'पति ने पेट में इतने घूंसे मारे कि गर्भपात हो गया'
ऑस्ट्रेलिया में भारतीय महिलाएं शायद घरों की बजाय सड़कों पर सुरक्षित.
दहेज के लालच में पत्नी को ज़िंदा जला देना, चाकू से गोदकर मार देना, उनसे मारपीट करना - भारतीय पुरुषों की ये प्रवृत्ति भारत तक सीमित नहीं.
मेलबर्न के बाहरी इलाके में हम लीना (बदला हुआ नाम) और उनके ढाई साल के बेटे से उनके घर पर मिले.
उनके पति चाहते थे कि वो पटियाला रहकर सास-ससुर की सेवा करें लेकिन लीना पति के साथ मेलबर्न में रहना चाहती थीं.
लीना के पेट में जब सात हफ़्ते का गर्भ था उनके पति ने पेट में इतने घूंसे मारे कि उनका गर्भपात हो गया.
पंजाब से साइकिएट्रिक नर्सिंग में मास्टर्स कर चुकीं लीना ने हमें बताया, "उसने मुझे थप्पड़ मारा और पेट में पंच किया. मैंने भी जवाब में थप्पड़ मारा. उसके बाद उसने मुझे इतना मारा कि उसके दोस्त को बचाने के लिए आना पड़ा. मैंने खुद को कमरे में बंद कर दिया तो उसने दरवाजा तोड़ दिया और बोला मैं तुम्हें मार दूंगा.
"मुझे लगा कि वो मेरे बेटे को भारत लेकर जा सकता है इसलिए मैंने बेटे का पासपोर्ट फाड़ दिया. मुझे लगा मेरा मिसकैरिज शुरू हो गया है. मैंने जब उससे अस्पताल जाने के लिए कहा तो उसने कहा, सुबह लेकर जाएंगे."
जब हम बात कर रहे थे तो उनका ढाई साल का बेटा दूसरे कमरे में मोबाइल फ़ोन पर वी़डियो देख रहा था.
लीना कहती हैं, "प्रेगनेंसी से मैं खुश थी कि मेरे बच्चे के साथ कोई खेलने आ जाएगा लेकिन जब मुझे मिसकैरिज का पता चला तो मुझे बहुत दुख हुआ."
"मैं रो रही थी कि मेरे पति के कारण मैंने अपना बच्चा खो दिया."
"वो कहता था कि मैं तुम्हे डिपोर्ट करके वापस भारत भेज दूंगा. मैं अपने बेटे को रखूंगा और तू हिंदुस्तान में सड़ेगी. मुझे बहुत चिंता हो जाती है कि कहीं वो बच्चे की कस्टडी के लिए केस न फ़ाइल न कर दे."
ये बोलकर लीना चुप हो गईं.
आंकड़ों के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में हर तीन घंटे में एक महिला घरेलू हिंसा के कारण अस्पताल में दाखिल होती है. हर हफ्ते एक की हत्या कर दी जाती है.
कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार प्रवासियों में महिलाएं घरेलू हिंसा से सबसे ज़्यादा पीड़ित हैं.
मेलबर्न में सामाजिक कार्यकर्ता जतिंदौर कौर के मुताबिक साल 2009 से 2017 के बीच घरेलू हिंसा के कारण ऑस्ट्रेलिया में भारतीय समुदाय की 12 महिलाओं की हत्या हुई है.
मनप्रीत कौर, प्रीतिका शर्मा, निधी शर्मा, सर्गुन रागी, परविंदर कौर, अनीता फ़िलिप, निकिता चावला, की हत्याओं ने ऑस्ट्रेलिया में बसे भारतीयों को हिलाकर कर रख दिया.
ऐसे मामले हुए जिनमें पति ने पत्नी को मारा और फिर खुद को मार दिया.
सरकारी प्रसारणकर्ता एसबीएस में काम करने वाली मनप्रीत सिंह कौर ने भारतीय समाज में घरेलू हिंसा पर एक डॉक्युमेंट्री बनाई है.
