ब्रिटेन में हिन्दू मंदिरों पर हमले के पीछे कौनसा नापाक गठजोड़
भारत में हिन्दुत्व की आलोचना के नाम पर लंबे समय से हिन्दू धर्म, समाज, परंपरा और व्यवस्था पर व्यवस्थित प्रहार किये जा रहे हैं। इस प्रहार के पीछे भारत का नापाक वाम इस्लाम गठजोड़ सक्रिय है। लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जिस तरह से संसारभर में रह रहे अप्रवासी भारतीयों में हिन्दू धर्म और भारत के प्रति नव चेतना का संचार हुआ है उसे हतोत्साहित करने के लिए भारत का वाम इस्लाम गठजोड़ अब वैश्विक स्तर पर सक्रिय हो गया है। खाड़ी देशों में राष्ट्रभक्त अनिवासी भारतीयों को निशाना बनाने के बाद अब इस गठजोड़ ने ब्रिटेन में रह रहे भारतवंशी हिन्दुओं को निशाना बनाया है।
सितम्बर के दूसरे पखवाड़े में ब्रिटेन से हिन्दुओं पर, उनकी दुकानों पर, हिन्दू मंदिरों पर जारी हमलों की ख़बरें आने लगीं। इन ख़बरों में जो विशेष ध्यान देने योग्य बात नजर आ रही थी, वो ये थी कि कई ब्रिटिश नेता हिन्दुओं से अपने मंदिरों की सुरक्षा के लिए न जाने की अपील कर रहे थे। उनका कहना था कि मंदिरों की सुरक्षा करना पुलिस का काम है। उनसे सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहें, खुद कुछ न करें।
इस मामले में ब्रिटिश कानून भी ध्यान देने योग्य होते हैं। वहाँ के मौजूदा कानूनों के मुताबिक अगर कोई घरों पर, दुकानों पर, मंदिरों पर हमला करता भी है तो पुलिस खड़ी होकर केवल वीडियो बनाएगी। इससे बाद में अपराधियों की पहचान होगी और उन्हें दण्डित किया जायेगा। दुकानों, घरों या मंदिरों को भीड़ से बचाने के लिए पुलिस तुरंत कुछ नहीं करती। अगर पुलिस व्यवस्था पर विश्वास की बात की जाए तो जहाँ मामला मुस्लिम समुदाय का हो, वहाँ ब्रिटेन की पुलिस वैसे भी कड़ी कार्रवाई से कतराती है।
इसके लिए 2008-10 के बीच हुए रोचडेल बाल यौन शोषण के मामले को उदाहरण के रूप में याद किया जा सकता है। इस मामले में ये स्पष्ट हो गया था कि कम से कम 47 बच्चियों का यौन शोषण और बलात्कार किया गया। इसमें अपराधी सभी ब्रिटिश पाकिस्तानी थे और बलात्कार पीड़ित या तो अंग्रेज लड़कियां थीं, या दूसरे (सिक्ख जैसे) समुदायों की। इस मामले में खुद को नस्लीय भेदभाव करने वाला कहे जाने से बचने के लिए ब्रिटिश पुलिस ने चुप्पी साध ली थी। मामले की पोल तब खुली थी जब मेनचेस्टर पुलिस से मार्गरेट ओलिवर ने घिन के मारे डिटेक्टिव कांस्टेबल के पद से इस्तीफा देकर सारी बात जनता के सामने रख दी।
ऐसी स्थिति में ये मान लेना कि निष्पक्ष जांच होगी और अपराधियों को दंड मिलेगा, आसान नहीं होता। बजाय हिंसा पर बात करने के ब्रिटिश मीडिया राजसी अंतिम संस्कार में व्यस्त रही। जब लीसेस्टर की ख़बरें अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में आने लगी, तब कहीं जाकर उनकी नींद खुली। जब नींद खुली भी तो कई बार ब्रिटिश मीडिया ने इस हिंसा का आरोप हिन्दुओं पर ही मढ़ने का प्रयास किया।
इसके अलावा कुछ लोग इस घटना को थोड़ा पीछे जाकर भी देखते हैं। ऐसा माना जा सकता है कि विश्वभर में इस किस्म की हिन्दू विरोधी मानसिकता को जन्म देने के प्रयास कुछ समय से लगातार चल ही रहे हैं। तथाकथित अकादमिक जगत के कई बड़े नामों ने इसे हवा दी है।
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प्रोपोगैंडा और प्रचार तंत्र के प्रभाव को गोएबेल्स से 1930 के दौर से पहले ही सीख चुकी विचारधाराओं ने प्रचार का इस्तेमाल काफी पहले ही "फोर्थ जनरेशन वॉरफेयर" के तहत करना शुरू कर दिया था। इसका सामना करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने 1917 में ही "कमिटी फॉर पब्लिक इनफार्मेशन" (सीपीआई) की स्थापना कर ली थी। सौ वर्षों बाद भी भारत से ये हो नहीं पाया है।
डिस्मेन्टलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व से अटैकिंग ग्लोबल हिन्दू तक
