इटली में मौसम की तरह क्यों बदलती हैं सरकारें?
इटली इन दिनों राजनीति उठापटक के दौर से गुज़र रहा है. राष्ट्रपति सर्जियो मात्तरेला ने आईएमएफ़ के पूर्व अर्थशास्त्री कार्लो कोत्तरेली को सरकार बनाने के लिए कहा है.
उनकी नियुक्ति तब हुई है जब इटली की दो जनवादी पार्टियों की गठबंधन वाली सरकार बनाने की कोशिश नाकाम रही. राष्ट्रपति ने फ़ाइव स्टार मूवमेंट और राइट विंग लीग के गठबंधन की ओर से वित्त मंत्री के पद के लिए दिए
इटली इन दिनों राजनीति उठापटक के दौर से गुज़र रहा है. राष्ट्रपति सर्जियो मात्तरेला ने आईएमएफ़ के पूर्व अर्थशास्त्री कार्लो कोत्तरेली को सरकार बनाने के लिए कहा है.
उनकी नियुक्ति तब हुई है जब इटली की दो जनवादी पार्टियों की गठबंधन वाली सरकार बनाने की कोशिश नाकाम रही. राष्ट्रपति ने फ़ाइव स्टार मूवमेंट और राइट विंग लीग के गठबंधन की ओर से वित्त मंत्री के पद के लिए दिए पाओलो सावोना के नाम को खारिज कर दिया था.
राष्ट्रपति का कहना था कि वह पाओलो सावोना को इसलिए वित्त मंत्री नहीं चुन सकते क्योंकि इससे विदेशी निवेशक चिंतित हो सकते हैं. जो पाओलो दरअसल यूरो को मुद्रा के तौर पर छोड़ने के पक्षधर हैं.
इस क़दम से गठबंधन में शामिल रही पार्टियां नाराज़ हैं और उनका कहना है कि वो राष्ट्रपति की ओर से नामित प्रधानमंत्री को संसद में ठुकरा देंगे.
वहीं पीएम-इन-वेटिंग का कहना है कि वह अगले साल की शुरुआत में फिर से चुनाव करवाएंगे.
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क्यों आई यह नौबत?
मार्च में जब यहां चुनाव हुए थे तो उम्मीद थी कि राजनीतिक अस्थिरता ख़त्म होगी और स्थिर सरकार बनेगी. मगर नतीजे आए तो किसी भी पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला.
पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी की पार्टी के नेतृत्व वाले राइट विंग गठबंधन को सबसे ज़्यादा वोट मिले और जनवादी पार्टी फ़ाइव स्टार मूवमेंट सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. सत्ताधारी लेफ़्ट विंग गठबंधन तीसरे नंबर पर रहा.
किसी को भी बहुमत नहीं मिलने के कारण ऐसे हालत बन गए थे कि कहा जाने लगा था कि नई सरकार के गठन के लिए गठबंधन बनाने और समझौते करने में कई हफ़्तों का समय लग सकता है. ऐसा हुआ भी. मई महीना ख़त्म होने को है, मगर अब तक यहां सरकार नहीं बन पाई है.
जनवादी पार्टी फ़ाइव स्टार मूवमेंट ने राइट विंग लीग के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की थी, मगर राष्ट्रपति सर्जिओ मात्तरेला ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से जुड़े रहे एक अर्थशास्त्री कार्लो कोत्तेरेली को सरकार बनाने का न्योता दिया है.
कार्लो ने ये न्यौता स्वीकार कर लिया है मगर उन्हें जल्द ही बहुमत साबित करना होगा. अगर वह बहुमत साबित कर देते हैं तो अगले चुनाव होने तक अंतरिम प्रधानमंत्री बन जाएंगे. लेकिन अगर वो नाकाम रहते हैं तो इटली में अगस्त के बाद एक बार फिर चुनाव होंगे.
लेकिन यह पहली बार नहीं है जब इटली में इस तरह के हालात पैदा हुए हैं. दूसरे विश्वयुद्ध से लेकर अब तक इटली में 65 सरकारें बदल चुकी हैं.
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बार-बार बदलती सरकारें
इटली में राजनीतिक अस्थिरता का इतिहास पुराना है. वहां पर भारत के राजदूत रहे राजीव डोगरा बताते हैं कि इसके कई कारण हैं.
वह कहते हैं, "इटली में मौसम की तरह सरकार बदलती है. कुछ लोग कहते हैं कि यह उनकी विविधता का एक उदाहरण है. आज हमें इटली एक देश के रूप में दिखता है लेकिन 1860 तक छोटे-छोटे प्रांतों में बंटा हुआ था. चुनावों में इन्हीं का फ़र्क उभरकर सामने आता है."
इटली के राजनीतिक हालात को समझने के लिए इसके राजनीतिक इतिहास पर भी नज़र डालनी होगी. रोमन राजशाही के अंत के बाद 509 ईसापूर्व से लेकर 28 ईसापूर्व तक यहां रोमन गणतंत्र रहा, जिसमें जनता के चुने हुए प्रतिनिधि सरकार चलाते थे.
