Private Sector in Space: अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र का 'मिशन प्रारंभ'
सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की भागीदारी अब जल-थल-नभ की सीमाएं लॉंघकर अंतरिक्ष में प्रवेश कर चुकी है। उम्मीद की जा रही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और अंतरिक्ष अभियानों में इससे काफी लाभ मिलेगा।
Private Sector in Space: पिछले महीने देश के पहले निजी रॉकेट विक्रम-एस की सफल लॉन्चिंग हुई और इसके कुछ ही दिन बाद, आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा में पहले निजी लॉन्चपैड की शुरूआत। इन दो ऐतिहासिक पलों ने भारतीय अंतरिक्ष बाजार में बेशुमार संभावनाओं के द्वार खोल दिये हैं।
मिशन 'प्रारंभ' के अंतर्गत तीन उपग्रहों को ले जाकर कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाला विक्रम-एस, स्काईरूट एयरोस्पेस कंपनी का उत्पाद है। वहीं, श्रीहरिकोटा स्थित निजी लॉन्चपैड, स्पेस टेक स्टार्टअप अग्निकुल कॉसमोस द्वारा डिजाइन किया गया है। अग्निकुल इसी महीने अपनी सबऑर्बिटल उड़ान अग्निवाण-1 का भी परीक्षण करने जा रही है।
अभी तक इसरो के एकाधिकार वाले अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों के प्रवेश की ये हालिया घटनाएं, भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों को नयी दिशा देने वाली साबित होंगी, इसमें कोई संदेह नहीं है।
निजी क्षेत्र की भागीदारी से बढ़ेगा महत्व
अंतरिक्ष अभियानों में निजी क्षेत्र के प्रवेश के तीन फौरी लाभ तो अभी भी देखे जा सकते हैं। एक, यह अंतरिक्ष अभियानों में नवाचार को प्रोत्साहित करेगा। दूसरा, भविष्य में काफी मुनाफा देने वाला माना जा रहा भारत का अंतरिक्ष बाजार भारी मात्रा में विदेशी निवेश को आकर्षित करेगा। और तीसरा, अधिक निजी कंपनियों की मौजूदगी इस क्षेत्र को एकाधिकार से मुक्त कर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देगी। इससे अभियानों की गति, गुणवत्ता और संख्या में वृद्धि होगी और लागत घटेगी। ऐसा होगा तो दूसरे बहुत सारे देश भी अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए भारत का रुख करेंगे, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा और साख बढ़ेगी।
एक दशक से पकड़ी है तेज रफ्तार
अंतरिक्ष विजय के इस भारतीय अभियान का आगाज तो वर्ष 2013 में ही हो गया था, जब भारत ने सिर्फ 74 मिलियन डॉलर ( उस समय के हिसाब से करीब साढ़े चार सौ करोड़ रूपये) के खर्च में अपना महत्वाकांक्षी मार्स ऑर्बिटर मिशन लॉन्च कर दुनिया को चौंका दिया था। यह राशि, नासा के मैवेन मार्स मिशन पर आयी 671 मिलियन डॉलर के खर्च के दस प्रतिशत से भी कम थी। इसरो की इस सफलता ने अंतरिक्ष अभियानों के मामले में भारत को रातों-रात विकासशील से विकसित देशों की कतार में ला खड़ा किया।
जाहिर है, इसका सकारात्मक असर हमारे अंतरिक्षीय कारोबार पर भी पड़ा है। सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान संस्थान की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था में स्पेस सेक्टर का योगदान 36,794 करोड़ रुपये का है। लेकिन, अभी भी यह हमारी जीडीपी का सिर्फ 0.23% ही है। वर्ष 2025 तक इसमें 6% की वृद्धि का अनुमान है।
अंतरिक्ष नीतियों में बदलाव से मिले अच्छे नतीजे
