
China Covid Protests: क्या है 'जीरो कोविड पॉलिसी'? जिसके खिलाफ चीन में जनता ने कर दिया 'विद्रोह'
चीन में तीव्र विद्रोह की शुरुआत 25 नवंबर को हुई, जब शिनजियांग की राजधानी उरुमकी में एक इमारत की 15वीं मंजिल में आग लग गई और इस हादसे में 10 लोगों की मौत हो गई। लॉकडाउन की वजह से लोगों को समय पर मदद नहीं मिल सकी। इसे प्रशासन की लापरवाही बताते हुए लोग सड़कों पर उतर आए और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। इस फीचर में हम जानेंगे कि चीनी सरकार की ये जीरो कोविड पॉलिसी क्या है, जिसका भारी विरोध हो रहा है और तियानमेन कांड से इस विरोध प्रदर्शन की तुलना क्यों की जा रही है।

जनता के विद्रोह की क्या है वजह?
जनता में भारी आक्रोश की वजह कोविड-19 को लेकर लगाई गई पाबंदियां हैं। जिनकी वजह से लोगों का जीना दूभर हो गया है। जहां दुनिया के लिए कोरोना लॉकडाउन इतिहास बन चुका है। वहीं चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसे जनता पर सख्ती का हथियार बनाकर जीरो कोविड पॉलिसी लागू की हुई है।
इस पॉलिसी के चलते चीन के कई इलाकों में चार महीनों से लॉकडाउन लगा हुआ है और लोगों का घर से निकलना बंद हो गया है। अब उनके पास उपयुक्त भोजन और चिकित्सा आपूर्ति की पहुंच नहीं है। अतः लोगों की बर्दाश्त करने की क्षमता अब जवाब देने लगी है।
हालाँकि, सत्तारूढ़ दल ने लॉकडाउन में ढील देने का वादा किया था, लेकिन संक्रमण में बढ़ोतरी के बाद सख्ती और बढ़ा दी गयी। दरअसल, चीन में हर दिन कोरोना संक्रमण के मामलों में इजाफा दर्ज किया जा रहा है। 27 नवंबर को कोरोना के 40 हजार मामले सामने आए, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है और एक्टिव केस की संख्या भी 3 लाख के पार पहुंच गयी थी।
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दो सप्ताह पहले तक चीन में लोगों को सार्वजनिक बस और ट्रेनों में कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट दिखाने की जरूरत नहीं थी, देश में कड़े लॉकडाउन से थोड़ी राहत दी जा रही थी। लेकिन अब सबकुछ फिर बदल चुका है। शिनजिंयांग, गुआंगडोंग और गुआंगझो जैसे कई शहर संक्रमण से बेहद प्रभावित हैं और कोरोना का संक्रमण इस साल अप्रैल में देश में आई कोरोना की लहर से भी ज्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े कहते हैं कि बीते सात दिनों में चीन में 418 लोगों की कोरोना के संक्रमण के कारण मौत हुई है।
एक अनुमान के मुताबिक चीन में 66 लाख लोग घरों में कैद हैं। इन लोगों का हर रोज कोविड टेस्ट हो रहा है और जो लोग सरकार के नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। बीजिंग, शंघाई, नानजिंग और सिन्हुआ जैसे शहरों में छात्र ब्लैंक व्हाइट पेपर लेकर साइलेंट प्रोटेस्ट कर रहे हैं। इस ब्लैंक व्हाइट पेपर का मतलब सेंसरशिप या गिरफ्तारी से बचने के तौर पर किया जाने वाला विरोध है।
ब्लैंक पेपर बना विरोध का 'प्रतीक'
चीन में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक विरोध बेहद मुश्किल है। राष्ट्रपति जिनपिंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट शासन ने यहां असंतोष के लिए जगह लगभग खत्म कर दी है। चीनी नागरिक ज्यादातर सोशल मीडिया पर अपनी हताशा को दूर करने के लिए गुस्सा निकालते हैं, लेकिन वह भी लगभग सेंसर है। यही वजह है ये ब्लैंक पेपर चीन में विरोध प्रदर्शन का प्रतीक बन गया है।
