ब्लॉग: ‘अंकल भला ऐसी घटिया हरकत क्यों करेंगे?’
इंसानों के जंगल में अपने बच्चों को बचाने का तरीका बता रहे हैं वुसअतुल्लाह ख़ान.
आदर्श दुनिया में होना तो यह चाहिए कि कोई भी हत्यारा किसी भी मासूम बच्चे का बलात्कार करके उसे क़त्ल करने के बारे में सोचे तो ख़ुद ही अपना मुंह पीट ले कि क्या गिरी हुई घटिया सोच है, छी..छी...छी...छी.
लेकिन जब तक इस संसार के हत्यारे इतने दयालु और बढ़िया सोच के मालिक नहीं हो जाते और राष्ट्र में हर कमज़ोर के लिए न्याय का बोलबाला नहीं हो जाता तब तक हम माता-पिताओं को क्या करना चाहिए?
क्या किस्मत को कोसते रहना चाहिए या फिर अपने बच्चों को खुले घूम रहे दरिंदों से बचाने और उनसे बचने की शिक्षा देना चाहिए?
मगर इसके लिए सबसे पहले ख़ुद को शिक्षित करना ज़रूरी है.
ज़ैनब जैसी मासूमों के लिए ख़तरनाक है पाकिस्तान का कसूर?
'जनाज़ा जितना छोटा होता है, उतना ही भारी होता है'
सबक़ नंबर एक
ये ख़न्नास दिमाग़ से निकाल दें कि हमारे बच्चे या बच्ची के साथ ऐसा कुछ नहीं हो सकता. दूसरा ख़न्नास अपने दिमाग़ से ये निकाल दें कि मेरे बच्चे के साथ अगर किसी की दुश्मनी हो सकती है तो वो कोई पराया पुरुष या महिला ही हो सकती है.
अब यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो चुकी है कि बच्चों की सुरक्षा की लंका ढाने के 92 प्रतिशत ज़िम्मेदार रिश्तेदार या दूर पार के जानने वाले होते हैं क्योंकि उन्हें ख़ूब मालूम होता है कि बच्चे ने अगर किसी को उनके बारे में बताया भी तो कोई यक़ीन नहीं करेगा उल्टा सब बच्चे को ही डाटेंगे, 'तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया है, अंकल भला ऐसी घटिया हरकत क्यों करेंगे.'
अगर आपको यह डर है कि अपने बच्चे से हर मुद्दे पर दोस्त की तरह बात करना ठीक नहीं, इसके दिल से आपका आदर जाता रहेगा तो ऐसे आदर का क्या करना जो आपके बच्चे को अंदर ही अंदर ख़त्म कर दे.
ज़ैनब जैसे बच्चों को बचाने का तरीका
ज़रा याद कीजिए अपना बचपन. हम मानें या न मानें मगर हममें से हर तीसरे या चौथे मर्द या औरत को बचपन में किसी अपने या ग़ैर के हाथों कोई न कोई हल्का या भारी तजुर्बा ज़रूर हुआ होगा जिसमें हमने ख़ुद को बिलकुल बेबस महसूस किया होगा अपनी नज़रों में ख़ुद ही गिर गए होंगे. यह सोचकर चुप रहे होंगे कि किसी को बताया तो उल्टा वो हमारी सोच को घटिया बताएगा.
यूं एक ऐसी फांस हमारे मन में अटक जाएगी जो मरते दम तक चुभती रहेगी.
ऐसी तमाम औरतें और मर्द जो कच्ची उम्रों में किसी ख़राब तजुर्बे से गुज़र चुके हैं, क्या वो चाहेंगे कि उनके बच्चे या बच्चों के बच्चों के साथ भी वैसा ही हो और वो भी मेरी आपकी तरह अपना बाकी जीवन एक चुप ज़ख़्म की तकलीफ़ सहते-सहते गुज़ार दें.
'शंभूलाल तुम्हारा तो मुमताज़ क़ादरी हमारा हीरो’
औरंगज़ेब के लिए अब इस्लामाबाद हुआ मुफ़ीद!
तो फिर मुझे या किसी को बताए बग़ैर अपने बच्चों से दोस्ती कर लीजिए और इस वादे पर कीजिए कि अगर तुम्हारे साथ घर के अंदर और बाहर ऐसा कुछ होता है तो मैं तुम्हारे साथ खड़ा रहूंगा भले कोई और न भी खड़ा हो.
बस इतना ही तो करना है आपको अपने बच्चों के लिए ताकि वो किसी ऐसे ख़राब तजुर्बे या हादसे से बच जाएं जिससे आप और मैं ख़ुद को नहीं बचा पाए.
यही एक तरीका है, इंसानों के जंगल में रहने वाली सात वर्ष की ज़ैनब और 10 वर्ष के मोहित की मदद करने का.