ब्रितानी चुनावः जहाँ कश्मीर भी एक मुद्दा है
गुरुवार को ब्रिटेन में आम चुनाव हैं. माहौल में गर्मी और जोश महसूस होने लगा है. मुक़ाबला कांटे का है. कंज़र्वेटिव पार्टी और लेबर पार्टी यहाँ की दो सबसे बड़ी पार्टियाँ हैं. आप चाहें ब्रिटेन के दूसरे सबसे बड़े शहर मैनचेस्टर में हों या फिर दक्षिण एशियाई लोगों की सबसे बड़ी आबादी वाले शहर ब्रैडफ़र्ड, ये दोनों शहर लेबर पार्टी के गढ़ हैं
गुरुवार को ब्रिटेन में आम चुनाव हैं. माहौल में गर्मी और जोश महसूस होने लगा है.
मुक़ाबला कांटे का है. कंज़र्वेटिव पार्टी और लेबर पार्टी यहाँ की दो सबसे बड़ी पार्टियाँ हैं.
आप चाहें ब्रिटेन के दूसरे सबसे बड़े शहर मैनचेस्टर में हों या फिर दक्षिण एशियाई लोगों की सबसे बड़ी आबादी वाले शहर ब्रैडफ़र्ड, ये दोनों शहर लेबर पार्टी के गढ़ हैं और यहाँ कंज़र्वेटिव पार्टी का वजूद केवल कागज़ों पर दिखता है.
ये आम चुनाव दिलचस्प इसलिए भी हो गया है क्योंकि प्रवासी भारतीय और पाकिस्तानी इस बार पहले से कहीं अधिक अहम भूमिका निभा रहे हैं.
लेबर पार्टी ने दक्षिण एशियाई लोगों को लुभाने के लिए अपने घोषणापत्र में वादा किया है कि अगर वो सत्ता में आती है तो जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के लिए औपचारिक रूप से माफ़ी माँगेगी.
इसने ये भी वादा किया है कि जीतने पर स्कूलों के सिलेबस में ब्रिटिश राज के अत्याचारों की पढ़ाई को भी शामिल किया जाएगा.
अब सोशल मीडिया पर एक वीडियो चर्चा में है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता बोरिस जॉनसन की तस्वीरें भी दिखाई देती हैं.
साथ ही ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त की भी इसमें तस्वीर है. गीत के बोल हिंदी में हैं.
एशियाई मूल के लोगों की भूमिका
दोनों पार्टियाँ, इनके उम्मीदवार और इनके समर्थक दक्षिण एशियाई मूल के लोगों को लुभाने की हर तरह की कोशिश कर रहे हैं.
भारतीय, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मूल के 30 लाख लोग संसद की 48 सीटों के नतीजों को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकते हैं.
ये दावा किया जा रहा है कि इस वीडियो को कंज़र्वेटिव पार्टी ने जारी किया है लेकिन पार्टी ने इसकी पुष्टि नहीं की है.
इसे कंज़र्वेटिव पार्टी के भारतीय मूल के उम्मीदवार और पूर्व सांसद शैलेश वारा जैसे लोग ट्वीट भी कर रहे हैं.
इस वीडियो में हिंदी गीत सुनाई देता है, जिसमें बोरिस जॉनसन को जिताने और लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉर्बिन के विरोध में कई बातें सुनाई देती हैं.
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दरअसल ये प्रवासी भारतीयों की तरफ़ से भारतीय मूल के लोगों को कंज़र्वेटिव पार्टी की तरफ़ आकर्षित करने की एक कोशिश मानी जा रही है.
मैनचेस्टर में भारतीय समुदाय से जुड़े संगठन इंडियन एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष जगत सिंह भारत से आए लोगों की दूसरी पीढ़ी के हैं.
वो हमेशा लेबर पार्टी को वोट डालते आए हैं. लेकिन इस बार उन्हें डर है कि भारतीय प्रवासी कंज़र्वेटिव पार्टी को वोट देंगे.
लेबर पार्टी से नाराज़गी
जगत सिंह कहते हैं, "शायद लेबर पार्टी को अंदाज़ा है कि वो चुनाव जीत नहीं सकती. इसलिए उसने अपने घोषणापत्र में हमारे लिए कई वादे किए हैं."
ब्रैडफ़र्ड के राकेश शर्मा दूसरे कई भारतीयों की तरह ही लेबर पार्टी से नाराज़ हैं. कारण है लेबर पार्टी का कश्मीर पर स्टैंड.
