क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

कश्मीर मसले पर पाकिस्तान से बातचीत की ज़रूरत नहीं- मनोज सिन्हा

जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने बीबीसी से ख़ास बातचीत में कश्मीरी पंडितों पर हो रहे हमलों और शांति प्रक्रिया पर बात की.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
मनोज सिन्हा
BBC
मनोज सिन्हा

जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने बीबीसी से ख़ास बातचीत में दोहराया है कि कश्मीर मसले पर पाकिस्तान से बातचीत की कोई ज़रूरत नहीं है.

कश्मीरी पंडितों पर हो रहे हमलों को 'आतंकवादी हमला' बताते हुए सिन्हा ने कहा है कि एक समय था जबकि पाकिस्तान से फ़रमान आने पर कश्मीर में दुकानें बंद हो जाती थीं और वो स्थिति अब बदली है.

उन्होंने हुर्रियत कांफ़्रेंस के चेयरमैन मीरवायज़ उमर फ़ारुक़ के 'नज़रबंद या बंद' होने से स्पष्ट रूप से इनकार करते हुए कहा है कि उनके घर के आस-पास मौजूद पुलिस सिर्फ़ उनकी सुरक्षा के लिए तैनात है.

उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद आए बदलावों की भी चर्चा की है.


मनोज सिन्हा से बातचीत की प्रमुख बातें-


अनुच्छेद 370 के हटने से क्या हासिल हुआ?

देश की संसद के बने कई क़ानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे, अब 890 ऐसे क़ानून हैं जो जम्मू-कश्मीर में लागू हो गए हैं जैसे शिक्षा का अधिकार.

दूसरा उद्देश्य था जम्मू-कश्मीर पूरे देश के साथ एकीकृत हो जाए और उसमें भी सफलता मिली है.


दो लक्ष्य जो हासिल नहीं हो सके हैं?

रेवेन्यू जेनेरेशन कैसे बढ़ाना है, जिससे यहाँ की जीडीपी डबल हो. सुरक्षा एजेंसियों में तालमेल 90 प्रतिशत तक हो चुका है और बेहतर हो रहा है. अब दिल्ली या जम्मू-कश्मीर का प्रशासन शांति ख़रीदने में नहीं बल्कि शांति स्थापित करने में विश्वास करता है तो उसी दिशा में काम हो रहा है कि शांति ख़रीदनी न पड़े बल्कि शांति स्थापित की जा सके.


महबूबा मुफ़्ती कहती रही हैं कि जब तक पाकिस्तान से बातचीत नहीं होती तब तक कश्मीर में स्थाई शांति नहीं हो सकती?

ये उनकी राय है, मगर मैं संतुष्ट हूँ कि अगर बात करनी है तो यहाँ के लोगों से बात होगी. यहाँ के नौजवानों से बात करनी है, पाकिस्तान से बात करने की न ज़रूरत समझते हैं , न उससे कुछ होने वाला है. यहाँ के लोग जब चाहेंगे तब बात करेंगे.


अब घाटी में पत्थरबाज़ी या हड़ताल नहीं होती मगर ये स्वेच्छा से है या सिर्फ़ डर से?

घाटी में नागरिक और नौजवान इन बातों से अब ऊब गए हैं और वो देश के लोगों के साथ जुड़ना चाहते हैं, थोड़ी संख्या में तत्व हैं जो पड़ोसी के इशारे पर काम करते हैं और इस तरह की बातें फैलाते हैं.


जम्मू-कश्मीर में जी-20 समिट पर क्या है विवाद, सऊदी अरब और तुर्की क्या करेंगे?

2019 में कई स्थानीय लोगों ने कहा कि उनके घर वालों को सुरक्षा एजेंसियों ने उठा लिया और उन पर आरोपों का पता भी नहीं है?

कोई भी राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक व्यक्ति न जेल में है, न हिरासत में है. अपराधी के लिए तो जेल बनी ही है तो वे जेल में रहेंगे.


मीरवायज़ उमर फ़ारुक़ के साथ वालों का कहना है कि प्रशासन ने उन्हें नज़रबंद करके रखा है और आरोपों का पता भी नहीं है?

