वेंटिलेटर नहीं वेंटिलेटर चलाने वाले ट्रेंड कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं अस्पताल, कैसे संभलेंगे हालात?
वेंटिलेटर नहीं वेंटिलेटर चलाने वाले ट्रेंड कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं अस्पताल, कैसे संभलेंगे हालात?
नई दिल्ली: भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने तबाही मचाई हुई है। हर दिन 3 लाख नए कोविड-19 के केस सामने आ रहे हैं और 2 हजार से ज्यादा मरीजों की मौत हो रही है। कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच देश का मेडिकल सिस्टम पूरी तरह फेल होता दिख रहा है। अस्पतालों में ऑक्सीजन, बेड्स, आईसीयू बेड्स, रेमेडिसविर और दवाईयों की किल्लत हो गई है। इस बीच वेंटिलेटर की कमी की खबरें भी आने लगी हैं। हालांकि वेंटिलेटर बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि देश में वेंटिलेटर की कमी नहीं है। उनका कहना है कि देश में वेटिंलेटर चलाने वाले ट्रेंड कर्मचारियों की कमी है। दावा किया जा रहा है कि देश के कई अस्पतालों में इनवेसिव वेंटिलेटर चलाने वाले ट्रेंड कर्मचारियों की कमी है।
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Rediff.com में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की इनवेसिव वेंटिलेटर बनाने वाली लीडिंग कंपनी स्कन्राय (Skanray) टेक्नोलॉजीज के संस्थापक वी अल्वा ने कहा है, ''देश में चुनौती मशीनों या वेटिंलेटर की कमी की नहीं है। बल्कि ट्रेंड कर्मचारियों की है, जो इन मशीनों को सही तरीके से चला सकें।''
वी अल्वा ने कहा, ''असल में ज्यादा कमी इस बात की है कि इन इनवेसिव वेंटिलेटर मशीनों को सही तरीके से ऑपरेट करने वाले ट्रेंड स्टाफ को इतनी जल्दी कहां से लाया जाए। हम पहले ही सरकार को 30,000 से अधिक वेंटिलेटर की आपूर्ति कर चुके हैं, इसके अलावा 5 हजार वेंटिलेटर प्राइवेट सेक्टर को दिए हैं। इसकी हम आवश्यकतानुसार अधिक आपूर्ति कर सकते हैं।''
उन्होंने कहा, ''देश में वर्तमान में 50 हजार वेंटिलटर्स पर सिर्फ 10 हजार ऐसे ट्रेंन्ड कर्मचारी हैं, जो इन हाई टेक्नोलॉजीज वाली मशीनों का गंभीर स्थिति में अच्छे से कैसे इस्तेमाल करना है, जानते हैं। इसके अलावा इनवेसिव वेंटिलेटर का सही तरीके से देश में वितरण भी नहीं हो रहा है।''
जानिए वेंटिलेटर कैसे करता है काम और क्या है इनवेसिव वेंटिलेटर?
वेंटिलेटर का काम किसी भी मरीज को सांस लेने में मदद करना है। आसान भाषा में कहे तो, जब किसी मरीज के श्वसन तंत्र में इतनी ताकत नहीं रह जाती कि वह खुद से सांस ले सके तो उसे वेंटिलेटर की जरूरत होती है और मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा जाता है। आम तौर पर दो तरह के वेंटिलेटर होते हैं। एक है-मैकेनिकल वेंटिलेटर, दूसरा है- इनवेसिव वेंटिलेटर, इसे नॉन इनवेसिव वेंटिलेट भी कहते हैं।
सामान्य तौर पर अस्पतालों में जो आईसीयू होते हैं, उसमें मैकेनिकल वेंटिलेटर का इस्तेमाल होता है। जो कि एक जो एक ट्यूब (पाइप) के जरिए श्वसन नली से जोड़ दिया जाता है। ये मरीज के फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है और शरीर से कॉर्बन डाइ ऑक्साइड को बाहर निकालता है।
वहीं नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर श्वसन नली नहीं बल्कि मुंह और नाक को कवर करके ऑक्सीजन फेफड़ों तक पहुंचाने का काम करता है। कोरोना काल में ज्यादातर नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर का इस्तेमाल किया जा रहा है।