वो बताती हैं, "घरेलू हिंसा के मामले डरावने होते हैं - कि कैसे ज़िंदा जला दिया गया, 30-40 बार चाकू घोंपा. ऐसी बातें आप भारतीय समुदाय के बारे में ज़्यादा सुनते हैं."
"सबसे डरावना केस सरगुन रागी का था. उन्होंने पति के खिलाफ़ रेस्ट्रेनिंग ऑर्डर लिया था ताकि वो उनके 500 मीटर के दायरे में भी नहीं आ सकते थे लेकिन ऑर्डर्स तोड़े गए उन्हें ज़िंदा जला दिया गया."
मनप्रीत सिंह कौर के लिए इस विषय पर लोगों से साक्षात्कार आसान नहीं था.
वो कहती हैं, "मैंने जसप्रीत कौर से बात की थी, उनकी बहन मनप्रीत कौर को 27-28 बार चाकू मारा गया था. जिस तरह से जसप्रीत ने लाश के बारे में बताया, वो मैं आज तक भुला पाई. वो जैसे महसूस करना चाह रही थीं कि उनकी बहन ने (आखिरी क्षणों में) क्या महसूस किया होगा."
भारतीय पति पत्नियों को क्यों मारते-पीटते हैं, इस पर एक ने बताया, "हिंदुस्तान से 15 घंटे की फ़्लाइट पकड़कर ऑस्ट्रेलिया आने के बाद अगर उम्मीद की जाए कि व्यक्ति की सोच बदल जाएगी तो ये भूल होगी."
नेहा (बदला हुआ नाम) से मेरी मुलाकात ब्रिस्बेन के एक घर में हुई. चेहरे पर घबराहट लेकिन दुनिया को खुद के साथ गुज़री बताने की तड़प.
वो बोलीं, "मैं चाहती हूं कि भारत में लोग जाने कि मेरे साथ क्या हुआ ताकि किसी और के साथ ऐसा न हो."
पहली शादी में पति की मारपीट के कारण उन्हें तलाक लेना पड़ा था.
कुछ साल आईटी सेक्टर में नौकरी करने के बाद उन्होंने दोबारा शादी की सोची. वो देश के बाहर जाकर बसना चाहती थीं इसलिए ब्रिस्बेन के एक लड़के से इंटरनेट और फिर स्काइप पर बातचीत शुरू की.
ऑस्ट्रेलिया आने से पहले उन्हें वीज़ा की पेचीदगियों के बारे में पता नहीं था.
ब्रिस्बेन में पति का रेस्तरां था लेकिन बिज़नेस नहीं चलने के कारण आर्थिक परेशानियां बढ़ने लगीं. असर उनके रिश्ते पर भी पड़ने लगा.
वो कहती हैं, "वो बारबार इसी बात पर हाथ उठाता था कि उसका कहा होना चाहिए. जब पहली बार उसने मुझे गंदी तरह से पीटा, मुझे बहुत खराब लगा. मैं कोई अनपढ़, गंवार लड़की नहीं थी कि मुझे जैसा चाहे उस तरह का व्यवहार करे.
"जब वो मुझे मारता था तो स्क्रैच मार्क लग जाते थे. वो नाखून के साथ दबोचता था. वो मुझे डराता था ताकि मुझे उससे डर कर रहना पड़े."
नेहा ने सोचा वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
वो बताती हैं, "समाज में लोग क्या बातें करेंगे, यही सोचकर मैं हिंसा बरदाश्त करती गई. वो जान गया था कि य़हां इसका कोई नहीं है.
"धीरे-धीरे हिम्मत टूटती जा रही थी कि क्या मैं यहां मर जाऊं. ऑस्ट्रेलिया में अंग्रेज़ी भाषा के कारण भी समस्या थी. मैं अग्रेज़ी समझ लेती थी लेकिन (ठीके से अंग्रेज़ी भाषा नहीं बोल पाने के कारण) दर्द सुनने वाला कोई नहीं था."
एक दिन मारपीट के कारण घर में शोर हुआ तो पड़ोसी ने पुलिस को फ़ोन कर दिया.