इस क्षेत्र में प्राइवेट प्लेयर्स का आना, हालात को काफी बेहतर बना सकता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 2020 में अपनी अंतरिक्ष नीतियों में क्रांतिकारी बदलाव किये। इससे पहले निजी क्षेत्र का सहयोग सिर्फ सामान की आपूर्ति तक ही सीमित था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने रॉकेट और उपग्रह निर्माण व अन्य गतिविधियों में निजी क्षेत्र के साथ भागीदारी के लिए अपना दिल और दरवाजे दोनों खोल दिये।
नई नीति के तहत, अंतरिक्ष विभाग द्वारा इन-स्पेस (इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराजेशन सेंटर) नाम की एक नोडल एजेंसी नियुक्त की गयी। इस एजेंसी का मुख्य काम है, गैर-सरकारी प्रतिष्ठानों को इसरो के इन्फ्रास्ट्रक्चर, संसाधनों और लॉन्चिंग सुविधाओं के इस्तेमाल के लिए अधिकृत करना।
दूसरी अच्छी बात यह है कि स्पेस स्टार्टअप्स में निवेशकों का भरोसा भी लगातार बढ़ रहा है। पिछले ही महीने स्काईरूट को 400 करोड़ रुपये व अग्निकुल को 160 करोड़ रुपये का निवेश मिल चुका है। दूसरी कई स्पेस स्टार्टअप को भी निवेशकों की ओर से उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रियायें मिल रही हैं।
इन्हीं बदलते हुए हालातों का नतीजा है कि आज 150 से अधिक कंपनियॉं/ स्टार्टअप्स अंतरिक्ष उद्योग से संबंधित विभिन्न उपक्रमों से जुड़ने के लिए भारत सरकार को आवेदन कर चुकी हैं। इनमें अधिकतर कंपनियां उपग्रहों के पेलोड (कैमरे व अन्य डिवाइस), रॉकेट, ग्राउंड स्टेशन बनाने की इच्छुक हैं। करीब एक तिहाई कंपनियॉं, विभिन्न कार्यों के लिए अंतरिक्ष से प्राप्त जानकारियों तक पहुँच चाहती हैं।
मिलेगा अंतरिक्ष पर्यटन को बढ़ावा
इन कंपनियों में एस्ट्रोबोर्न स्पेस एंड डिफेंस टेक्नोलॉजीज और स्पेस औरा एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी प्रा.लि. प्रमुख हैं, जो क्रमशः क्रू मॉड्यूल और स्पेस सूट के विकास तथा अंतरिक्ष पर्यटन की योजना बना रही हैं। एस्ट्रोबोर्न का फोकस भारत की पहली निजी अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण सुविधा स्थापित करने पर है। वहीं, स्पेस औरा की योजना वर्ष 2025 तक स्पेस कैप्सूल का पहला प्रक्षेपण करने की है। इसके अंतर्गत औरा छह पर्यटकों और पायलट को स्पेस में ले जाने के लिए एक 10 फीट x 8 फीट आकार का स्पेस कैप्सूल विकसित कर रही है। प्रक्षेपण में समुद्र तल से 30 से 35 किमी ऊपर हीलियम या हाइड्रोजन गैस से भरे गुब्बारे की सहायता ली जायेगी।
एलन मस्क की स्पेसएक्स, रिचर्ड ब्रेंसन की वर्जिन गैलेक्टिक और जेफ बेजोस की ब्लू ऑरिजिन अंतरिक्ष पर्यटन की लुभावनी दुनिया में पहले से मौजूद हैं। ये कंपनियॉं, स्पेस में जाने के इच्छुक लोगों से प्रति व्यक्ति चार करोड़ रुपए लेती हैं। लेकिन यदि स्पेस औरा इस टिकट की कीमत को एक करोड़ रुपए तक रखने के अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल रहती है तो वह इन कंपनियों को कड़ी टक्कर दे सकती है।
अच्छी बात यह है कि इस क्षेत्र में पदार्पण करने वाली कई कंपनियॉं मुनाफे के साथ-साथ सस्टेनिबिलिटी और सॉल्यूशन पर भी काफी ध्यान दे रही हैं, जैसे कि पिक्सेल स्टार्टअप माइनिंग और डिजास्टर मैनेजमेंट में काम आने वाली इमेज हासिल करने में मदद करेगी तो बेंगलुरू बेस्ड दिगंतरा, अंतरिक्ष में लगातार बढ़ते जा रहे मलबे की मैपिंग में लगी है।
ये सारी बातें, उन आकलनों को मजबूती प्रदान करने वाली हैं, जो भारत के अगले दशक के भीतर एक अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की ओर संकेत कर रहे हैं। अभी हम शुरुआती दौर में हैं। लेकिन, भविष्य निस्संदेह भारत का ही है जो दुनिया की बजाय अब कायनात को मुट्ठी में कैद करने की राह पर आगे बढ़ चुका है।
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