इसी का नातीजा है कि "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" जैसे आयोजन होते हैं। ये "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" नाम का कांफ्रेंस 11 सितम्बर 2021 से तीन दिनों के लिए ब्रिटेन में ही आयोजित हुआ था। कथित रूप से इसे कई विश्वविद्यालय "स्पॉंसर" कर रहे थे लेकिन प्रारंभिक जांच में ही पता चल गया था कि इनमें से कई विश्वविद्यालय असल में प्रायोजित करने में शामिल नहीं थे, उनका नाम यूँ ही डाल दिया गया था। पूछे जाने पर उन्होंने आपत्ति जताई और आयोजकों ने उनके नाम सूची से हटाया भी।
हिन्दू विरोधी मानी जाने वाली ऑड्रे ट्रूस्की इस आयोजन की प्रमुख वक्ताओं में से एक थी। वामपंथी आतंकवाद के समर्थक आनंद पटवर्धन और नंदिनी सुंदर भी वक्ताओं में थे। इनके अलावा स्वघोषित अतिवादी वामपंथी नेहा दीक्षित भी इस आयोजन में वक्ता थी। इस आयोजन की योजना के पीछे था ज़ियाद अहमद नाम का एक व्यक्ति जो पहले हिलेरी क्लिंटन के चुनावी आभियान में काम कर चुका है।
इस आयोजन में भंवर मेघवंशी भी एक वक्ता थे, जो आरएसएस में दलितों की तथाकथित दुर्दशा पर पुस्तक भी लिख चुके हैं। हिन्दू विरोधी प्रोपोगेन्डा की किताबें लिखने के लिए क्रिस्टोफ जेफ्फ्रेलोट एक पहचाना हुआ नाम है। उनकी कई किताबों को इस आयोजन में "आवश्यक पठनीय सामग्री" के तौर पर प्रस्तुत किया गया था। इनके अलावा भी ऐसे ही कई नाम "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" कार्यक्रम से जुड़े मिलते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि ऐसे आयोजनों के बाद आगे भी नफरती चिंटूओं द्वारा हिन्दुओं और भारतीय मूल के लोगों पर हमले तेज गति से बढ़े।
ऐसा कहा जा सकता है कि अकारण हिन्दुओं से घृणा के मनोरोग को "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" नाम के तीन दिनों के आयोजन के माध्यम से एक संस्थागत रूप देने का प्रयास किया गया था। जैसा टूलकिट भारत के तथाकथित किसान आन्दोलन के दौरान नजर आया था, वैसा ही कुछ "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" के बाद हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा को बढ़ाने, उकसाने के लिए भी दिखने लगा। करीब पांच वर्ष पूर्व भारतीय लोग, केवल भारत में "टुकड़े होंगे" के वाम इस्लाम गुट के आयोजनों को देख पा रहे थे।
अब पांच वर्ष बाद हम संस्थागत स्तर पर इसी भारत के टुकड़े करने, उसे नुकसान पहुँचाने के आयोजनों को विश्वविद्यालयों में उसी वाम इस्लाम गठजोड़ द्वारा आयोजित होते देख रहे हैं। थोड़े संतोष की बात ये अवश्य कही जा सकती है कि भारत के विदेश मंत्रालय ने अब दबने, चुप होने के बदले कड़ा उत्तर देना आरम्भ कर दिया है। इसके कारण हिंसा का तो विरोध जताया गया, लेकिन "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" के कार्यक्रम को ऐसे किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा था।
पांच वर्षों में भारत ने जो तरक्की की है, वो भारत की बढ़ी हुई जीडीपी में दिखती है। कोविड-19 का टीका स्वयं बना लेने के आत्मविश्वास में वो प्रगति दिखती है। कश्मीर सम्बन्धी संवैधानिक संशोधनों में भी स्वयं पर वही भरोसा नजर आता है। जाहिर है वाम इस्लाम गठजोड़, कई पूंजीवादी शक्तियों, और चर्च से जुड़े कुछ तत्वों को भारत की ये प्रगति, ये आत्मविश्वास कुछ ख़ास पसंद नहीं आता। चूँकि ये शक्तियां दशकों से भारत को तोड़ने में जुटी हैं, इसलिए माना जा सकता है कि उन्हें केवल पाकिस्तान-बांग्लादेश अलग करके संतोष नहीं हुआ होगा। ऐसे में सवाल ये भी है कि क्या हिन्दुओं को इस नयी दुनियां का यहूदी बनाया जा रहा है?
जैसे द्वित्तीय विश्व युद्ध के काल तक यहूदी होना यूरोप से लेकर मिडिल ईस्ट तक अकारण घृणा का कारण बनता था क्या वैसा ही कुछ हिन्दुओं के साथ किया जा रहा है? विश्व भर में अनेकों स्थानों पर हिन्दू समुदाय शांतिपूर्ण जीवनयापन करता आया है। स्थानीय कानूनों को सम्मान देने की हिन्दुओं और भारतीय लोगों की जो छवि है, उसे बिगाड़ने का एक प्रयास था "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व"। गौरतलब है कि लीसेस्टर में भी इस "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" के खिलाफ एक शांतिपूर्ण मार्च निकाला गया था। फिर भला कैसा आश्चर्य कि यूके में हिंसा इस बार लीसेस्टर शहर से ही शुरू हुई है।
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