शिवाजी पार्क में दशहरा रैली पर तकरार: उद्धव बेकरार लेकिन शिंदे नहीं तैयार
शिवसेना की दशहरा रैली और मुंबई के शिवाजी पार्क का दशकों पुराना साथ रहा हैं। लेकिन इस बार इसका संयोग बनता नहीं दिख रहा है। ऐसे में सरकारी कुर्सी से उतरने के बाद उद्धव ठाकरे अब अपनी पर उतर आते दिख रहे हैं। उनकी शिवसेना ने ऐलान कर दिया है कि सरकार अगर शिवाजी पार्क में दशहरा रैली की इजाजत नहीं देगी, तो भी उनकी रैली शिवाजी पार्क में ही होगी।
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अब तक शिवसेना को शिवाजी पार्क मिलने में कभी कोई परेशानी नहीं आई, भले ही वह सरकार में रही हो या न रही हो। लेकिन अब दिक्कत इसलिए है, क्योंकि उसके अपने ही उससे टूटकर सरकार में बैठे हैं और न तो वे और न ही बीजेपी चाहती है कि उद्धव की दशहरा रैली वहीं पर हो, जहां पर होती रही है।
शिवसेना न तो अब महाराष्ट्र में सरकार में है, न सरकार से उसके कोई अच्छे रिश्ते हैं और न ही मुंबई महानगर पालिका पर अब उसका कब्जा है। कई दिनों की लगातार कोशिशों के बावजूद शिवसेना के उद्धव गुट को शिवाजी पार्क में दशहरा रैली की इजाजत नहीं मिली है। जब उद्धव गुट को लगने लगा कि राज्य की शिंदे सरकार लगातार अडंगे लगा रही है, और किसी भी हाल में शिवाजी पार्क में सभा नहीं करने देगी, तो हार कर उसे बालहठ जैसा ऐलान करना पड़ा।
शिवसेना का कानून तोड़ने का इतिहास पुराना रहा है, परंतु इस बार मामला इतना आसान नहीं है। क्योंकि एक तो शिवसेना बेहद कमजोर हो चुकी है, फिर उसकी आधी शक्ति उसी के खिलाफ सत्ता के साथ खड़ी है और सत्ता से लड़ने की ताकत वाले लोग भी अब उसके साथ बचे नहीं है। ले देकर उद्धव, उनके बेटे आदित्य ठाकरे, कुछ सांसद और चंद विधायक ही उद्धव की शिवसेना में हैं।
वैसे शिवसेना और शिवसैनिकों को सत्ता का स्वाद कुछ ज्य़ादा ही भाता है, और खासकर महानगर पालिका जैसे कमाऊ संस्थान में तो शिवसेना तीन दशक से काबिज रही है। लेकिन वहां से निकले बड़ी संख्य़ा में नगरसेवक रहे नेता आनेवाले दिनों में किसके साथ होंगे, कोई नहीं जानता। फिर, यह भी एक तथ्य है कि सरकार में बैठी शिंदे वाली बड़ी शिवसेना व बीजेपी जैसी ताकतवर पार्टी के खिलाफ खड़े होने की क्षमता कितने शिवसैनिकों में बची है, यह जांचने का पैमाना भी महानगर पालिका का चुनाव तय करेगा।
दशहरा रैली की इजाजत मांगने की बात करें, तो उद्धव की शिवसेना और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना, दोनों ने महानगर पालिका से शिवाजी पार्क में दशहरा रैली आयोजित करने की अनुमति मांगी थी। लेकिन जब दोनों को अनुमति नहीं मिली, तो शिंदे की शिवसेना ने तत्काल भांप लिया कि कोर्ट भी शिवाजी पार्क में इजाजत नहीं देगी, तो बीकेसी में जगह बुक करवा ली। क्योंकि वे जानते थे कि कहीं ये जगह उद्धव को न मिल जाए।
