दूसरे धर्म की 'बहु' मंजूर, 'दामाद' नहीं
देवबंद की दीपिका
सहारनपुर जिले के देवबन्द की दीपिका और जिया-उल-हक के बीच प्रेम हो गया। वो ये जानते थे कि घरवाले शादी की रजामंदी नहीं देंगे इसलिए दोनों ने घर से भागकर शादी कर ली। जैसा कि होता है। दीपिका के घर वालों ने जिया के खिलाफ बेटी को अगवा करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी। लड़के ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में निकाहनामा दिखाकर अपहरण के मामले में गिरफ्तारी पर रोक लग वाली। हाईकोर्ट ने 20 दिन के अन्दर सहारनपुर कोर्ट को दीपिका के बयान लेने के लिए कहा। 5 जून को सहारनपुर की कोर्ट में दीपिका जांनिसार नाम के वकील के चैम्बर में पहुंची। उसके पहुंचने की खबर कोर्ट के उन वकीलों को गयी, जो संघ परिवार से ताल्लुक रखते थे।
वकीलों ने सहारनपुर के हिन्दूवादी संगठनों को खबर कर दी। वकीलों और हिन्दुवादी संगठनों ने जांनिसार के चैम्बर में घुसकर तोड़फोड़ और मारपीट की। वे दीपिका को अपने साथ ले जाना चाहते थे। लेकिन उनकी नहीं चली। पुलिस ने दीपिका को नारी निकेतन भेज दिया। 10 जून को दीपिका ने कोर्ट में बयान देकर कहा कि वह जिया साथ जानो चाहती है। हम दोनों ने शादी कर ली है। कोर्ट ने दोनों को बाइज्जत घर भेज दिया। स्वर्ग में बनी जोड़ी को एक साथ रहने के लिए क्या-क्या नहीं सहना पड़ा और आगे क्या सहना पड़ेगा, यह वही जानता है, जो स्वर्ग में जोड़ियां बनाता है।
मेरठ
की
अमरीन
दूसरा
मामला
मेरठ
का
है।
सहारनपुर
की
दीपिका
और
जिया
की
तरह
परतापुर
के
गांव
नगला
पातु
के
लोकेश
और
खरखौदा
की
अमरीन
की
किस्मत
अच्छी
नहीं
थी।
या
कह
सकते
हैं
कि
दोनों
की
जोड़ी
स्वर्ग
में
नहीं
बनी
थी।
अमरीन
और
लोकेश
बीच
प्रेम
हुआ।
दोनों
ने
घर
से
भागकर
गाजियाबाद
में
5
मई
को
आर्यसमाज
मंदिर
में
शादी
कर
ली।
अमरीन
शिवानी
बन
गयी।
9
मई
को
दोनों
को
लोकेश
के
घरवालों
ने
हापुड़
में
पकड़
लिया।
लोकेश
के
परिजनों
ने
अमरीन
को
उसके
मां-बाप
को
बुलाकर
उन्हें
सौंप
दिया।
लेकिन
अमरीन
और
लोकेश
अलग
होने
को
तैयार
नहीं
थे।
8
जून
को
समाज
के
ठेकेदारों
की
पंचायत
हुई।
फैसला
हुआ
कि
दोनों
के
बीच
तलाक
कराया
जाए।
दोनों
से
कोरे
कागजों
पर
दस्तख्त
करने
का
दबाव
बनाया
गया
तो
पहले
लोकेश
और
फिर
अमरीन
ने
सल्फास
खाकर
अपनी
जा
दे
दी।
प्रियंका
ने
जान
दी
तीसरा
मामला
मेरठ
के
ही
जानी
गांव
का
है,
जिसमें
लड़के
और
लड़की
का
धर्म
एक
ही
है।
प्रियंका
अंकुर
को
चाहती
थी।
घरवाले
राजी
नहीं
थे।
पहले
प्रियंका
ने
नहर
में
जान
देने
की
कोशिश
की।
प्रियंका
के
परिजन
फिर
भी
नहीं
पसीजे।
11
जून
को
प्रियंका
ने
जहर
खाकर
अपनी
जान
दे
दी।
शायद
प्रियंका
और
अंकुर
की
जोड़ी
भी
स्वर्ग
में
तय
नहीं
हो
पायी
थी।
ये तीन मामले ताजातरीन हैं। इनमें दो मामलों में लड़के और लड़की ने खुद मौत के गले लगाया है। ऐसे मामलों की भी भरमार है, जिनमें लड़की के घरवालों ने लड़की को सरेआम गोलियों से छलनी कर दिया या चाकू से गोद डाला। इस तरह के मामले शहरों से लेकर अतिपिछड़े गांव तक में हो रहे हैं। बहस इस बात पर है कि जब यह कहा जाता है कि जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं तो फिर धर्म और समाज के ठेकेदार क्यों बीच में आते हैं ? या फिर यह झूठ है कि जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं।
'इज्जत'
का
प्रश्न
एक
बात
जो
सामने
आ
रही
है,
वह
ये
है
कि
यदि
लड़का
मुस्लिम
है
और
लड़की
हिन्दू
है
तो
मुसलमानों
को
कोई
परेशानी
नहीं
होती।
तब
परेशानी
हिन्दुओं
को
होती
है।
हिन्दुवादी
संगठन
तो
ऐसे
मामलों
में
सड़कों
तक
पर
उतर
आते
हैं।
इस
प्रकार
के
मामलों
को
हिन्दुवादी
संगठन
'लविंग
जेहाद'
कहते
हैं।
यदि
लड़की
मुस्लिम
है
और
लड़का
हिन्दु
है
तो
हिन्दवादी
संगठन
खुश
होते
हैं,
मुसलमानों
की
इज्जत
चली
जाती
है।
दूसरे
शब्दों
में
कहें
तो
दूसरे
धर्म
की
'बहु'
मंजूर
है,
'दामाद'
मंजूर
नहीं
है।
दरअसल, हमारे देश के अस्सी प्रतिशत लोग कस्बों और गांवों में रहते हैं। जहां कुछ परम्पराएं हैं। रस्मो रिवाज हैं। जिन्हें छोड़ना मुमकिन नहीं हैं। इधर, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने कस्बों और गांवों के बच्चों और युवाओं को ग्लैमर और इश्क-मौहब्बत की कहानियां दिखाकर इस मोड़ पर खड़ा कर दिया है कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि क्या गलत है और क्या सही है।
इसलिए मेरठ और सहारनपुर जैसे कस्बाई संस्कृति वाले शहरों, कस्बों और गांवों में प्रेम में जान देने और लेने के मामले खतरनाक हद तक बढ़ते जा रहे हैं। दिल्ली और मुबई जैसे महानगर ऐसे मामलों से लगभग उबर चुके हैं। वहां के लोग अब अन्तरधार्मिक प्रेमप्रसंग और शादियां पर चौकते या उग्र प्रतिक्रिया नहीं करते।
[सलीम सिद्दीकी पेशे से पत्रकार और शौकिया ब्लागर हैं, भारतीय राजनीति तथा मुसलिम मुद्दों पर सशक्त टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं।]