प्रदर्शन में फिजिक्स के फॉर्मूले का इस्तेमाल
चीन की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी शिन्हुआ के स्टूडेंट्स भी प्रदर्शन में बढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। हालांकि, उनके प्रदर्शन का तरीका बड़ा ही अनोखा है। स्टूडेंट्स फिजिक्स के फॉर्मूले का इस्तेमाल कर इस पॉलिसी के खिलाफ अपना गुस्सा व्यक्त कर रहे हैं। बीजिंग में शिन्हुआ यूनिर्सिटी के लगभग 200 से 300 स्टूडेंट्स सोमवार को फिजिक्स के फॉर्मूले लिखे कागज लहराते देखे गए। हांगकांग के एक्टिविस्ट नैथन लॉ ने इन स्टूडेंट्स के विरोध की तस्वीर ट्वीट की है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस फॉर्मूले का मतलब फ्री मैन (आजाद शख्स) के समान बताया जा रहा है। इसका अर्थ चीन की आजादी और चीन की स्वतंत्रता से जोड़कर देखा जा रहा है।
चीन के कई शहरों में प्रदर्शन
चीन की जनता ने राष्ट्रपति जिनपिंग को तानाशाह और गैर-कानूनी राष्ट्रपति का दर्जा दे दिया है। शिनझियांग के उरूमकी से शुरू हुआ यह प्रदर्शन, शंघाई, बीजिंग के अलावा गुआंग्झू और चेंग्जू जैसे शहरों में फैल गया है। यह प्रदर्शन बड़ी तेजी से अन्य स्थानों पर प्रभावी दिखने लगा है और सोशल मीडिया पर उसके वीडियो वायरल हो रहे हैं। इन वीडियो में चीनी जनता, कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए 'कम्युनिस्ट पार्टी को हटाओ', 'कम्युनिस्ट पार्टी पद छोड़ो' और 'शी जिनपिंग पद छोड़ो' जैसे नारे लगा रही हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उन्हें प्रेस की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी और बिना रोक-टोक आने-जाने की आजादी चाहिए।
दुनिया के अलग-अलग देशों में विरोध प्रदर्शन
कई चीनी प्रवासी छात्र अलग-अलग देशों में अपने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे है। छात्रों द्वारा आयोजित रॉयटर्स टैली के अनुसार, एशिया और उत्तरी अमेरिका के शहरों में भी विरोध प्रदर्शन हुए हैं।
व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद समन्वयक फॉर स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशंस जॉन किर्बी ने एक संवाददाता सम्मेलन में संवाददाताओं से कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन के घटनाक्रम पर करीब से नजर रख रहा है। किर्बी ने कहा दुनिया भर में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के लिए हमारा संदेश समान और सुसंगत है और लोगों को इकट्ठा होने एवं शांतिपूर्ण ढंग से नीतियों अथवा कानूनों का विरोध करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।
तियानमेन कांड की लोगों को क्यों आई याद?
चीन में हो रहा यह प्रदर्शन पिछले तीन दशकों में सबसे बड़ा प्रदर्शन है। इससे पहले साल 1989 में तियानमेन स्क्वायर पर एक बड़ा प्रदर्शन हुआ था जिसमें अंतर्गत चीन में लोकतंत्र की मांग को लेकर हजारों निहत्थे छात्रों सहित चीनी नागरिकों ने हिस्सा लिया था। चीनी सेना ने उस आंदोलन को कुचलने के लिए सड़कों पर टैंक उतार दिए थे और सैन्य कार्रवाई में अनेकों लोगों को मार डाला था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार उन प्रदर्शनों में 200 से अधिक लोग मारे गए थे और लगभग 7 हजार घायल हुए थे।