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विश्व पर्यावरण दिवस: यहां बेटी पैदा होने पर लगाए जाते हैं पेड़

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पटना। जब मुहिम और इंसानियत का तालमेल हो जाए तो धरती ही स्वर्ग की तरह नजर आने लगती है। जहां एक ओर बेटी पैदा होने पर कई पर‍िवारों की नांक-भौंह सिकुड़ जाती हैं, वहीं एक ऐसा तबका भी है, जो इसे कुदरत के उपहार की तरह पूजता-मानता है। बिहार से होकर गुज़रने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-31 पर नवगछिया से थोड़ा आगे बढ़ने पर एक साइन-बोर्ड मिलता है।

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इस पर लिखा है, 'विश्वविख्यात आदर्श ग्राम धरहरा में आपका हार्दिक स्वागत है।' यह गांव विश्वविख्यात है या नहीं यह तो तय नहीं है, लेकिन इतना ज़रूर है कि यह पिछले तीन-चार साल से चर्चा में है।

ऐसा हुआ है धरहरा की एक खास परंपरा के कारण। इस गांव में बेटियों के जन्म पर कम-से-कम दस पेड़ लगाने की परंपरा है। यह परंपरा कब शुरू हुई इसे लेकर भी कई मत हैं। धरहरा गांव बिहार के प्रमुख शहर भागलपुर से क़रीब 25 किलोमीटर दूर है।

स्वास्थ्य केंद्र के रिकॉर्ड से पता चला कि गांव में जिस अंतिम क्लिक करें बच्ची का जन्म हुआ है, उसके माता-पिता कंचन देवी और बहादुर सिंह हैं। वे कहते हैं कि "हमारे पूर्वजों के समय आस-पास के गांवों में बेटियों के जन्म के समय ही उन्हें अक्सर मार दिया जाता था। इसकी एक बड़ी वजह दहेज का ख़र्च था।"

इस दंपति ने बताया कि अपनी चार महीने की बेटी स्वाति के नाम पर उन्होंने एक पेड़ आंगन में लगाया है। उन्होंने बताया कि वे अपने बड़ी बेटी के नाम पर पूरे 10 पेड़ लगा चुके हैं।

दंपत्ति कहते हैं 'ऐसे में उनके गांव के पूर्वजों ने यह रास्ता निकाला कि बेटी का स्वागत तो किया जाएगा, लेकिन उसके लालन-पालन, शिक्षा और दहेज का खर्च जुटाने के लिए उनके जन्म के समय फलदार पेड़ लगाए जाएंगे।''

साल 2010 में पहली बार एक स्थानीय अख़बार के माध्यम से इस परंपरा को बाहर के लोगों ने जाना। इसके बाद बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस गांव की परंपरा की प्रशंसा की और इसे पूरे प्रदेश में अपनाने की अपील की. तब से यह गांव चर्चा में आ गया।

साल 2010 से 2013 के बीच बतौर मुख्यमंत्री नीतीश हर साल पर्यावरण दिवस के आसपास यहां आकर एक क्लिक करें बच्ची के नाम पर एक पौधा भी लगाते रहे। इस गांव के एक सज्जन कहते हैं ''पर्यावरण संरक्षण, क्लिक करें भ्रूण हत्या रोकथाम जैसी बातें हमने सुनी थीं, लेकिन हमारा कम ख़र्चीला तरीका इस दिशा में इतना क्लिक करें प्रेरणादायी भी है, इसका भान हमें नहीं था।''

गांव में 'आशा' के रूप में काम करने वाली नीलम सिंह बताती हैं कि इस परंपरा ने ही उन्हें एक लावारिस बच्ची को अपनाने का हौसला दिया। वे कहती हैं कि धरहरा के लिए बेटी धरोहर है। आज विश्व पर्यावरण के मौके पर हर ओर तस्वीरों व शब्दों से तो कुदरत की चर्चा हो रही है पर हकीकत में ऐसे गांव ही सच्चे मायने में इस दिवस को सार्थक कर रहे हैं।

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English summary
World Environment Day is celebrated by this village in real contribution
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