये कार्य कभी बंद नहीं किया। भारत से बेहतर रिश्तों के सवाल पर वहां के मौलानाओं ने हमेशा यह कहकर रोक लगा दी कि "अगर भारत (हिन्दुओं) से बेहतर रिश्ता रखना ही था तो फिर अलग पाकिस्तान बनाने की जरूरत क्या थी?"
यह एक ऐसा तर्क है जिसकी काट आज भी पाकिस्तान में किसी हुक्मरान के पास नहीं है। पाकिस्तान ने अपनी इस्लामिक राज्य होने की यात्रा में भारत से किसी भी प्रकार का रिश्ता न रखने को ही मूल में रख लिया। अगर भारत से कोई बात भी करनी थी तो सिर्फ कश्मीर पर करनी थी। इसी कश्मीर के लिए वह भारत से लगातार युद्ध करता रहा। जब प्रत्यक्ष युद्ध करके कोई परिणाम हासिल नहीं कर पाया तो 1971 में बांग्लादेश बन जाने के बाद उसने कश्मीर में परोक्ष युद्ध करने का फैसला किया। उसने कश्मीर में इस्लामिक तरीकों से जिहाद का फैसला किया जिसके लिए वहां से भी मुजाहीदीन आते थे और कश्मीर में भी तैयार किये जाते थे।
मुजाहीदीन की सोच ने पाकिस्तान को प्रेरित किया कि वह इसी हथियार से न केवल भारत को बल्कि अफगानिस्तान पर भी कब्जा कर ले। जैसे जैसे पाकिस्तान इस सोच पर आगे बढता गया इस्लाम का मध्ययुगीन पंजा उसे अपने कब्जे में जकड़ता चला गया। अस्सी और नब्बे के दशक में पाकिस्तान में मुजाहीदीन (इस्लामिक लड़ाके) पैदा करना सबसे बड़ा धंधा बन गया। इस मुजाहीदीन उद्योग ने फौरी तौर पर पाकिस्तान को अमेरिका का दोस्त तो बना दिया लेकिन इसका परिणाम इतना भयावह निकला कि अब पाकिस्तान न तो मुजाहीदीन कल्चर से पीछा छुड़ा पा रहा है और न ही मध्ययुगीन सच्चे इस्लाम से।
इसके लक्षण उसके पूरे शरीर पर फफोले की तरह उभरे हैं। भारत के मुकाबले आठ गुना कम आबादी होने के बाद भी बिजली, पानी, रोजगार, साक्षरता, स्वास्थ्य मानक और अर्थव्यवस्था सबमें भारत से पीछे चला गया है। भारत से 'पवित्र युद्ध' भी उसके लिए अब संभव नहीं है क्योंकि उसके 10 अरब डॉलर के मुकाबले भारत का सैन्य बजट 70 अरब डॉलर पहुंच गया है। पाकिस्तान के 7.8 अरब डॉलर के फारेक्स रिजर्व के मुकाबले भारत के पास 572 अरब डॉलर का फॉरेक्स रिजर्व है। भारत की परकैपिटा जीडीपी 2274 डॉलर है तो पाकिस्तान की 1538 डॉलर। पाकिस्तान के 346 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के मुकाबले भारत 3,173 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था है। यानी पाकिस्तान से करीब नौ गुना बड़ी।
स्वाभाविक है हिन्दुओं से अलग होकर जिन लोगों ने पाकिस्तान बनाने की जिद्द की थी, वो अगर आज लौटकर दोनों देशों को देखेंगे तो पायेंगे कि उनका विचार कितनी बुरी तरह असफल हुआ है। भारत को बांटकर इस्लाम के नाम पर उन्होंने जो स्टेट बनाने का काम किया था, इस्लाम ने ही आज उसे संसार का फेल्ड स्टेट बना दिया है।
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