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BBC and India: बीबीसी के भारत-विरोधी कार्यक्रमों पर इंदिरा और राजीव गांधी भी हुए थे नाराज

बीबीसी एकबार फिर से चर्चा में है लेकिन इस बार अपनी खबरों को लेकर नहीं बल्कि एक बहुत पुराने वीडियो को अब प्रसारित करने के लिए, जिसे मोदी सरकार द्वारा झूठा प्रोपेगंडा बताया गया है।

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BBC and India Coverage

BBC and India Coverage: भारत में बीबीसी को लेकर अभी जो हंगामा मचा हुआ है वह कोई नया नहीं है। आज राहुल गांधी को नेता मानने वाली कांग्रेस अपने राजनैतिक उद्देश्यों के लिए चाहे जो पक्ष ले लेकिन एक समय था जब राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी दोनों ने प्रधानमंत्री रहते हुए इस मीडिया संस्थान की गलत और प्रोपेगंडा आधारित प्रसारणों के खिलाफ दर्जनों बार शिकायत भी की और कड़े कदम भी उठाए थे।

भारत-पाकिस्तान युद्ध में गलत रिपोर्टिंग

विदेश मंत्री एम.सी. छागला ने 27 मार्च 1967 को लोकसभा में बताया कि भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय बीबीसी ने कई मौकों पर भारत-विरोधी प्रोग्राम चलाये थे। जिनके खिलाफ लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग ने बीबीसी प्रबंधन के समक्ष अपना विरोध भी जताया था। फिर भी, बीबीसी ने अपने भारत-विरोधी प्रसारणों को युद्ध के दौरान लगातार जारी रखा। इस युद्ध के दौरान बीबीसी ने जमकर झूठ बोला था। जैसे दिल्ली स्थित कनॉट प्लेस की पहले से टूटी हुई कुछ इमारतों को बीबीसी ने यह दावा करते हुए फिल्माया कि भारत की राजधानी युद्ध में तहस-नहस हो गयी है।

भारत स्थित कार्यालय बंद कर दिया

1970 में फ्रेंच फिल्म निदेशक लुईस माल (Louis Malle) ने 'कलकत्ता' और लेखक डॉम मोरेज ने 'The Bewildered Giant' दो शीर्षकों के साथ दो फिल्मों का निर्माण किया। इन फिल्मों में भारत-विरोधी सामग्री अधिक थी, इसलिए लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग को इन दोनों के खिलाफ कई पत्र प्राप्त हुए। जिसके बाद, उच्चायोग ने बीबीसी और ब्रिटिश विदेश मंत्रालय का इस तरफ ध्यान आकर्षित किया। साथ ही यह स्पष्ट किया कि इस तरह की फिल्म दोनों देशों के सामरिक गठबंधन के लिए ठीक नहीं है।

बावजूद इसके, बीबीसी ने उस साल 22 जुलाई को लुईस माल की एक और फिल्म 'Ghost of India' का प्रसारण कर दिया। इसके तुरंत बाद, भारतीय उच्चायोग ने संज्ञान लेते हुए फिर से बीबीसी और ब्रिटिश विदेश मंत्रालय को आगाह किया कि यह दोनों देशों के आपसी संबंधों को ध्यान में रखते हुए ठीक नहीं है।

भारत के इन विरोधों के बाद, ब्रिटिश विदेश मंत्रालय ने स्वीकार किया कि इस तरह का प्रसारण नहीं होना चाहिए, लेकिन बीबीसी एक स्वायत्त संस्था है इसलिए हम इसमें कुछ नहीं कर सकते। वहीं बीबीसी की तरफ से भी एक असंतोषजनक जवाब भारत सरकार को भेजा गया। गौरतलब है कि जब यह बातचीत चल रही थी, तब भी बीबीसी ने लुईस माल द्वारा निर्मित भारत-विरोधी फिल्मों का प्रसारण कई सीरिज के माध्यम से जारी रखा था।

आखिर इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत सरकार ने सख्ती बरती और 14 अगस्त को बीबीसी से कहा कि वे भारत में अपना दफ्तर बंद कर दें। भारत सरकार ने इसकी अधिकारिक सूचना ब्रिटेन के भारत स्थित उच्चायोग के माध्यम से ब्रिटेन सरकार को भी पहुंचा दी। जिसके बाद, अपने दफ्तर को शुरू करवाने के लिए बीबीसी ने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार से कई बार गुहार लगायी थी, जिसकी जानकारी विदेश राज्यमंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह ने 2 दिसंबर 1970 को राज्यसभा में दी।

लगभग अगले छह महीनों तक इंदिरा गांधी सरकार ने बीबीसी पर प्रतिबंध नहीं हटाया। दरअसल, 28 जुलाई 1971 को राज्यसभा में विदेश मंत्री से इस सन्दर्भ में प्रश्न किया गया तो विदेश राज्यमंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह ने बताया कि प्रतिबंध हटाने का प्रस्ताव अभी सरकार के सामने है, लेकिन इस पर कोई विचार नहीं किया गया है। आखिरकार 1972 में केंद्र सरकार ने बताया कि बीबीसी के लंदन मुख्यालय ने भारत सरकार से संपर्क कर उसके दफ्तरों को खोलने का अनुरोध किया था। उन्होंने भारतीय नियम-कानूनों का पालन करना भी स्वीकार कर लिया है, अतः बीबीसी पर लगाया प्रतिबंध अब हटा लिया गया है।

