क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

पैतृक संपत्ति में बेटियों के अधिकार पर विवाद

Google Oneindia News

नई दिल्ली, 24 अगस्त। राज्य सरकार विधानसभा के वर्षाकालीन अधिवेशन में इस पर एक विधेयक पेश करने वाली थी. लेकिन विभिन्न संगठनों के विरोध की वजह से सरकार ने फिलहाल इसे स्थगित कर दिया है. हालांकि महिला आयोग ने इस मसौदे का समर्थन किया है. उसी ने इस विधेयक का मसौदा मुख्यमंत्री पेमा खांडू को सौंपा था.

Provided by Deutsche Welle

पूर्वोत्तर राज्यों की कई जनजातियों में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार मिले हैं. मेघालय के खासी और जयंतिया हिल्स इलाके में रहने वाला खासी समुदाय मातृसत्तात्मक परंपराओं के लिए जाना जाता है. इस समुदाय में फैसले घर की महिलाएं ही करती हैं. बच्चों को उपनाम भी मां के नाम पर दिया जाता है. छोटी पुत्री ही घर व संपत्ति की मालकिन होती है और उसी के नाम पर वंश आगे चलता है.

मेघालय के अलावा, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के कई कबीलों और जनजातियों में तो महिलाएं ही परिवार की मुखिया होती हैं. मणिपुर में दुनिया का इकलौता ऐसा बाजार (एम्मा मार्केट) है जहां तमाम दुकानदार महिलाएं ही हैं.

क्या है ताजा मामला

अरुणाचल प्रदेश सरकार ने पुत्रियों को भी पैतृक संपत्ति में पुत्रों के समान अधिकार देने की योजना को कानूनी जामा पहनाने के लिए विधानसभा में एक विधेयक पेश करने का फैसला किया था. राज्य महिला आयोग, अरुणाचल प्रदेश विमिंस वेलफेयर सोसाइटी और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मिल कर इस विधेयक का मसौदा तैयार किया था. लेकिन राज्य के विभिन्न संगठनों के विरोध और इस मुद्दे पर बढ़ते विवाद की वजह से सरकार ने फिलहाल इस योजना को स्थगित कर दिया है.

राज्य के विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों ने उक्त मसौदे को आदिवासी-विरोधी और अरुणाचल-विरोधी करार दिया है. उनकी दलील है कि इससे शादी के जरिए बाहरी लोगों के लिए राज्य में आदिवासियों की जमीन पर कब्जा करने का रास्ता खुल जाएगा. विरोध करने वाले संगठनों का कहना है कि यह प्रस्तावित कानून तो ठीक है. लेकिन अपनी जनजाति से बाहर के युवकों से शादी करने वाली युवतियों को यह अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए.

लेकिन अखिल अरुणाचल प्रदेश छात्र संघ (आप्सू) ने इस मसौदे का विरोध किया है. संगठन का कहना है कि वह ऐसे किसी भी विधेयक का विरोध करेगा जो आदिवासियों के अधिकारों और परंपराओं का हनन करता हो. उसका कहना है कि आदिवासी महिलाओं को पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकारी बनाने में कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन अगर कोई आदिवासी महिला किसी गैर-आदिवासी से शादी करे तो उसे इस अधिकार से वंचित करना होगा.

जानेंः कानून से अनाथ बच्चों की भलाई

प्रस्तावित विधेयक का विरोध करने वाले ऑल मिशी यूथ एसोसिएशन के महासचिव बेंगिया टाडा दावा करते हैं कि यह मसौदा आदिवासी महिलाओं के हितों के खिलाफ हैं. वह कहते हैं, "संगठन आदिवासी महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करता है लेकिन प्रस्तावित विधेयक से महिलाओं को कोई फायदा नहीं होगा. उल्टे इससे स्थानीय आदिवासी महिलाओं के हितों को नुकसान ही पहुंचेगा."

