Aromatic Plant Farming : खुशबूदार पौधों की खेती कर आमदनी बढ़ा सकते हैं किसान, जानिए कैसे
श्रीनगर, 17 मई : पारंपरिक खेती से जुड़े लोग मार्केट डिमांड देखते हुए कई जगहों पर सुगंधित पौधों की खेती करने की शुरुआत कर चुके हैं। ऐसा ही कुछ जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में रहने वाले युवा भी कर रहे हैं। सुगंधित पौधों की खेती के कारण जम्मू-कश्मीर के युवाओं को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। इन युवाओं ने लैवेंडर के पौधे की खेती का ऑप्शन चुना है। संभावनाओं को देखते हुए भारत सरकार की सीएसआईआर मिशन अरोमा (CSIR Mission Aroma) की स्कीम के तहत खुशबू वाले पौधों की खेती को बढ़ावा दे रही है। जानिए कैसे जम्मू-कश्मीर के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर रहा है मिशन अरोमा

सुगंधित पौधों की खेती को बढ़ावा
जम्मू-कश्मीर के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए सरकार कश्मीर में सुगंधित पौधों की खेती को बढ़ावा दे रही है। खेती के बाद सुगंधित और औषधीय पौधों के उत्पादों की प्रोसेसिंग और अधिक से अधिक लोगों को अरोमा फार्मिंग से जोड़ने के मकसद से जागरूकता अभियान का भी सहारा लिया जा रहा है। कश्मीर घाटी की जलवायु अलग-अलग प्रकार की फल, सब्जी फसलों और अच्छी मात्रा में ऐसे पौधों का उत्पादन करने के लिए उपयुक्त है जिसका उपयोग औषधीय और सुगंधित गतिविधियों (aromatic activities) में किया जा सकता है।

युवाओं को सुगंधित पौधों की खेती से जोड़ने की कोशिश
जागरूकता अभियान का असर भी देखा जा रहा है। सीएसआईआर मिशन अरोमा से किसान हजारों की संख्या में जुड़ रहे हैं। मिशन अरोमा में कश्मीर घाटी के किसान भी बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे हैं। सीएसआईआर का मकसद युवाओं को सुगंधित पौधों की खेती में शामिल करने के लिए जागरूकता पैदा करना है। इनका मानना है कि सुगंधित पौधों की मदद से, किसान या युवा उद्यमी अपनी इकाइयां स्थापित कर सकते हैं। इससे अन्य लोगों को रोजगार भी मिल सकेगा।

जागरूकता अभियान से खुश हैं किसान
अरोमा फार्मंग पर समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक सुगंधित पौधों के उत्पादक सबधर वानी अरोमा फार्मिंग से जुड़ी जागरूकता अभियान से खुश हैं। वे बताते हैं कि किसानों को खेती और उत्पादों की प्रोसेसिंग के बारे में जानकारी मिलती है। वैज्ञानिक और विद्वान अपना ज्ञान शेयर करते हैं, ताकि खेती के दौरान किसान ठीक तरीके से चीजों को कर सकें और उत्पादन में नुकसान न हो।

अरोमेटिक प्लांट की खेती पारंपरिक पद्धति से अलग
भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान (Indian Institute of integrative medicine -IIIM) और कृषि विभाग की ओर से भी ने सुगंधित और मेडिसिनल प्लांट की खेती और प्रोडक्ट प्रोसेसिंग के बारे में जानकारी दी जाती है। IIIM से जुड़े वैज्ञानिक डॉ शाहिद रसूल बताते हैं कि सीएसआईआर मिशन अरोमा पर जागरूकता कार्यक्रम बहुत अहम है। इसका मकसद उत्पादकों को बड़े पैमाने पर सुगंधित पौधों की सही तरीके से खेती करने को प्रेरित करना है। उन्होंने बताया कि अरोमेटिक प्लांट की खेती पारंपरिक पद्धति से अलग है। बड़े पैमाने पर खेती पॉपुलर नहीं होने के कारण किसानों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।

प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग पर भी ध्यान
एएनआई की रिपोर्ट में अरोमेटिक प्लांट लैवेंडर के उत्पादक गुलाम मोहिउद्दीन मीर बताते हैं कि वे पिछले चार साल से सुगंधित पौधे की खेती के कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि उत्पादकों को खेती और उत्पादों के प्रसंस्करण के सही तरीके को समझने में मदद करता है। सरकार कश्मीर घाटी, विशेष रूप से पुलवामा जिले में सुगंधित पौधों की खेती को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।

लैवेंडर के अलावा गुलाब और अन्य सुगंधित पौधों की खेती
जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले में लैवेंडर प्लांट की खेती (Lavender plant cultivation) के अलावा गुलाब और अन्य सुगंधित पौधों की खेती भी की जा रही है। इन पौधों का औषधीय महत्व भी है। ऐसे में अरोमेटिक प्लांट उपजाने वाले युवाओं के लिए अरोमा फार्मिंग रोजगार का एक स्रोत बन सकता है। सुगंधित पौधों की खेती में रुचि रखने वाले युवा उद्यमियों को सीएसआईआर मिशन अरोमा से जोड़ा जा रहा है।

