केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, 2011 की जनगणना में जाति से जुड़े आंकड़े किसी काम के नहीं
नई दिल्ली, 24 सितंबर। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वर्ष 2011 की जनगणना में जो जाति से जुड़े आंकड़े इकट्ठा किए गए थे वो किसी काम के नहीं हैं, इसका किसी भी तरह का आधिकारिक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसमे काफी खामियां हैं। साथ ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह जाति या पिछड़ी जाति से जुड़े आंकड़े 2022 की जनगणना के दौरान इकट्ठा करने के पक्ष में नहीं है। सरकार की ओर से कहा गया है कि वह सिर्फ एससी और एसटी से जुड़े ही आंकड़े इकट्ठा करने के पक्ष में है।
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सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए एफिडेविट में केंद्र ने महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर आपत्ति जताते हुए कहा कि 2011 की जनगणना में जाति से आधारित आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जा सकते हैं क्योंकि इसमे काफी गलतिया हैं। बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने 2011 की जनगणना में जाति आधारित आंकड़ों को सार्वजनिक किए जाने की मांग की थी। सरकार की ओर से कहा गया है कि जनगणना के दौरान इकट्ठा किए गए आंकड़ों में खामियां हैं, जाति से जुड़े भरोसेमंद और विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं जोकि संवैधानिक या वैधानिक तौर पर आरक्षण, पदोन्नति आदि के लिए इस्तेमाल किए जा सके।
बता दें कि 2011 में जनगणना यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुआ था। देश में पहली बार जाति आधारित जनगणना कराई गई थी। इससे पहले 1931 इस तरह की जनगणना कराई गई थई। देश में पहली जनगणना की बात करें तो यह 1881 में हुई थी। उसके बाद से हर 10 साल के बाद जनगणना कराई जाती है। इस साल जनगणना को इसलिए टाल दिया गया क्योंकि कोरोना महामारी से पूरा देश लड़ रहा है। माना जा रहा है कि अगले साल फरवरी माह में जनगणना कराई जाएगी।
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गौरतलब है कि जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में 11 सदस्यी नेताओं के दल ने पीएम मोदी से मुलाकात की थी। इनमे सभी नेताओं ने मांग की कि जाति आधारित जनगणना में ओबीसी से जुड़े आंकड़ों को इकट्ठा किया जाए। वहीं केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने जुलाई माह में लोकसभा में एक लिखित सवाल के जवाब में कहा था कि हम एससी और एसटी से जुड़े आंकड़ों के अलावा अन्य जातियों से जुड़े आंकड़ों को इकट्ठा करने के पक्ष में नहीं हैं और यह हमारी पॉलिसी का हिस्सा नहीं है।