उधर, उद्धव की शिवसेना जब इसमें पिछड़ गई, तो 'मंदिर वहीं बनाएंगे' की तर्ज पर उद्धव के सिपहसालार मिलिंद वैद्य ने घोषित कर दिया कि इजाजत नहीं मिली, तो भी उनकी दशहरा रैली शिवाजी पार्क में ही होगी। मिलिंद यहां तक बोले कि हम शिवाजी पार्क में रैली करने के अपने फैसले पर बहुत अटल हैं, अतः इजाजत मिले या न मिले, हमारे शिवसैनिक दशहरा रैली के लिए शिवाजी पार्क ही पहुंचेंगे।
उल्लेखनीय है कि सन 1966 से शिवसेना अपनी स्थापना के साथ ही उसकी दशहरा रैली शिवाजी पार्क में ही करती रही है। और वहीं पर रैली करने को शिवसेना अपनी इज्जत व ताकत से भी जोड़ती रही है। लेकिन महानगर पालिका ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं लिया है। ऐसे में उद्धव गुट के शिवसैनिकों को संजय राऊत की याद आ रही है कि वे होते, तो बोल बोल कर और 'सामना' में लिख लिख कर माहौल बना देते। हालांकि, शिवसेना ने 19 सितंबर को अपने कुल 19 प्रवक्ताओं की सूची जारी की है, जिसमें संजय राऊत का नाम पहले नंबर पर है।
लेकिन जुलाई महीने से जेल में बंद शिवसेना सांसद संजय राउत की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही, कोर्ट ने उनकी हिरासत 14 दिनों के लिए बढ़ा दी है और 19 प्रवक्ताओं की लंबी चौड़ी सूची में बहुत बड़बोले नेताओं की नियुक्ति के बावजूद शिवसेना की फिलहाल तो बोलती लगभग बंद सी ही है।
दरअसल, शिवसेना का चरित्र भले ही राजनीतिक रहा हो, लेकिन वह स्वयं को शिवाजी की अस्मिता से जोड़कर दुनिया में दिखावा करने की आदी रही है, इसीलिए शिवसेना और शिवाजी पार्क में रैली करने का उसका अपना एक अलग मनोवैज्ञानिक कारण भी है। फिर, मामला शिवसेना के अपने इतिहास का भी है।
सन 1966 में बाल ठाकरे ने जब शिवसेना का गठन किया था, तो दशहरा के अवसर पर रैली शिवाजी पार्क में ही की थी। वैसे तो राजनीति में इस तरह की बातों का कई खास महत्व नहीं होता, लेकिन तब से ही शिवसेना ने उस जगह, उस दिन और उस रैली को अपनी राजनीतिक परंपरा का अभिन्न अंग मान लिया, और बाद के सालों में उस परंपरा को लगभग जिद भी बना डाला।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि इजाजत न मिलने पर रैली वहीं करने का ऐलान भी शिवसेना की उसी राजनीतिक जिद का दिखावा है। कहते हैं कि वक्त के साथ सभी को बदलना होता है। जानकार भी मानते हैं कि समय के बदलाव को स्वीकारते हुए शिवसेना को भी अपने भीतर बदलाव लाने ही चाहिए। उसी के तहत जिद छोड़कर कहीं अन्यत्र रैली के लिए तैयार होना चाहिए। वैसे लग रहा है कि बीजेपी व शिंदे के राज में शिवसेना को किसी भी हाल में शिवाजी पार्क मे रैली की इजाजत नहीं मिलेगी। फिर भी रैली वहीं करने की जिद नया विवाद खड़ा करने जा रही है।
आनेवाले महानगरपालिका चुनाव के नजरिये से देखें, तो कमजोर होती शिवसेना शिवाजी पार्क पर विवाद से भी शक्ति संचित करने की कोशिश जरूर करेगी। क्योंकि, पहले विवाद पैदा करना, फिर उस विवाद से अपना विकास करते रहना ही शिवसेना की सच्ची फितरत रही है। फिर भी यह देखने के लिए तो दशहरा के दिन का इंतजार ही करना पड़ेगा कि शिवसेना की रैली आखिर होती कहां है?
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)