बीबीसी से बात करते हुए राकेश शर्मा ने कहा, "यहाँ के अधिकतर सांसद पाकिस्तानी मूल के हैं और लेबर पार्टी के हैं. उनका कहना है कि भारत ने जो अनुच्छेद 370 हटाया है, वो ग़ैर-क़ानूनी है. भारतीयों का विचार है कि लेबर पार्टी का झुकाव मुसलमानों की तरफ़ ज़्यादा है और वो भारतीयों के पक्ष में नहीं हैं."
लेबर पार्टी ने कश्मीर में कथित तौर पर मानवाधिकार की बहाली को लेकर एक प्रस्ताव पास किया था.
इसके बाद पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कश्मीर पर 'अधिक हस्तक्षेप करने वाली' नीति का वादा किया है.
पार्टी की इस कश्मीर नीति ने भारतीय हिंदुओं को इससे दूर किया है.
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कंज़र्वेटिव पार्टी समर्थक
मुकेश चावला पंजाब से 52 पहले आए थे. पहले लेबर समर्थक थे लेकिन अब कंज़र्वेटिव पार्टी के समर्थक.
वो कहते हैं, ''विपक्ष के नेता और लेबर पार्टी के सांसद जेरेमी कॉर्बिन ने अनुच्छेद 370 हटाए जाने का विरोध किया था. इस वजह से भारतीय समुदाय ने सत्ताधारी कंज़र्वेटिव पार्टी का समर्थन शुरू कर दिया. दूसरी तरफ़ कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता बोरिस जॉनसन ने संसद में कहा था कि कश्मीर भारत का अंदरूनी मामला है तो उसमें हमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. इसलिए हम सब उनके समर्थक हो गए हैं."
भारतीय मीडिया में बार-बार ये ख़बरें छप रही हैं कि भारतीय प्रवासी कंज़र्वेटिव पार्टी को वोट देंगे. इन दावों को लेकर सवाल भी उठे हैं.
पिछले दस दिनों से ब्रितानी चुनाव के कवरेज के दौरान हमने पाया कि ये अर्धसत्य है.
भारतीय मूल के 15 लाख लोग यहाँ आबाद हैं. इन में पाँच लाख सिख, तीन लाख भारतीय मुस्लिम और एक लाख से अधिक दक्षिण भारतीय हैं.
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सिख समुदाय हमेशा से लेबर पार्टी के साथ रहा है. इसमें कोई ख़ास परिवर्तन नहीं दिखाई देता है. भारतीय मुस्लिम समुदाय में जो गुजरात के हैं वो कंज़र्वेटिव की तरफ़ ज़रूर झुके हैं लेकिन अधिकतर अब भी लेबर के साथ हैं. दक्षिण भारत में तमिल समुदाय के लोग सबसे अधिक हैं. उनका वोट पहले की तरह ही बंटा हुआ है.
केवल उत्तर भारत से आए लोगों का बहुमत पूरी तरह से बोरिस जॉनसन के साथ दिखाई देता है.
पिछले चुनाव में दक्षिण एशियाई मूल के 12 उम्मीदवार चुनाव जीते थे.
इस में लेबर पार्टी के सात और कंज़र्वेटिव पार्टी के पाँच उम्मीदवार विजयी रहे थे.
ब्रेक्ज़िट के लिए दिया था वोट
ये भी सच है कि 2016 में ब्रेक्ज़िट के लिए हुए जनमतसंग्रह में भारतीय मूल के लोगों ने यूरोपीय संघ से अलग होने को तरजीह दी थी जिससे विश्लेषक ये मानने लगे कि भारतीय समुदाय कंज़र्वेटिव पार्टी की तरफ़ जा रहा है.
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कश्मीर पर लेबर पार्टी के स्टैंड को भारत-विरोधी माना ज़रूर जा रहा है जिसके कारण भारतीय मूल के अधिकतर लोग लेबर पार्टी से नाराज़ हैं. लेकिन वो वोट केवल कश्मीर मुद्दे पर नहीं देंगे.
जैसा कि भारतीय मूल के व्यापारी राशपाल सिंह कहते हैं, "मतदाताओं के दिमाग़ में कश्मीर है लेकिन हम वोट लोकल मुद्दों पर देंग़े. बेरोज़गारी, ग़रीबी, ब्रेक्ज़िट, टैक्स इत्यादि हमारे लिए ज़्यादा अहम हैं."
शुक्रवार को चुनावी नतीजे सामने जाएंगे.
अधिकतर विश्लेषक कहते हैं कि अगर कंज़र्वेटिव पार्टी को पर्याप्त बहुमत मिला तो ब्रिटेन के लिए यूरोपीय संघ छोड़ना बहुत आसान हो जाएगा.