125 साल बाद भी प्रासंगिक है स्वामी विवेकानन्द का शिकागो भाषण, क्यों?
नई दिल्ली। 11 सितंबर 1893 के 124 साल बाद 2017 में आज वही तारीख है। यह तारीख स्वामी विवेकानन्द के उस ऐतिहासिक भाषण का 125वां वार्षिक दिवस है जो उन्होंने अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म सम्मेलन में दिया था। दुनिया में कोई ऐसा भाषण नहीं मिलता जिसका संबोधन दिवस बर्थ डे की तरह मनाया जाता हो।
शिकागो में दिए स्वामी विवेकानंद के इस भाषण ने पूरी दुनिया में मचाया था तहलका
इसी बात से स्वामी विवेकानन्द के चिरस्मरणीय भाषण की ऐतिहासिकता साबित हो जाती है। आखिर उस भाषण में ऐसा क्या था जिसने दुनिया को अचम्भित कर दिया! भाषण लिखित है, वेबसाइट से लेकर पुस्तकों में दुनिया भर में अंग्रेजी, हिन्दी समेत सभी भाषाओं में उपलब्धि है।
महिला-पुरुष में बंटी नहीं, भाई-बहन बनकर जुड़ी हुई है दुनिया
पहली बात जो दुनिया जानती है कि स्वामी विवेकानन्द ने अपने संबोधन में "मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनो" कहकर अपना भाषण शुरू किया था और यह संबोधन सुनकर सभागार कई मिनट तक तालियां पीटता रह गया। यह संबोधन नया था उन लोगों के लिए, जो दुनिया को महिला और पुरुष में बांटकर देखने की आदी रही थी। स्वामी विवेकानन्द ने हर स्त्री और हर पुरुष में भाई और बहन का संबंध दिखाया था। मानव-मानव में रिश्ता समझाया था।
प्रेरणा की धरती है भारत भूमि
भाषण के आरम्भ में ही स्वामी विवेकानन्द ने यह जता दिया था कि जिस भारत भूमि का वे प्रतिनिधित्व कर रहे हैं वह संन्यासियों की परंपरा के लिहाज से सबसे प्राचीन है जिसने दुनिया को धर्म का मार्ग दिखाया है और जो पूरब में ज्ञान का सूरज रहा है। महज गौरवपूर्ण अभिव्यक्ति की परंपरा से नहीं, बल्कि उदाहरणों के जरिए स्वामी विवेकानन्द ने उपस्थित धर्म सम्मेलन को जता दिया कि न सिर्फ भारत भूमि सहिष्णु रही है बल्कि सार्वभौमिकता का आगे बढ-चढ़ कर पालन करने वाली धरती रही है। स्वामी विवेकानन्द ने यह बात जोर देकर समझायी थी कि दुनिया में यही इकलौती धरती है जिसने सभी धर्म को उनके लिए सबसे जरूरत की घड़ी में आश्रय दिया- चाहे वे पारसी हों, या इजराइली या फिर कोई और।
रास्ते अलग हैं पर गंतव्य है एक
स्वामी विवेकानन्द ने धर्म सम्मेलन में मौजूद दुनिया के विद्वानों को संस्कृत के श्लोक पढ़कर यह बात समझायी थी कि भारत की धरती देवभूमि रही है। ईश्वर प्राप्ति के मार्ग चाहे अलग-अलग हों, लेकिन सभी आखिरकार समुद्र की तरह ईश्वर के चरण में ही पहुंचते हैं। गीता के श्लोक से स्वामीजी ने ईश्वरीय वाक्य दोहराए थे जिसमें कहा गया था कि जो मेरी ओर आता है, मैं उसकी ओर चला आता हूं। अलग-अलग मार्गों से लोग मेरी ओर ही आते हैं।
कम शब्दों में भारतीय संस्कृति से दुनिया का कराया साक्षात्कार
कम शब्दों में भारत भूमि, परंपरा, संस्कृति और धर्म से दुनिया को परिचित कराने का जो चमत्कार स्वामी विवेकानन्द ने कर दिखाया था, यह उसी का नतीजा है कि उनके अनुयायी दुनिया भर में हैं। स्वामीजी ने सिर्फ दवा ही नहीं बतलायी थी, अहतियातन बीमारी से बचने का इलाज भी बताया था। उन्होंने शिकागो में कहा था कि दुनिया में धर्म के नाम पर सबसे ज्यादा रक्तपात हुआ है, कट्टरता और सांप्रदायिकता की वजह से सबसे ज्यादा खून बहे हैं जिसे हर हाल में रोकना होगा।
दूसरे धर्म को नष्ट करने से नहीं होता है धर्म का प्रचार
स्वामीजी ने धर्म के प्रचार-प्रसार का मतलब समझाते हुए कहा था कि दूसरे धर्म को नष्ट करना किसी धर्म का प्रचार करने का तरीका नहीं हो सकता। उन्होंने धर्मांधता का विरोध करने और मानवता को प्रतिष्ठित करने की अपील दुनिया भर के धर्मावलंबियों से की थी।
आज भी दुनिया को चाहिए को स्वामीजी की सीख
प्रासंगिकता
ने
स्वामीजी
के
भाषण
को
बनाया
चिरस्मरणीय
आज
स्वामीजी
का
भाषण
125वें
वार्षिक
दिवस
पर
पढ़ते
हुए
भी
ऐसा
लगता
है
मानो
अभी
तैयार
की
गयी
हो।
यही
प्रासंगिकता
इस
भाषण
को
महान
बनाती
है।
स्वामी
विवेकानन्द
सनातन
परंपरा
का
प्रतिनिधित्व
करने
वाले
ऐसे
योगी
रहे
हैं
जिन्होंने
संसार
में
शांति,
विश्वबंधुत्व
के
विचार
को
आगे
बढ़ाया
और
दया,
परोपकार,
करुणा,
सद्भावना,
भाईचारा
जैसे
सदाचार
को
जीवन
में
उतारा।
उन्होंने
कट्टरता,
धर्मांधता,
जातिवाद,
छुआछूत,
कुरीतियों
और
दासता
का
विरोध
किया।
स्वामीजी
ने
आज़ादी
का
सपना
देखा।
देश
को
परतंत्रता
के
बंधनों
से
उखाड़
फेंकने
का
सपना
देखा।
यह
सब
उस
युग
में
उन्होंने
महसूस
किया,
जब
ऐसी
सोच
कल्पना
लगती
थी।
एक
धर्म
दूसरे
धर्म
का
दुश्मन
था,
एक
राष्ट्र,
दूसरे
राष्ट्र
को
शक
की
नज़र
से
देखता
था
और
साम्राज्य
विस्तार
ही
राष्ट्रनीति
हुआ
करती
थी।
आज भी दुनिया को चाहिए को स्वामीजी की सीख
आज स्वामीजी के शिकागो भाषण के 125वें वार्षिक दिवस पर दुनिया एक बार फिर शांति, भाईचारा मांग रही है, कट्टरता तोड़ने की ज़रूरत महसूस कर रही है। शान्ति में भारत की भूमिका और अहमियत वैसी ही है जैसा कि स्वामी विवेकानन्दजी ने कहा था। कहने का अर्थ ये है कि स्वामीजी के भाषण को इस दिन दुनिया के सामने उसी मजबूती के साथ रखने की जरूरत है जिस हिसाब से स्वामीजी ने रखा था। ऐसा करके ही हम विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।