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संविधान सभा में चर्चा के बाद ही स्वाधीन भारत में ‘राष्ट्रपति’ पदनाम स्वीकार हुआ

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भारत की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मू को "राष्ट्रपत्नी" कहना पूर्णरूप से असंवैधानिक है। वर्ष 1946 से 1949 तक चली संविधान सभा की किसी भी कार्यवाही में "राष्ट्रपत्नी" जैसा शब्द नहीं मिलता है। विशेष बात यह है कि कांग्रेस के लोकसभा सांसद एवं नेता सदन, अधीर रंजन चौधरी, जिन्होंने 'राष्ट्रपत्नी' शब्द का प्रयोग किया, उनके दल के सबसे प्रमुख नेता, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ही 21 जुलाई 1947 को संविधान सभा में 'हेड ऑफ द फेडरेशन' को 'प्रेसिडेंट' यानि 'राष्ट्रपति' कहकर संबोधित किया था। उस दौरान नेहरू ने राष्ट्रपति के निर्वाचन और अन्य सम्बंधित प्रक्रियाओं संबंधी एक प्रस्ताव पेश किया था।

Constituent Assembly debates on president in india

तीन दिन बाद, 24 जुलाई को नेहरू ने राष्ट्रपति के पांच साल के कार्यकाल को लेकर दूसरा प्रस्ताव पेश किया। इस बार भी उन्होंने अपने भाषण में 'राष्ट्रपति' शब्द का उल्लेख किया। इस बीच संविधान सभा के एक सदस्य, गोकुलभाई भट्ट ने सुझाव दिया कि 'राष्ट्रपति' शब्द के स्थान पर 'नेता' अथवा 'कर्णधार' जैसे शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। हालाँकि, इस संशोधन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया और संविधान सभा की आगे की सभी कार्यवाहियों में 'राष्ट्रपति' अथवा 'प्रेसिडेंट' शब्द ही प्रचलन में आ गया।

23 जुलाई 1947 को सभा के अन्य सदस्य, शिब्बन लाल सक्सेना ने भी 'प्रेसिडेंट' को विशेष रूप से 'राष्ट्रपति' कहकर संबोधित किया। आमतौर पर संविधान सभा की कार्यवाहियां अंग्रेजी में हुई थी। इसलिए अधिकतर 'प्रेसिडेंट' शब्द वहां मिलेगा लेकिन जहाँ भी 'राष्ट्रपति' शब्द का इस्तेमाल हुआ, वह एकदम स्पष्ट है। यही नही, संविधान सभा के कई सदस्य इस शब्द को लेकर एकदम संवेदनशील भी रहते थे। इससे जुड़ा एक रोचक किस्सा भी है।

दरअसल, एक बार इसमें बदलाव का एक छोटा प्रयास किया गया, लेकिन उसे सदन की सहमति नहीं मिली। केटी शाह ने 10 दिसम्बर 1948 को एक संशोधन पेश किया। उनका कहना था कि अनुच्छेद 41 के स्थान पर "भारतीय संघ में मुख्य अधिशासक और राज्य का प्रमुख भारत का प्रधान कहा जायेगा," रखा जाये।

उन्होंने आगे इसे स्पष्ट करते हुए बताया, "मूल अनुच्छेद के स्थान पर मेरे संशोधन को प्रविष्ट किया जाये और भारत के प्रधान को अधिशासक और राज्य का प्रमुख कहा जाये।" वैसे तो शाह का संशोधन एक प्रकार से राष्ट्रपति के पद की विस्तृत व्याख्या ही थी। उन्हें सबसे पहला समर्थन महावीर त्यागी का मिला। उन्होंने कहना था, "अच्छा तो यह होता कि हमने इसका उल्लेख इस प्रकार किया होता कि प्रधान केवल राज्य का अधिशासी प्रमुख नहीं बल्कि वह लोगों की सर्वसत्ता का भी प्रतीक है।"

अगले वक्ता एचवी कामत थे। उन्होंने शाह के संसोधन से इतर सदन को ध्यान दिलाया कि, "अनुच्छेद 41 के अनुरूप उसमें जो अनुच्छेद है, उसमें कहा गया है, 'संघ का प्रमुख प्रेसिडेंट (राष्ट्रपति) होगा'। अब मसौदे में यह अनुच्छेद परिवर्तित रूप में इस प्रकार रखा गया है, 'भारत का एक प्रेसिडेंट होगा'। मैं डॉ. अंबेडकर से यह जानना चाहता हूँ कि आज विधान के मसौदे में यह अनुच्छेद जिस रूप में है, उसमें 'राष्ट्रपति' शब्द क्यों नहीं है? श्रीमान, क्या इसका कारण यह है कि हाल ही से हमें कुछ भारतीय शब्दों, अथवा हिंदी शब्दों से घृणा होने लगी है और हम जहाँ तक हो सकता है, उन्हें अंग्रेजी के विधान से निकालने का प्रयास करने लगे है?"