बीबीसी के इस भारत-विरोधी एजेंडे पर लोकसभा में अधिक हंगामा मचा था। लोकसभा में तो तारकेश्वरी सिन्हा ने संसद के नियमों के तहत इस मामले को अर्जेंट पब्लिक इम्पोर्टेंस करार देते हुए इस पर चर्चा कराने का अनुरोध किया था। अतः 27 अगस्त 1970 को इस विषय पर विस्तृत चर्चा भी हुई थी, जहां कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों ने भी इस प्रतिबंध को जायज बताया था।

भारतीय पासपोर्ट को जलाया

जब गोवा के भारत में अधिमिलन पर भारतीय सेनाओं ने वहां कार्यवाही की तो बीबीसी का भारत-विरोधी एजेंडा चल रहा था। उसने गोवा के अंग्रेजी लेखक डॉम मोरेज को आमंत्रित किया जिसने बीबीसी के दफ्तर में भारतीय पासपोर्ट को जलाते हुए कहा कि भारत ने गोवा में अतिक्रमण किया है और मैं आज से भारतीय नागरिक नहीं हूं। भारतीय अधिकारिक दस्तावेज पासपोर्ट को जानबूझकर जलाने जैसे प्रसारण को भी बीबीसी ने पूरी दुनिया में दिखाया था।

जब भारत के लंदन स्थित उच्चायोग ने विरोध जताया

बीबीसी ने भारतीय टेक्सटाइल को बदनाम करने के लिए एक प्रोग्राम बनाया था। जिस पर राज्यसभा में 3 मार्च 1981 वाणिज्य राज्यमंत्री खुर्शीद आलम खान ने बताया कि भारतीय उच्चायोग के माध्यम से भारत सरकार की विरोधात्मक प्रतिक्रिया बीबीसी के अधिकारियों को पहुंचा दी गयी है।

कुछ दिनों बाद, बीबीसी पर 4 अप्रैल 1981 को एक प्रोग्राम टेलीकास्ट हुआ। जिसमें भारत में अंधे लोग, बंबई पुलिस में भ्रष्टाचार, ड्रग व्यापार, गोवा में हिप्पी, महाराष्ट्र में किसान आन्दोलन, कर्नाटक के तंबाकू किसानों की समस्याएं सहित भारत की तत्कालीन स्थिति को नकारात्मक रूप से दर्शाया गया था।

इस प्रोग्राम में भी भारत की तस्वीर को गलत तरीके से पेश किया गया था, इसलिए लन्दन स्थित भारतीय उच्चायोग ने आपत्ति भी जताई थी। जिसके बाद बीबीसी ने उच्चायोग के सामने अपनी गलती स्वीकार कर ली। तब भारत सरकार ने बीबीसी को स्पष्ट कहा था कि उन्हें आगे से अधिक ऑब्जेक्टिव और बैलेंस्ड रहना चाहिए। इस प्रोग्राम पर हिंदुस्तान टाइम्स ने भी एक खबर 'BBC feature ignores India's progress' शीर्षक के साथ प्रकाशित की थी।

इसी प्रकार, 18 जनवरी 1988 को बीबीसी ने फिर एक भारत-विरोधी कार्यक्रम पेश किया। जिसकी भाषा पर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार में विदेश मंत्री नटवर सिंह ने लोकसभा में 24 फरवरी 1988 को नाराजगी व्यक्त की थी। इस प्रसारण के खिलाफ तब राजीव गांधी सरकार ने ब्रिटिश सरकार को आगाह किया था।

खालिस्तानी चरमपंथ को बढ़ावा

बीबीसी ने 12 जून 1984 को खालिस्तानी चरमपंथी आन्दोलन के संस्थापक डॉ. जगजीत सिंह चौहान का एक भड़काऊ और हिंसक इंटरव्यू रेडियो पर प्रसारित किया था। जिसके चलते देशभर में बीबीसी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। संसद में भी यह मामला 2 अगस्त 1984 को उठाया गया।

राज्यसभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से प्रश्न पूछा गया कि क्या सरकार ने बीबीसी द्वारा भारत विरोधी प्रोपोगंडा चलाने के खिलाफ ब्रिटिश सरकार के समक्ष अपना विरोध जताया है? इसके जवाब में, विदेश राज्यमंत्री ए.ए. रहीम ने बताया कि इस ब्रॉडकास्ट को लेकर भारतीय उच्चायोग ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष अपना विरोध जता दिया है।

बीबीसी पर इस बात के भी आरोप लगाये जाते हैं कि जब जरनैल सिंह भिंडरावाले ने अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया था, तो सामान्यतः किसी भी मीडिया संस्थान को मंदिर परिसर में जाने की अनुमति नहीं थी। मगर बीबीसी अकेला ऐसा मीडिया संस्थान था जिसके प्रतिनिधि खालिस्तानी चरमपंथियों के सहयोग से मंदिर के अंदर एक कमरे में रह रहे थे।

भारत के आतंरिक मामलों पर गलत जानकारी

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17 दिसंबर 1992 को नरसिम्हा राव सरकार में विदेश राज्यमंत्री आर.एल. भाटिया ने राज्यसभा में बताया कि "बीबीसी ने 'Nuclear India: A dream gone sour' नाम से एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई थी।" उन्होंने आगे बताया कि यह फिल्म परमाणु उर्जा के शांतिपूर्ण प्रयोग में भारत की उपलब्धियों को कमतर दिखाने का प्रयास है। इन गलत सूचनाओं के खिलाफ लन्दन में हमारे उच्चायोग ने भारत के खिलाफ लगाये आरोपों का ठीक से खंडन किया है।"

यह भी पढ़ें: BBC Documentary Row: बीबीसी की विश्वसनीयता का बढ़ता संकट

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

Comments
English summary
when indira rajiv gandhi rao government restricted bbc anti-India program
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