उनका कहना है कि राज्य में पहले से ही पुत्रियों को पिता की अचल संपत्ति में समान अधिकार मिला है. लेकिन किसी गैर-आदिवासी युवक से शादी करने वाली महिला को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता. इससे आगे चल कर इन महिलाओं को ही नुकसान होगा. टाडा का दावा है कि प्रस्तावित विधेयक आदिवासी समाज की स्थापित परंपराओं का उल्लंघन है.

मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने पहले कहा था कि सरकार इसके विभिन्न पहलुओं के अध्ययन के बाद विधानसभा के अगले अधिवेशन के दौरान एक विधेयक पेश करेगी. खांडू का कहना था, "हम अपनी बेटियों को हर तरह से समान अधिकार देने के पक्षधर हैं. लेकिन समाज, आदिवासी परंपराओं और उत्तराधिकार के मुद्दे पर समुचित बहस और विचार-विमर्श की जरूरत है.

राज्य सरकार के मंत्री और प्रवक्ता बामंग फेलिक्स कहते हैं, "सरकार इस मामले के सभी पक्षों से विचार-विमर्श के बाद ही आगे बढ़ेगी. इस विधेयक का मसौदा राज्य महिला आयोग ने मुख्यमंत्री को सौंपा था. इसलिए सरकार इस मुद्दे पर आगे बढ़ने की योजना बना रही थी."

महिला आयोग की दलील

दूसरी ओर, राज्य महिला आयोग ने इस विवादास्पद विधेयक के मसौदे का बचाव किया है. उसने कहा है कि इसका विरोध करने वाले संगठनों को कोई भी टिप्पणी करने या राय देने से पहले मसौदे को पूरे ध्यान से पढ़ना चाहिए और इस मामले में किसी भी सुझाव का स्वागत किया जाएगा.

महिला आयोग की अध्यक्ष राधिलू चाई कहती हैं, "हमने विभिन्न सामाजिक और छात्र संगठनों के साथ कई साल तक विचार-विमर्श के बाद यह मसौदा तैयार किया है. इसके लिए काफी शोध करना पड़ा है."

उनका कहना है कि विरोध करने वाले संगठनों ने मसौदे को ध्यान से नही पढ़ा है. इसमें गैर-आदिवासियों से शादी करने वाली राज्य की आदिवासी महिलाओं के अधिकारों के बारे में भी दो नए प्रावधान हैं.

राधिलू बताती हैं, "एक प्रावधान में कहा गया है कि राज्य की आदिवासी महिलाओं को चल-अचल पैतृक संपत्ति की उत्तराधिकारी बनने का पूरा अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट भी अपने एक फैसले में कह चुका है कि राज्य में पैदा होने वाली हर महिला आदिवासी है और दूसरे समुदाय के युवकों से शादी के बावजूद उससे आदिवासी का दर्जा छीना नहीं जा सकता."

जानेंः आसपास के देशों में महिलाओं का हाल

उनका कहना है कि कुछ संगठन बाहरी युवकों से शादी करने वाली महिलाओं से आदिवासी का दर्जा छीनने की मांग कर रहे हैं. लेकिन जन्म से आदिवासी महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती. राधिलू का कहना है कि आयोग ने राज्य की महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए विभिन्न संगठनों से सुझाव भी मांगा है.

महिला आयोग की दलील है कि यह मसौदा किसी परंपरा के खिलाफ नहीं है. इसमें स्पेशल मैरिज एक्ट से भी कुछ चीजें शामिल की गई हैं. इसके अलावा यह बात साफ कर दी गई है कि पैतृक जमीन या संपत्ति का मतलब माता-पिता की ओर से अर्जित संपत्ति है, पूर्वजों की संपत्ति नहीं. इसके बावजूद लगातार तेज होते विवाद को ध्यान में रखते हुए सरकार ने फिलहाल इसे ठंडे बस्ते में डालने का फैसला किया है.

रिपोर्टः प्रभाकर मणि तिवारी

Source: DW

Comments
English summary
draft bill on property rights to girls
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X