उन पर तो 2019 में भी पीएसए (पब्लिक सेफ़्टी एक्ट) नहीं लगा था. वो बंद नहीं किए गए हैं.

उनके पिता जी की भी दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से हत्या कर दी गई थी. उनके इर्द-गिर्द पुलिस इसलिए रखते हैं ताकि वो सुरक्षित रह सकें.

वो खुद तय करें कि वो क्या करना चाहते हैं. न वो बंद हैं, न नजरबंद हैं. उनके घर पर सुरक्षाकर्मी नहीं तैनात हैं बल्कि उनके घर के आस-पास पुलिसकर्मी तैनात हैं, जिससे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित रहे.


प्रशासन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर नकेल कस रहा है जिससे वे आवाज़ न उठा सकें, जैसे ख़ुर्रम परवेज़ के बारे में भी स्थिति स्पष्ट नहीं है?

ऐसे लोग जो मानवाधिकार के नाम पर आईएसआई के लिए काम करते हैं, टारगेट आइडेंटिफ़ाई करते हैं, जिनके ख़िलाफ़ प्रमाण है कि इस हत्या में फलाँ आतंकवादी को सूचना उन्होंने ही दी उनके ख़िलाफ़ एनआईए ने जाँच की है.

ख़ुर्रम परवेज़ के मामले में सात लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट 23 मई को फ़ाइल कर दी है.

अब अगर ये लोग मानवाधिकार के झंडाबरदार हैं तो भगवान बचाए. ये सब कुछ एनआई के पास रिकॉर्ड पर है. अगर किसी को लगता है कि उनके साथ गलत हुआ है तो वो न्यायपालिका जाने के लिए स्वतंत्र हैं.


कश्मीरी पंडित समुदाय
Getty Images
कश्मीरी पंडित समुदाय

सरकार पुनर्वास का दावा कर रही है मगर कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाने की घटनाएँ सामने आ रही हैं?

ये सच है कि कुछ कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाते हुए हमले हुए हैं मगर कुछ और लोगों पर भी हुए हैं.

आतंकवादी हमलों को किसी धर्म के चश्मे से नहीं देखना चाहिए. अगर देखेंगे तो कश्मीरी मुसलमानों की भी जान गई है और वो संख्या ज़्यादा ही होगी कम नहीं.

दूसरी बात ये कि यहाँ सड़कों पर 125-150 निर्दोष लोग मारे जाते थे, यहाँ पिछले तीन सालों में एक भी व्यक्ति सुरक्षा बलों की गोलियों से नहीं मारा गया है.

ये सामान्य बात नहीं है. पत्थरबाज़ी और हड़ताल सब इतिहास की बात हो गई है. एक योजना पहले बनी थी जिसे पुनर्वास योजना कहा जाता है, उसके तहत घाटी में छह हज़ार कश्मीरी पंडितों को नौकरी देने और उनके लिए सुरक्षित आवास बनाना था.

पहले नौकरी देने की गति बहुत धीमी थी मगर अभी लगभग 400 को छोड़कर हमने सारे पद भर दिए हैं.


चरमपंथियों के परिजनों को नौकरी से निकाला जा रहा है, क्या उन्हें निशाना बनाया जा रहा है?

आतंकवादियों के परिजनों पर कार्रवाई नहीं हो रही है. ऐसे लोग निकाले जा रहे हैं जिनके ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत हैं कि वे आतंकवादी घटनाओं में शामिल थे.

एक भी बेगुनाह को नहीं निकाला गया मगर ऐसे लोग निकाले गए हैं और आगे निकाले भी जाएँगे.


कश्मीर में चुनाव कब होगा?

लोकतंत्र पर हमें किसी से सबक नहीं चाहिए. लोकतंत्र का मतलब सिर्फ़ विधानसभा चुनाव नहीं है. पंचायत प्रतिनिधि, ज़िला पंचायत के चेयरमैन हैं, लोकसभा के सांसद हैं. विधानसभा के चुनाव विशेष कारण से नहीं हो रहे हैं.