इस दौर में आसपास के कई हिस्से इसमें शामिल हुए. फिर रोमन साम्राज्य का उदय हुआ, जो पश्चिमी सभ्यता का राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र था. लेकिन इसके बाद हालात तेज़ी से बदले.
मध्ययुग की शुरुआत में यहां पर हुए कई हमलों के कारण सामाजिक और राजनीतिक ढांचा तहस-नहस हो गया. 11वीं सदी तक इसके उत्तर और मध्य के हिस्सों ने समुद्री व्यापार, बैंकिंग और आधुनिक पूंजीवाद के चलते ख़ूब तरक्की की.
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आर्थिक विभाजन का इतिहास
इन हिस्सों में कई छोटे-छोटे शहरी राज्य थे, जहां पर काफ़ी हद तक लोकतांत्रिक व्यवस्था बनी हुई थी. मगर ये छोटे राज्य आपस में भी लड़ते रहते थे, जिस कारण किसी एक शक्ति का उदय यहां पर हो नहीं पाया.
लेकिन 19वीं सदी के मध्य में इटली में राष्ट्रवादी भावना उभरी. कई सालों के विदेशी प्रभाव से मुक्त होकर इटली 1871 तक लगभग एकीकृत हो चुका था और एक बड़ी शक्ति बन गया था.
19वीं सदी के आखिर और 20वीं सदी की शुरुआत तक इटली में तेज़ी से औद्योगिकीरण हुआ था मगर सिर्फ उत्तरी हिस्सों में, दक्षिण में नहीं. यह भेद अब तक बना हुआ है और उनका असर चुनावों में भी दिखता है.
राजीव डोगरा बताते हैं, "मिलान जैसे औद्योगिक रूप से विकसित शहर में बैठे आदमी की सोच सिसली में बैठे लोगों से अलग है. दोनों का वोटिंग पैटर्न और उनकी प्राथमिकताएं भी अलग होती हैं. यही बात राष्ट्रीय चुनाव में नज़र आती है और फिर इसका असर देश की गवर्नेंस पर भी पड़ता है."
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प्रथम विश्वयुद्ध से है अस्थिरता
इटली की राजनीतिक अस्थिरता की जड़ें पहले विश्वयुद्ध तक जाती हैं. इटली को पहले विश्वयुद्ध में जीत मिली थी, लेकिन इसके बाद वहां आर्थिक और सामाजिक बिखराव आ गया था.
1922 तक भयंकर राजनीतिक अस्थिरता आने के बाद इटली के राजा विक्टर इमैनुएल ने हालात संभालने के लिए फ़ासिस्ट पार्टी के संस्थापक बेनितो मुसोलिनी को सरकार बनाने का न्योता दिया. 1925 तक मुसोलिनी इटली के तानाशाह बन गए.
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान मुसोलिनी ने हिटलर के साथ आते हुए फ्रांस और ब्रिटेन के ख़िलाफ जंग का एलान कर दिया. इस विश्यवुद्ध में इटली की हार हुई और 1943 में मुसोलनी को सत्ता से हटा दिया गया.
1946 में जनमत संग्रह के बाद इटली को गणतंत्र घोषित किया गया. 1948 में नया संविधान बना और लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई गई. लेकिन तब से लेकर अब तक सरकारों के बनने और गिरने और गठबंधनों का दौर जारी है.
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इस बार चुनावों में क्या हुआ?
चुनाव से पहले देश के दक्षिणी हिस्से की ग़रीबी और देश में बढ़ती बेरोज़गारी का मुद्दा उठाने और प्रवासियों का विरोध करने वाली जनवादी पार्टी फ़ाइव स्टार मूवमेंट चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.
उसकी इस क़ामयाबी के कारणों के बारे में राजीव डोगरा बताते हैं, "जब आपकी अर्थव्यवस्था ऊपर जा रही होती है तो छोटे-मोटे मतभेद दब जाते हैं. ऐसे में सरकार बदले पर भी नुकसान नहीं होता क्योंकि उद्योग अपनी रफ़्तार से चल रहे होते हैं."
वह बताते हैं, "इटली के लोगों को कल्पनाशीलता और डिज़ाइन क्षमता के लिए पहचाना जाता है. अब तक तो उससे काम चलता रहा लेकिन अब देश में उम्रदराज़ लोगों की संख्या बढ़ रही है. इसलिए उन्होंने कुछ दिन के लिए प्रवासियों के आने के लिए छूट दे दी. लेकिन बाद में सीरिया और लीबिया से बड़ी संख्या में शरणार्थी वहां आ गए. हाल ऐसा हो गया कि वहां जॉब मार्केट में इमिग्रेंट ज्यादा हो गए और इटली के लोगों के लिए मौके कम हो गए. शरणार्थी कम वेतन पर काम करने को तैयार हो जाते थे. इस कारण बेरोज़गारी बढनी शुरू हो गई."