10,000 रुपये प्रति किलो तक मिलती है कीमत
सरकार युवाओं को विभिन्न योजनाओं की मदद से सुगंधित पौधों के महत्व के साथ-साथ उनकी मार्केट डिमांड के बारे में भी बता रही है। एएनआई की रिपोर्ट में पुलवामा में लैवेंडर की खेती कर रहे मोहम्मद अयूब ने बताया कि वे लैवेंडर फूलों की फसल से काफी लाभ मिल रहा है क्योंकि इसके फूलों की प्रोसेसिंग के बाद निकाला जाने वाला तेल 10,000 रुपये प्रति किलो तक बिकता है। उन्होंने कहा कि अगर पुलवामा के बेरोजगार युवा लैवैंडर की खेती करना शुरू कर दें, तो बेरोजगारी भी कुछ हद तक दूर हो सकती है

बदलते मौसम में भी सुरक्षित फसल
मिशन अरोमा के बारे में पुलवामा में सीएसआईआर प्रभारी वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शाहिद रसूल ने बताया, सुगंधित पौधों की खेती इसलिए करनी चाहिए, क्योंकि ये औद्योगिक फसलें हैं। उन्होंने कहा कि अरोमेटिक प्लांट की खेती करने से इनसे बनने वाले उत्पादों की भी अच्छी मार्केट प्राइस मिलती है। उत्पादों की प्रोसेसिंग और वैल्यू एडिशन के कारण किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। ये फसलें टिकाऊ होती हैं और जलवायु में बदलाव के बावजूद इन पर बहुत बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।

जरूरी है सरकार का मार्गदर्शन
सीएसआईआर साइंटिस्ट डॉ. शाहिद रसूल के मुताबिक भारत सरकार अरोमेटिक फार्मिंग उद्योग को बढ़ावा देने की पूरी कोशिश कर रही है। रसूल ने कहा कि सरकार के सहयोग और पर्यवेक्षण के बिना सुगंधित पौधों की अच्छी खेती संभव नहीं है। सकारात्मक परिणाम हासिल करने में परेशानी होगी। उन्होंने कहा कि सरकार की मदद के बिना जो प्रगतिशील उत्पादक निजी क्षेत्र में सुगंधित पौधों का उत्पादन करना चाहते हैं उन्हें उचित लाभ नहीं मिल सकता।

सुगंधित फसलों के अलावा जड़ी बूटियों की भी खेती
अरोमेटिक प्लांट की खेती के मकसद से पुलवामा में फील्ड स्टेशन बोनेरा भी स्थापित किया गया है। इसे सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन (CSIR-Indian Institute of Integrative Medicine (IIIM) के नाम से जाना जाता है। यह सबसे बड़े अनुसंधान और विकास संस्थानों में से एक है। यहां लगभग 60 हेक्टेयर के क्षेत्र में उच्च मूल्य वाली औषधीय, सुगंधित, मसाला और न्यूट्रास्यूटिकल फसलों (nutraceutical crops) की खेती की जाती है। फील्ड स्टेशन बोनेरा में वाणिज्यिक पैमाने पर विभिन्न औषधीय और सुगंधित, मसाले और न्यूट्रास्युटिकल फसलों की खेती की जाती है। इनमें विशेष रूप से लैवेंडर (Lavender), गुलाब, सुगंधित गेरेनियम (scented Geranium), क्लेरी सेज (Clary Sage), आर्टेमिसिया (Artemisia), केसर (Saffron) और मेंहदी (Rosemary) उपजाई जाती हैं। इनके अलावा भी कई अन्य छोटी सुगंधित फसलों और जड़ी बूटियों (culinary herbs) की खेती की जाती है।

बड़ी संख्या में जुड़ रहे लोग, कौशल विकास की भी स्कीम
सीएसआईआर पुलवामा में प्रोजेक्ट एसोसिएट इकरा फारूक (Iqra Farooq) के मुताबिक फील्ड स्टेशन बोनेरा के अरोमेटिक फार्मिंग वाले खेतों को रिसर्च के लिए बेहतर माना जाता है। समशीतोष्ण औषधीय और सुगंधित फसलों (temperate medicinal and aromatic crops) की खेती के लिए बोनेरा सबसे अच्छा माना जाता है। इस सेंटर पर सुगंधित पौधों के उत्पादकों को तेल निकालने की प्रक्रिया के बारे में भी ट्रेनिंग दी जाती है, क्योंकि गुलाब या लैवेंडर का तेल बहुत महंगा होता है। अगर अरोमेटिक फार्मिंग करने वाले किसानों की रूचि हो तो अपेक्षा से अधिक पैसे कमाए जा सकते हैं। इकरा फारूक के मुताबिक ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के शिक्षित और बेरोजगार युवाओं के लिए, कौशल विकास की स्कीम भी चलाई जाती है। उद्यमिता के कौशल को भी निखारा जाता है। युवाओं को तकनीकी पहलू भी सिखाया जाता है।