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क्या लौट के उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के संग आएंगे ?

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नई दिल्ली- लगातार तीन-तीन चुनाव में सारे सियासी तिकड़मों के बावजूद बेहद खराब प्रदर्शनों की वजह से रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा के पास अब ज्यादा राजनीतिक विकल्प नहीं बचे दिख रहे हैं। उन्हें 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए में रहकर कोई फायदा नहीं हुआ, 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपीए का हिस्सा बनकर भी फिसड्डी रहे और 2020 के असेंबली इलेक्शन में असदुद्दीन ओवैसी और मायावती के साथ तीसरे मोर्चे 'ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट' की कवायद के बावजूद भी टायं-टायं फिस्स हो गए। 2014 में मोदी लहर पर सवार होकर सत्ता का स्वाद चख चुके कुशवाहा के पास लगता है कि वापस अपने पूर्व राजनैतिक गुरु नीतीश कुमार के पास जाने के अलावा विकल्प कम ही रह गए हैं।

क्या लौट के कुशवाहा नीतीश के संग आएंगे ?

क्या लौट के कुशवाहा नीतीश के संग आएंगे ?

इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का दुर्भाग्य ये रहा कि गठबंधन की दो बड़ी पार्टियों बसपा और एआईएमआईएम से कहीं ज्यादा वोट लाने के बावजूद वह खुद एक भी सीट नहीं जीत पाई। मूलरूप से कोयरी जनाधार वाली उनकी रालोसपा ने 40 से ज्यादा सीटों पर 10 हजार से लेकर 40 हजार तक वोट जरूर जुटाए, लेकिन फिर भी एक भी उम्मीदवार विधानसभा तक नहीं पहुंचा सके। उधर ओवैसी की पार्टी 5 और बसपा 1 सीट जीत गई। नीतीश से उनकी सियासी दूरी की मूल वजह अब तक ये रही है कि दोनों का जनाधार मुख्य रूप से कोयरी-कुर्मी या लव-कुश वोट बैंक पर ही टिका है। बिहार में उनकी कुल आबादी करीब 10 फीसदी बताई जाती है। लेकिन, जब भी मुकाबले में सामने नीतीश रहे हैं तो इस बिरादरी ने कुशवाहा को रिजेक्ट ही किया है। लेकिन, बिहार में चुनाव परिणाम के एक महीने के भीतर ही जिस तरह से नीतीश और कुशवाहा की मुलाकात हुई है, उससे इन अटकलों को बल मिला है कि रालोसपा जल्द ही जदयू के साथ मेल-मिलाप या उसमें विलय कर लेगी।

तेजस्वी की आलोचना करके बनाई नीतीश के दिल में जगह

तेजस्वी की आलोचना करके बनाई नीतीश के दिल में जगह

जदयू सूत्रों के मुताबिक दोनों नेताओं के बीच बातचीत का रास्ता तब से खुल गया है, जब राजद नेता तेजस्वी यादव ने विधानसभा के अंदर नीतीश कुमार पर बेहद आपत्तिजनक और निजी टिप्पणी की थी, जिसपर मुख्यमंत्री बहुत ज्यादा नाराज हुए थे। कुशवाहा ने तेजस्वी यादव की भाषा की जमकर आलोचना की थी और उसे बहुत ही अभद्र माना था। उन्होंने ट्विटर पर लिखा- "छि: छि: ! क्या इसी राड़ी-बेटखउकी के लिए सदन है ?" इसी के बाद नीतीश ने उन्हें मुलाकात के लिए आमंत्रित किया था और इसी से यह हवा उड़ी की देर-सबेर कुशवाहा उस खेमे में जा सकते हैं।

चुनाव के बादल बदलने लगे सुर

चुनाव के बादल बदलने लगे सुर

उपेंद्र कुशवाहा ने खुद भी नीतीश कुमार की ओर कदम बढ़ाने का सियासी संकेत 3 दिसंबर को संपन्न हुई पार्टी की एक अहम बैठक में दिया था। पटना में यह दो दिवसीय बैठक चुनाव की समीक्षा को लेकर आयोजित थी। इसमें कुशवाहा ने कहा, 'चुनाव-पूर्व स्थिति में लोग न तो नीतीश को चाहते थे और न ही तेजस्वी को। लेकिन, बाद में जो स्थिति बनी उसमें लोगों को इन्हीं दोनों में से चुनना था और जनता ने नीतीश कुमार को चुना।' इस बैठक में पहली बार उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता कुशवाहा भी सार्वजनिक रूप से उपस्थित हुईं और उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि या तो पार्टी लाइन पर चलें नहीं तो अपना रास्ता ढूंढ़ लें।

कुशवाहा की पत्नी सक्रिय राजनीति में आ सकती हैं

कुशवाहा की पत्नी सक्रिय राजनीति में आ सकती हैं

वैसे सूत्रों के मुताबिक कुशवाहा विलय जैसे विकल्पों पर तत्काल निर्णय लेने के लिए तैयार नहीं है, जबकि जदयू इस काम में देरी नहीं चाहती। जो अटकलें हैं कि बदले माहौल में स्नेहलता सक्रिय राजनीति में आ सकती हैं और कुशवाहा के लिए सम्मानजनक व्यवस्था क्या हो, इसपर मंथन चल रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें एमएलसी बनने का मौका दिया जा सकता है। लेकिन, लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के सदस्य रह चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री एमएलसी बनना पसंद करेंगे, इसकी संभावना कम नजर आ रही है। वैसे कुशवाहा का पद न लेकर भी जदयू में अपनी खास जगह बनाने के लिए एक बात ये हो सकती है कि नीतीश 2025 के बाद सक्रिय राजनीति से दूर होने का संकेत दे चुके हैं।

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English summary
Will Upendra Kushwaha return with Nitish Kumar?
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