2008 की आर्थिक मंदी के बाद इटली की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट तो रही है, मगर उस स्तर पर नहीं पहुंच पाई, जहां वह मंदी से पहले थी. राजीव डोगरा कहते हैं कि बार-बार अर्थव्यवस्था को झटका लगता रहे तो नुक़सान होता है और ऊपर से आबादी के वृद्ध होने के कारण आप आसानी से नए सिरे से इंडस्ट्री स्थापित नहीं कर सकते. यानी इटली एकसाथ कई समस्याओं से जूझ रहा है.
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दक्षिणपंथ का उभार
प्रवासियों और बेरोज़गारी का मुद्दा उठाकर फ़ाइव स्टार मूवमेंट को वोट तो मिले, मगर इतने नहीं कि सरकार बना सके. दक्षिणपंथी गठबंधन को सबसे ज़्यादा वोट मिले हैं, जिसका नेतृत्व इटली के पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी की पार्टी कर रही थी.
बर्लुस्कोनी कई विवादों में रहे हैं और टैक्स फ्रॉड के लिए उन्हें 2013 में दोषी भी करार दिया गया था और 6 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंधित कर दिया गया था. इस तरह उनके एक और साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध है, लेकिन उनकी पार्टी वाला गठबंधन एक बार फिर सबसे ज्यादा वोट लेने में कामयाब हो गया.
राजीव डोगरा बताते हैं, " बर्लुस्कोनी को कई मामलों में दोषी ठहरया गया है और उनकी कई बातों को लेकर आलोचना भी होती है. लेकिन एक मिसाल हैं कि राजनीति में कभी किसी की पारी ख़त्म नहीं होती. इटली में राइट विंग की तरफ़ रुझान जा रहा है. लेकिन ऐसा पूरे यूरोप में देखने को मिल रहा है. ऑस्ट्रिया में दक्षिणपंथियों की सरकार है, जर्मनी में उन्हें बढ़त मिली है और कहा जा सकता है कि अमरीका में भी यह विचारधारा बढ़ी है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि प्रवासियों के कारण प्रतिक्रिया बढ़ी है. बेरोज़गारी के कारण लोगों को लगता है कि अब कुछ नया प्रयोग करना चाहिए. इसीलिए सपने दिखाए जा रहे हैं और राइव विंग आगे बढ़ रहा है."
क्या शरणार्थी भी हैं ज़िम्मेदार?
इस बार फ़ाइव स्टार मूवमेंट ने चुनाव से पहले शरणार्थियों और प्रवासियों का मुद्दा ज़ोर-शोर से उठाया था और नतीजतन वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर भी उभरी. तो क्या यह माना जाए शरणार्थी संकट भी वहां की अस्थिरता के लिए ज़िम्मेदार माना जाए?
राजीव डोगरा कहते हैं, "एक तरह से कहा जा सकता है कि सीरिया और लीबिया की अस्थिरता का प्रभाव पड़ा है, लेकिन सीधा असर कितना पड़ा है, कहा नहीं जा सकता. पहले यहां उत्तर अफ़्रीका से काफ़ी लोग आते थे. लेकिन यह मुद्दा इटली नहीं, बल्कि यूरोप के लिए भी है."
"प्रवासियों के कारण अस्थिरता बढ़ी है, यह कहना ठीक नहीं है. क्योंकि यूरोपीय देशों को सोचना होगा कि वे 'राइट टु इंटरवीन' जैसी परिभाषाओं के तहत दूसरे देशों में दखल देते हैं, उनका असर उन पर भी तो पड़ता है."
कैसे आएगी स्थिरता?
इटली फ़ैशन और डिज़ाइन इंडस्ट्री से लेकर कई क्षेत्रों में ग्लोबल लीडर है. पुनर्जागण काल में इटली ने कई महान विद्वान, कलाकार और खोजकर्ता दिए थे, जिनमें लियनार्दो दा विंची, रफ़ाएल, गैलीलियो, मार्को पोलो और क्रिस्टफ़र कोलंबस शामिल हैं.
पीसा की झुकी हुई मीनार, रोम के कई स्मारक और वेनिस जैसी कई ख़ूबसूरत पर्यटन स्थल भी यहां हैं. पिज्ज़ा जैसी लोकप्रिय ग्लोबल डिश से लेकर ऑपेरा जैसी कला भी इटली से ही पूरी दुनिया में फैली है. लेकिन यहां की राजनीतिक अस्थिरता लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है.
इटली में भारतीय डिप्लोमैट रहे राजीव डोगरा कहते हैं कि जब तक लोगों में असंतोष रहेगा, राजनीतिक स्थिरता नहीं आ सकती.
वह कहते हैं, "10 साल पहले तक बर्लुस्कोनी और रोमानो प्रोदी की सरकारें स्थिर रही थीं. राजनीतिक अस्थिरता दूर करने का रास्ता यही है कि इटली की अर्थव्यवस्था उसी दौर में आ जाए, जैसे 70 के दशक में थी. सबसे ज़रूरी बात, लोगों को संतुष्ट करना होगा. जब तक लोगों में असंतोष रहेगा, राजनीतिक स्थिरता आना मुश्किल है."