कहानी किस्से-कहानियों की
ज्यादातर घरों में ये कहानियाँ बच्चों को खाना खिलाते समय सुनायी जाती थी. चाची या दादी सारे बच्चों को इक्ठ्ठा कर उन्हें गोल घेरे में बिठाकर खाना खिलाती और साथ ही कहानियाँ सुनाती जाती ताकि बच्चों का ध्यान कहानियों में लगा रहे और वो ढंग से खाना खायें.
लेकिन कहानियों का उद्देश्य सिर्फ इतना ही नहीं है. कहानियाँ कभी आपके अकेलेपन का साथी हैं तो कभी समय बिताने का जरिया. यही नही कहानियाँ सीख भी दे जाती हैं. बड़े हो या छोटे सभी को कहानियाँ पसन्द आती हैं.कई बार जो बात हम किसी से कहने में झिझकते हैं वही बात कहने का माध्यम भी कहानी बन जाती है.
कहानियाँ कभी बूढ़ी नहीं होती ना ही उनकी कोइ उम्र होती है.ये तो नदी की निश्छल धारा की तरह बहती रहती हैं. देखा जाये तो यह रिश्तों को बाँधने का काम करती हैं. कहानियाँ सुनना-सुनाना तो एक बहाना होता है असलियत में तो हम इस तरह अपनों के संग समय भी बिता पाते है साथ ही उनका मार्गदर्शन भी कर देते हैं.
अब पहले जैसे संयुक्त परिवार तो रहे नहीं, मां-बाप के पास भी पहले जैसा समय नहीं रहा. महानगरों में ज्यादातर एकल परिवार ही देखने को मिलते हैं. ऐसे में दादी- नानी की कमी बाजार में मिलने वाली कहानियों-कविताओं की सीडी और डीवीडी से पूरी होने लगी है. आवाज़, गीत, संगीत और तस्वीरों का यह मिलाजुला रूप भी बच्चों के लिए एक बेहतर विकल्प है। उन्हें खेल-खेल में बहुत कुछ सीखने को मिलता है.
[दीपाली तिवारी ब्लागर हैं और समकालीन मुद्दों पर लिखती हैं।]