Bhopal Gas Tragedy: जानें कब और कितना मुआवजा मिला भोपाल गैस कांड के पीड़ितों को
भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के लिए सुप्रीम कोर्ट में डाली गई केंद्र सरकार की क्यूरेटिव पिटीशन खारिज कर दी गई।
Bhopal Gas Tragedy: सुप्रीम कोर्ट ने 14 मार्च 2023 को केंद्र सरकार की उस क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया, जिसमें सरकार ने 1984 के भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजा देने की मांग की थी। इस याचिका पर कोर्ट ने आदेश दिया कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के पास जमा 50 करोड़ रुपये की राशि केंद्र सरकार द्वारा लंबित दावों को पूरा करने के लिए उपयोग की जानी चाहिए। यदि कोई हो तो! यही नहीं, कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि केंद्र की क्यूरेटिव पिटीशन का कोई कानूनी सिद्धांत नहीं है।
केंद्र की क्या मांग थी
साल 2010 में भोपाल गैस त्रासदी मामले पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक क्यूरेटिव पिटीशन दायर की थी। इस याचिका में कहा गया कि 1989 में जो हर्जाना तय किया था उसे अब बढ़ाने की जरुरत है।
साथ ही सरकार का कहना था कि हत्याकांड में आरोपी कंपनी को राज्य एवं केंद्र सरकारों द्वारा किये गये राहत एवं पुनर्वास कार्यों के खर्चे का भी भुगतान करना चाहिए। इस प्रकार केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) और उसकी सहायक कंपनियों से कुल $8.1 बिलियन हर्जाने की रकम वसूलने की मांग रखी।
अब तक कितना दिया मुआवजा
हत्याकांड के तुरंत बाद यूनियन कार्बाइड ने अमेरिकी कोर्ट के समक्ष मात्र $7 मिलियन की राहत राशि देने की पेशकश की। फिर एक अस्पताल के नाम पर $10 मिलियन और देने को कहा। तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि कंपनी $3.3 बिलियन हर्जाने के रूप में दे। फिर यह मामला कोर्ट में चला गया और 14 फरवरी 1989 को सुप्रीम कोर्ट में कंपनी ने बताया कि केंद्र सरकार और उसके बीच हर्जाने को लेकर समझौता हो गया है।
अतः इस फैसले के अनुसार 10 दिनों के अंदर यूसीसी ने $420 मिलियन का भुगतान कर दिया। $5 मिलियन वह पहले ही जमा करवा चुकी थी। बाकि के $45 मिलियन यूसीआईएल (UCIL) ने भारतीय रुपये के बराबर कोर्ट में जमा करवा दिए। इस प्रकार कुल 425 मिलियन अमेरिकी डॉलर में और $45 मिलियन के 68.99 करोड़ रुपये का हर्जाना कंपनी ने भर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह पैसा रिजर्व बैंक के पास जमा करवा दिया। बैंक ने इस पैसे को बांड इत्यादि के माध्यम से निवेश कर दिया। गौरतलब है कि इस निवेश से 2001-02 में ही रिजर्व बैंक की ₹54,01,12,704 की कमाई हो गयी।
केंद्र सरकार के अनुसार साल 2002 तक इस जमा रकम में से ₹1151.11 करोड़ पीड़ितों को बांट दिये गये। जबकि तब रिजर्व बैंक के पास ₹1503.1 करोड़ बच गये। फिर साल 2003 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी। जिसमें याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अब जो बची रकम है उसका बंटवारा न्यायिक तरीके से हो। दरअसल उनका कहना था कि इस मुआवजे पर रिजर्व बैंक में जमा रकम पर सरकार को तो ब्याज मिल रहा है लेकिन पीड़ितों को नहीं। इसलिए हर्जाना यथानुपात मुआवजा (Pro-rata Compensation) में दिया जाये। कोर्ट ने अगले साल इस पर अपनी मुहर लगा दी।
अब गैस हत्याकांड के पीड़ितों को तीन तरीकों से मुआवजा दिया गया। पहला, सुप्रीम कोर्ट के 14 फरवरी 1989 के आदेश के मुताबिक 2002 तक दिया गया। फिर यथानुपात मुआवजा (Pro-rata Compensation) जोकि सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में अपने एक आदेश में देने को कहा था। तीसरा तरीका था, अनुग्रहपूर्वक यानी Ex-gratia जोकि भारत सरकार ने 2010 से 2012 के बीच आदेश दिए थे।
इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट के 1989 के आदेश के मुताबिक 2015 में केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया कि ₹1548.59 करोड़ वास्तविक हर्जाने के रूप में दिए जा चुके हैं। यथानुपात मुआवजा के रूप में जनवरी 2015 तक ₹1511.48 करोड़ की राशि आवंटित की गयी। इसी प्रकार जनवरी 2015 तक ही कुल ₹749.29 करोड़ अनुग्रहपूर्वक यानी Ex-gratia के रूप में दिए जा चुके हैं। साल 2014-15 से 2018-19 तक कुल ₹106.47 करोड़ भी पीड़ितों में बांटे जा चुके हैं।
कुल कितने पीड़ित थे
फरवरी 2020 में केंद्र सरकार के मुताबिक वास्तविक मुआवजा 573,956 मामलों में, यथानुपात मुआवजा (Pro-rata Compensation) 5,63,078 मामलों में और अनुग्रहपूर्वक यानी Ex-gratia 49,855 लोगों को दिया गया।
राहत एवं पुनर्वास कार्यक्रम
मुआवजें के अलावा, केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश सरकार ने पीड़ितों को राहत देने के लिए समय-समय पर कई योजनायें चलाई। इसमें मुफ्त गैस सिलेंडर देने से लेकर पीड़ितों का मुफ्त इलाज शामिल हैं। किड़नी, कैंसर और लीवर जैसी बीमारियों का खर्चा भी राज्य सरकार ने उठाने की बात कही थी।
शुरुआत में 1985 से 1989 तक केंद्र सरकार ने राहत एवं पुनर्वास के लिए कुल ₹102 करोड़ खर्च किये गये। फिर अगले पांच साल के लिए एक एक्शन प्लान बनाकर राज्य सरकार को ₹258 करोड़ मुहैया करवाए गए। इसमें पीड़ितों के लिए स्वास्थ्य, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण के खर्चे शामिल थे। इसी प्रकार 2010 में भी केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने मध्य प्रदेश सरकार को नये एक्शन प्लान के अंतर्गत ₹272.75 करोड़ उपलब्ध करवाए थे। इन दोनों ही योजनाओं में केंद्र सरकार की 75 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। बाकि जिम्मेदारी राज्य सरकार को उठानी थी।
पीड़ितों को साल 2006 में पीने का साफ पानी उपलब्ध करवाने के लिए केंद्र सरकार ने भोपाल म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को ₹14.18 करोड़ की राशि उपलब्ध करवाई। इसके अलावा, साल 2010 में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने भोपाल में नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च इन एन्वाइरोमेंटल हेल्थ (NIREH) की स्थापना की। इसके लिए केंद्र सरकार ने पहले कुल एक करोड़ 38 लाख रुपये से ज्यादा के मेडिकल उपकरण खरीदे। बाद में ₹7 करोड़ के मेडिकल उपकरण और खरीदे गये।
दोषी कौन लोग थे
साल 2010 को भोपाल की एक कोर्ट ने कंपनी समेत सात अधिकारियों को दोषी ठहराया। इन्हें आईपीसी 304A, 336, 337, 338 और 35 के तहत दोषी माना गया। इन दोषियों में केशव महिंद्रा, वी.पी. गोखले, किशोर कामदार, जे. मुकुंद, एस.पी. चौधरी, वी.पी. गोखले, एस.आई कुरैशी, साथ ही यूसीआईएल शामिल थे।
कंपनी को छोड़कर बाकि अपराधियों पर कोर्ट ने अलग-अलग धाराओं कुल 3 साल 9 महीनों की सजा दी। जबकि सभी पर कुल मिलाकर ₹712,250 का आर्थिक दंड लगाया। वहीं यूसीआईएल के मालिकों को जेल की सजा न देकर बस आर्थिक जुर्माना लगाया गया जोकि कुल ₹501,750 था।
इन पर भी लगे थे आरोप
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यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड का चेयरमैन वारेन एंडरसन इस त्रासदी का मुख्य आरोपी था लेकिन उसे कभी सजा नहीं मिली। वहीं इस मामले के जद में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पी.वी. नरसिम्हाराव जैसे नाम भी सामने आये। जबकि तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव आर.डी. प्रधान, मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव ब्रह्मस्वरूप का भी नाम खूब उछला था। हालांकि, इसमें से आज कोई भी जीवित नहीं हैं।
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