गुजरात चुनाव में पाटीदारों ने भाजपा का कितना खेल बिगाड़ा, पढ़िए ये खास रिपोर्ट
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नई दिल्ली। गुजरात चुनाव के परिणाम आ गए हैं और बीजेपी ने यहां 99 सीटों के साथ बहुमत हासिल कर लिया है, जबकि कांग्रेस सिर्फ 77 सीटें जीत सकी है। गुजरात विधानसभा चुनावों में पाटीदारों की अहम भूमिका रही, हालांकि पाटीदार लामबंद होकर भी बीजेपी को बहुमत लाने से रोक नहीं पाए। तमाम विरोध और नाराजगी के बाद भी बीजेपी गुजरात में लगातार छठवीं बार सरकार बनाने में कामयाब रही। इसके बावजूद पाटीदार संगठन इस बात से खुश है कि बीजेपी 100 का आंकड़ा पार करने में सफल नहीं हो सकी। पढ़िए पाटीदारों ने कैसे बीजेपी का खेल बिगाड़ा...
हार के बावजूद पहले से काफी बेहतर रहा कांग्रेस का प्रदर्शन
गुजरात में पाटीदार के 20 प्रतिशत व इससे ज्यादा की संख्या वाले शहरों मे 52 सीटों में से बीजेपी केवल 28 सीटों पर कब्जा जमाने में सफल रही है, जबकि कांग्रेस 23 सीटें जीतने में कामयाब रही। लूनावाडा सीट से एक निर्दलीय प्रत्याशी अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे हैं। अगर इस बार के चुनावी आंकड़ों की तुलना पिछली बार के आंकड़ों से की जाए तो परिणाम कांग्रेस के लिए सार्थक साबित होते है। जहां 2012 में बीजेपी ने पाटीदार बाहुल्य 52 सीटों में 36 सीटों पर विजय पताका लहराई थी, वहीं इस बार वह सिर्फ 28 सीटों पर ही सिमट के रह गई। जबकि 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जहां एक ओर 14 सीटें मिली थी वहीं इस बार ये आंकड़ा बढ़कर 23 सीटों तक पहुंच गया। इस आकड़ों से साफ तौर पर स्पष्ट है कि कांग्रेस ने पिछली बार से अच्छी खासी बढ़त बनाई है और ना जीत पाने के बावजूद बेहतर तरीके से उभर कर सामने आई है। पिछली बार से इस बार में कांग्रेस की जीती सीटों का अंतर मजबूत जनाधार की ओर साफ संकेत करता है।
अन्य जातियों की पाटीदारों से ईर्ष्या ने बनाया भाजपा के लिए जनाधार
सौराष्ट्र में भी कांग्रेस का बढ़िया प्रदर्शन देखने को मिला, जहां कांग्रेस को 30 सीटें, बीजेपी को 23 सीटें तो वहीं एनसीपी को 1 सीट मिली। सौराष्ट्र में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन का प्रमुख कारण पाटीदार संगठन ही रहा और पाटीदारों को अपने पक्ष में करने में किसान, खेती आदि महत्वपूर्ण मुद्दे साबित हुए। राजनीतिक पंडितों का मानना है पाटीदार के अलावा बाकी तीन क्षेत्रों में जातियों ने लामबंद होकर बीजेपी का सपोर्ट किया, जिसका परिणाम बीजेपी की जीत के रूप में सामने आया। पाटीदारों की राजनीतिक पकड़, धन संपदा, बड़ी-बड़ी जमीनों व्यवसायों और विदेश से उनके सपोर्ट में भेजे जाने वाले पैसों के बावजूद उनके द्वारा आरक्षण की मांग से खफा बाकी समुदायों ने लामबंद होकर एक भाजपा का सपोर्ट किया।
पाटीदारों के आक्रोश का क्या रहा प्रत्याशियों पर प्रभाव
पाटीदारों का आक्रोश उनके लिए भी कुछ अच्छा नहीं साबित हुआ। अपने आक्रोश के कारण पाटीदार दूसरे अन्य जाति संगठनों से दूर हो गए और इसका परिणाम ये रहा कि जहां 2012 के विधानसभा चुनाव में पाटीदार प्रत्याशियों को 47 सीटें मिली थी वहीं इस बार ये संख्या कम होकर 44 हो गई। इनमें से 25 लेवा पाटीदार और 18 कड़वा पाटीदार के हिस्से में आई।
चुनाव में रही पाटीदारों की अहम भूमिका
भाजपा से पाटीदारों का समर्थन छीनने में हार्दिक पटेल की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बेशक पार्दिक पटेल मोदी के बाद गुजरात में दूसरे एसे नेता है जो अपनी सभाओं में अच्छी खासी भीड़ इकट्ठा करते हैं। यह भी एक अहम कारण रहा बीजेपी को 100 का आंकड़ा पार करने से रोकने में। परिणाम आने के बाद हार्दिक ने अपने समर्थकों का अभिनन्दन किया और बीजेपी की जीत के लिए ईवीएम टेंपरिंग को कारण बताया। हार्दिक ने चुनाव परिणाम आने के बाद बीजेपी पर सॉफ्टवेयर कंपनी के साथ मिलकर सूरत, राजकोट, अहमदाबाद में ईवीएम टेंपरिंग का आरोप लगाया है। बता दें कि यहां बीजेपी 500 से 1000 वोटों के मामूली अंतर से जीती है।
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