गृह मंत्री जी ने संसद के पटल पर कहा कि पहले डीलिमिटेशन (परिसीमन) होगा, फिर चुनाव होगा और उसके बाद वापस राज्य का दर्जा मिलेगा.

डिलिमिटेशन का काम पूरा हो चुका है, चुनाव कराना चुनाव आयोग का काम है. मतदाता सूची अपडेट हो रही है, मतदेय स्थल तय हो जाएँ तो चुनाव आयोग समय पर निर्णय लेगा.

देश की संसद में गृह मंत्री जी का दिया आश्वासन बड़ी बात है इसलिए उस पर अमल होगा. पूर्ण राज्य का दर्जा सही समय पर दिया जाएगा.


मुकेश शर्मा और मनोज सिन्हा
BBC
मुकेश शर्मा और मनोज सिन्हा

क्या अब बाहरी लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन ख़रीद सकते हैं?

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में निवासियों की कृषि योग्य भूमि के संरक्षण के क़ानून हैं, यहाँ भी इस तरह का क़ानून लाया गया है.

मगर उद्योगों को ज़मीन मिलने की व्यवस्था की गई है. पिछले डेढ़ साल में 56 हज़ार करोड़ के प्रस्ताव आए हैं और उनमें से 38 हज़ार करोड़ के प्रस्ताव स्वीकृत भी हो गए हैं.

यहाँ उद्योग लगाने में संयुक्त अरब अमीरात के कई समूहों ने रुचि दिखाई है. इनमें एमार, दुबई पोर्ट कंपनी और लुल्लू ग्रुप प्रमुख हैं.


इतना निवेश है तो बेरोज़गारी कम होने पर असर दिखना चाहिए मगर सीएमआईई के आँकड़ों में इतने निवेश के बाद भी रोज़गार की कमी है, क्यों?

सीएमआईई के आँकड़ों पर प्रतिक्रिया देना उचित नहीं है मगर हर महीने उनका आँकड़ा कैसे बदल जाता है वो भी विचारणीय है.

जम्मू-कश्मीर में मूल रूप से सरकारी नौकरी ही रोज़गार का साधन रहा है.

यहाँ पाँच लाख लोग सरकारी नौकरी में हैं. सरकारी नौकरियों में जो खाली पद हैं वो तेज़ी से भरे जा रहे हैं, 30 हज़ार नौकरियाँ दी गई हैं.

जो निवेश आ रहा है वो मेरा अनुमान है कि 70-75 हज़ार करोड़ तक जाएगा और उससे 5-6 लाख नौजवानों को रोजगार मिलेगा.


क्यों सड़कों पर उतर पड़े हैं जम्मू-कश्मीर के दलित कर्मचारी?

कश्मीर में भर्तियाँ
Getty Images
कश्मीर में भर्तियाँ

प्रतियोगी परीक्षाएँ रद्द होने से युवक धरना प्रदर्शन कर रहे हैं?

ये सही है कि हमने एक परीक्षा रद्द की है क्योंकि उसमें शिकायतें आई थीं. उसे कैंसिल किया है और गड़बड़ी की जाँच सीबीआई को दी है.

अब परीक्षा अक्तूबर में कराने जा रहे हैं. योग्य लोगों को फिर नौकरी मिलेगी.


भ्रष्टाचार पर दो साल में कितना नियंत्रण हुआ है?

पहले कंस्ट्रक्शन में भ्रष्टाचार होता था और अब बिना फ़ोटो अपलोड किए भुगतान नहीं होता इसलिए वहाँ भ्रष्टाचार ख़त्म हुआ है. अब राज्य में एंटी करप्शन ब्यूरो भी बन गया है.

प्रधानमंत्री जी ने जो बात कही है वही होगा कि भ्रष्टाचार से न कोई समझौता होगा न कोई बख़्शा जाएगा, बल्कि ऐसा सबक दिया जाएगा कि आगे कोई ऐसा काम न कर सके.


(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
No need for talks with Pakistan on Kashmir issue
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X