Pitru Paksha 2020: श्राद्ध पक्ष में अन्नदान है सर्वश्रेष्ठ, पढ़ें ये कथा
नई दिल्ली। भारतीय पौराणिक संस्कारों में श्राद्ध पक्ष के 15 दिन पूर्वजों को समर्पित किए गए हैं। इन 15 दिनों में हर धार्मिक श्रद्धालु अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुरूप दान, धूप, तर्पण कर अपने पितरों को प्रसन्न व संतुष्ट करने का प्रयास करता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं समाज में हर किसी की आर्थिक स्थिति समान नहीं है। किसी के पास अपार संपत्ति है, तो कोई आर्थिक विपन्नता से जूझ रहा है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से हर कोई एक ही स्तर के अनुरूप व्यय कर अनुष्ठान संपन्न नहीं कर सकता। इसीलिए शास्त्रों में दान की महत्ता का वर्गीकरण धन के अनुरूप ना कर, पूर्वजों की संतुष्टि को मुख्य कारक माना गया है।
हमारे शास्त्रों में ऐसा माना गया है कि इन 15 दिनों में हमारे पूर्वज अपनी क्षुधा मिटाने धरती पर आते हैं। यह क्षुधा केवल भोजन की ही नहीं, अपितु मान, सम्मान और आत्मीयता की भी होती है। इसीलिए यदि आत्मीयता से पितरों को याद कर साधारण भोजन भी धूप में अर्पित किया जाए, तो भी वे उतने ही संतुष्ट होते हैं, जितने सोने-चांदी के दान से प्रसन्न होते हैं। अन्नदान किस तरह सर्वश्रेष्ठ है, आज की कथा से जानते हैं-
कर्ण की दानशीलता पूरे ब्रह्मांड में प्रसिद्ध थी
बात उस समय की है, जब महाभारत युद्ध संपन्न हो चुका था और कर्ण मृत्यु को प्राप्त कर स्वर्ग में स्थान प्राप्त कर चुके थे। कर्ण की दानशीलता पूरे ब्रह्मांड में प्रसिद्ध थी, इसीलिए सब मानते थे कि कर्ण को मृत्योपरांत स्वर्ग की ही प्राप्ति होगी। कर्ण का क्रियाकर्म स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने किया था, सो उन्हें स्वर्ग का अधिकारी बनना ही था। कर्ण को अपने कर्मों के अनुरूप स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ, लेकिन वहां पहुंचकर कर्ण ने पाया कि उन्हें भोजन में सोना- चांदी ही परोसा जाता है। कर्ण को काफी आश्चर्य हुआ और उन्होंने देवराज इंद्र से इसका कारण पूछा। देवराज ने कहा- हे कर्ण! आपने जीवन भर दान तो अपार किया, किंतु वह हमेशा सोने- चांदी के रूप में ही रहा। आपने जीवन में कभी भी, किसी को भी अन्न का दान नहीं किया। यहां तक कि आपने अपने पितरों को भी अन्न से संतुष्ट नहीं किया। यही कारण है कि यहां आपको अन्न की प्राप्ति नहीं हो रही है।
कर्ण ने किया अन्नदान
कर्ण ने देवराज को बताया कि उन्हें अपने जन्म कुल का ज्ञान नहीं था, ना ही पितरों का पता था। किसी ने भी उन्हें अन्नदान की महिमा के बारे में नहीं बताया था, इसीलिए उनसे यह अपराध हो गया। कर्ण ने अज्ञानतावश हुए अपराध की क्षमा मांगते हुए इसके निराकरण का उपाय पूछा। तब देवराज इंद्र ने श्राद्ध पक्ष में कर्ण को 15 दिन के लिए वापस मृत्युलोक में भेजा। यहां आकर कर्ण ने पूरे विधि- विधान से अपने पितरों का तर्पण और अकिंचनों में अन्नदान किया। इस तरह अपनी भूल सुधारकर कर्ण ने अपना परलोक सुधारा और वापस स्वर्ग में जाकर समस्त सुखों को प्राप्त किया।
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