Exclusive: उरी के हमले के लिए रावलपिंडी से आया था हुक्म
श्रीनगर। शुक्रवार कश्मीर में एक 'ब्लैक फ्राइडे,' की तरह साबित हुआ। वनइंडिया उन बहादुर सैनिकों और पुलिसकर्मियों को सलाम करता है जिन्होंने सीमा पर आतंकियों से मोर्चा लेते हुए शहादत हासिल की।
लेकिन वहीं हम यह बात भी आपको बता दें कि इस पूरे हमले पर पाकिस्तान के रावलपिंडी से बराबर नजर रखी जा रही थी। रावलपिंडी से आतंकियों को बराबर डायरेक्शंस दिए जा रहे थे। जबकि कई लोग मान रहे थे कि इस पूरी आतंकी साजिश को इस्लामाबाद से कंट्रोल किया जा रहा था।
'क्या चूड़ियां पहनकर बैठे हो तुम'
कश्मीर में शुक्रवार को एक के बाद एक चार हमले हुए और इन सारे हमलों पर रावलपिंडी से कंट्रोल किया गया। करीब एक माह पहले रावलपिंडी से घाटी में मौजूद आतंकियों को एक संदेश भेजा गया था।
इस संदेश में पूछा गया, 'क्या तुम लोग चूड़ियां पहनकर बैठे हो?' इस संदेश में आतंकियों को साफ कहा गया था कि उन्हें घाटी में चुनावों के मद्देनजर हमले और बढ़ाने हैं और इन हमलों की आवाज इतनी तेज होनी चाहिए कि राजनीतिक पार्टियों को उनकी मौजूदगी का अहसास हो।
मतदान से परेशान हैं आतंकी
रिसर्च एंड एनालिसिसि विंग (रॉ) के पूर्व चीफ सीडी सहाय ने वनइंडिया को बताया कि इस हमले की सिर्फ एक ही वजह नजर आती है और वह है चुनावों में वोटों के लिए घर से निकलते मतदाता।
सहाय ने अपना काफी समय घाटी में बिताया है और उनकी मानें तो रावलपिंडी में मौजूद आतंक के आका इस बात को लेकर काफी निराश हैं। एक और बात ने उनकी नाराजगी को और भड़काने का काम किया है और वह है घाटी के ग्रामीण इलाकों से मतदाताओं का बाहर निकलना।
वह कहते हैं कि कश्मीर का युवा अब बदलाव चाहता है और इसी वजह से उसने चुनावों में अपनी भागीदारी पेश की है। उसे मालूम है कि चुनावों में वोट करके ही विकास और उसकी तरक्की के मुद्दों का हल मिल सकता है।
इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घाटी के लोगों के बीच भी बदलाव और उम्मीद की एक नई तस्वीर के तौर पर उभरे हैं। इन सबका पाकिस्तान पर खासा असर हुआ है और इस वजह से ही वह इस तरह की वारदातों को अंजाम दे रहा है।
पाक को कड़ा संदेश
मतदान के लिए आगे आने वाले लोगों ने घाटी के लोगों को एक साफ संदेश दे दिया है कि भले ही पाक कुछ भी कर ले लोकतंत्र कभी भी हार नहीं सकता है। लोगों के रवैये से साफ हो चुका है कि वह आतंकवाद और निर्दोषों की हत्याओं से तंग आ चुके हैं।
वह कहते हैं कि कश्मीर पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं लेकिन लोगों तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं। इस वजह से अब वह वोट कर रहे हैं। इस वजह से रावलपिंडी में मौजूद आतंकी गुस्से में हैं।
90 के दशक से चाहिए बदलाव
सहाय यह भी मानते हैं कि पाक जितनी हरकतें करेगा लोगों और भी दृढ़ निश्चयी होंगे और वह पाक को कड़ा जवाब देंगे। वह कहते हैं कि लोगों को 90 के दौर से ही एक बदलाव की उम्मीद लगी हुई है।
वर्ष 1995 में उस समय के कैबिनेट सचिव ने बारामूला का दौरा किया था। इसी दौरान उन्होंने इस बात को महसूस किया था कि यहां पर लोग बदलाव की आस में बैठे हैं।
घाटी के लोग आतंकवाद से तंग आ चुके हैं। उन्होंने यहां पर कुछ लोगों से मुलाकात भी की और लोगों ने उनके सामने सिर्फ दो मांगे रखी थीं। इन मांगों में सबसे अहम था उनके परिवार के निर्दोष लोगों को रिहा करना और यहां पर लोगो को रोजगार मुहैया कराना।
सरकार ने लोगों को रेलवे, पैरामिलिट्री और इस तरह की नौकरियों की पेशकश भी की लेकिन इन नौकरियों में ट्रांसफर की वजह से लोगों ने नौकरियों को लेने से मना कर दिया।