स्वाधीनता से पहले 'राष्ट्रपति' शब्द को अखिल भारतीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए इस्तेमाल किया जाता था। स्वाधीन भारत में जेबी कृपलानी के बाद जब पट्टाभि सीतारमैया को कांग्रेस का 'राष्ट्रपति' निर्वाचित किया गया तो नेहरू के अनुरोध पर इस शब्द को भारत के राष्ट्रपति के लिए सुरक्षित रखने का अनुरोध कांग्रेस कार्यसमिति में किया गया। पट्टाभि सहित अन्य सभी कांग्रेस के नेताओं ने इस निवेदन को सहर्ष स्वीकार कर लिया।

अतः कामत को भूलवश लगा कि संविधान सभा के मसौदे में से यह शब्द इसलिए हटाया गया है कि अभी कांग्रेस अपने अध्यक्ष के लिए इस शब्द को रखना चाहती है। उन्होंने कहा, "मैं जानना चाहता हूँ कि डॉ. अंबेडकर ने और मसौदा समिति के बुद्धिमान लोगों ने इस सभा में जिस रूप में यह अनुच्छेद पेश किया था, उसमें से 'राष्ट्रपति' शब्द को किस कारण से निकाल दिया है? क्या इसका कारण यह है कि यह नाम अथवा उपाधि केवल कांग्रेस के प्रेसिडेंट के लिए सुरक्षित रखी जाएगी?"

डॉ. अंबेडकर ने कामत के प्रश्नों का बेहद संजीदगी एवं तथ्यों के साथ जवाब दिया। वे 'राष्ट्रपति' शब्द को रखने के पक्षधर भी थे। उन्होंने कहा, "मसौदा समिति पर यह दोष लगाया गया है कि उसने उस समिति के प्रतिवेदन के पैरा 1 में 'प्रेसिडेंट' के बाद कोष्टक में दिए हुए 'राष्ट्रपति' शब्द को निकाल दिया है। ड्राफ्ट कमेटी ने यह इसलिए नहीं किया कि उसे 'राष्ट्रपति' शब्द से द्वेष है अथवा विधान में हिंदी शब्द रखने के खिलाफ है।

उसे निकालने का कारण यह है, हमें यह बताया गया था कि मसौदा समिति के साथ ही विधान परिषद् के अध्यक्ष ने एक दूसरी समिति अथवा दो समितियां नियुक्त की है जो हिंदी और हिन्दुस्तानी में विधान का मसौदा तैयार करने वाली है। इसलिए हमने सोचा कि चूँकि विधान का ड्राफ्ट हिंदी में और हिन्दुस्तानी में तैयार होने वाला है, इसलिए हमें इस 'राष्ट्रपति' शब्द को उन समितियों के सदस्यों के विचारार्थ छोड़ देना चाहिए क्योंकि राष्ट्रपति शब्द अंग्रेजी का नहीं है और हम तो अंग्रेजी का ड्राफ्ट तैयार कर रहे है।"

इस पर कामत ने जवाब दिया कि, "मैंने यह कहा था कि इस सभा ने इस अनुच्छेद को जिस रूप में स्वीकार किया था उसमें 'राष्ट्रपति' शब्द था। हिंदी और हिन्दुस्तानी समितियों के प्रतिवेदन सभा के सम्मुख नहीं है। मैं केवल यह चाहता था कि इस समय जिस मसौदे पर विचार हो रहा है, उसमें इस शब्द को स्थान दिया जाना चाहिए।"

सदन की आगे की कार्यवाही थोड़ी-बहुत हंसी-मजाक में परिवर्तित हो गयी और शाह का प्रस्ताव भी पारित नहीं हो सका। मगर संविधान सभा की कार्यवाहियों के दौरान भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद को अंग्रेजी में 'प्रेसिडेंट' और हिंदी में 'राष्ट्रपति' ने नाम से मान्यता मिल गयी जोकि देश की संसद के दोनों सदनों - लोकसभा एवं राज्यसभा में भी अपरिवर्तनीय है।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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Constituent Assembly debates on president in india
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