ऑस्ट्रेलिया में घरेलू हिंसा से जुड़े कड़े कानून हैं. हेल्पलाइन पर महिलाएं फोन कर सकती हैं और पुलिस तुरंत मदद करती है लेकिन कई महिलाओं के लिए अंग्रेज़ी न जानना, परिवार से दूरी और कानून से नावाकिफ़ी सबसे बड़ी चुनौती होती है.
ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों की संख्या करीब 10 साल पहले बढ़नी शुरू हो गई.
भारतीय स्टुडेंड वीज़ा, वर्क वीज़ा आदि कई तरीकों से ऑस्ट्रेलिया में दाखिल हुए.
उन्हें ऑस्ट्रेलिया के कानून और समाज के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी, इस कारण परिवारों में कई समस्याएं हुईं - आर्थिक उधारी, पारिवारिक झगड़े, शादी का टूट जाना, दहेज की समस्या, पत्नी को काबू में रखने की कोशिश, इन कारणों से घरेलू हिंसा बढ़ी.
भारतीय समुदाय में घरेलू हिंसा पर डेटा मौजूद नहीं है लेकिन संख्या बड़ी है.
जतिंदर कौर बताती हैं, "एक मामले में मैंने पाया कि एक नई शादीशुदा महिला को उसके पति ने 18 महीने तक मर्ज़ी के खिलाफ़ घर में बंद करके रखा था. पत्नी को अंग्रेज़ी का एक शब्द तक नहीं आता था."
जतिंदर जब पुलिस के साथ महिला के घर पहुंची तो वो डर के मारे कांप रही थी.
वो बताती हैं, "इन महिलाओं के पास फ़ोन तक नहीं होता कि वो किसी से परेशानी बांट सकें. उनके पति धमकाते हैं कि अगर तुमने बात नहीं मानी तो तुम्हे वापस भारत भेज दिया जाएगा और वहां तुम्हारी दोबारा शादी भी नहीं होगी. शर्म और बदनामी के कारण ये महिलाएं किसी से अपनी बात नहीं कहतीं."
अलग सामाजिक परिवेश के कारण कई बार स्थानीय पुलिस को दहेज जैसी बातें समझ नहीं आतीं.
कई बार पुलिस के पास हिंदी या पंजाबी भाषा का इंटरप्रेटर नहीं होता जिस कारण वो इन महिलाओं की पूरी बात भी नहीं समझ पाते.
जतिंदर बताती हैं, "मुझे कई महिलाओं ने बताया है कि उन्होंने वही किया जो पुलिस ने कहा. अगर इंटरप्रेटर नहीं होगा तो पुलिस महिला की सुरक्षा के बारे में कैसे तैयारी करेगी?"
जतिंदर के मुताबिक पुरुष प्रधान सोच के कारण जज भी कभी-कभी आरोपी पति के प्रति पक्षपात दिखाते हैं जिसके कारण न्याय व्यवस्था में महिलाओं का विश्वास डगमगाने लगता है और उन्हें लगता है कि उनकी आवाज़ नहीं सुनी जा रही है.
ऑस्ट्रेलिया में पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं लेकिन उनकी तादाद कम है. कई बार उन्हें ये बताते हुए शर्म महसूस होती है कि उनकी पत्नी ने उन्हें पीटा.
ऑस्ट्रिलाई में बसे भारतीयों का दावा है कि वो इस समस्या से निपटने के लिए कदम उठा रहे हैं और महिलाओं की मदद भी कर रहे हैं.
मेलबर्न में मनोचिकित्सक मंजुला ओ कॉनर दहेज के खिलाफ़ कानून लाने की बात करती हैं लेकिन उनके आलोचक कानून की बजाए परिवारों को समझाने पर बल देते हैं.
नेहा का तलाक हो चुका है. वीज़ा खत्म होने के कारण वो भारत में हैं. उन्होंने रिश्तेदारों को दूसरे तलाक के बारे में नहीं बताया है. कानूनी कदम नहीं उठाने के कारण उनके पति के खिलाफ़ मामला आगे नहीं बढ़ा.
लीना ऑस्ट्रेलिया सरकार की मदद से बेटे के साथ मेलबर्न में रह रही हैं.