G-20 Presidency: एकजुटता दिखाने के वक्त दो मुख्यमंत्रियों की संकीर्ण राजनीति
जी 20 की अध्यक्षता संभालने के बाद गुजरात विधानसभा चुनावों की भागदौड़ से निपटते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 दिसंबर को सर्वदलीय बैटक बुलाई, जिसमें छोटे बड़े 40 दलों को आमंत्रित किया गया।
G-20 Presidency: भारत के लिए गर्व की बात है कि उसे जी-20 देशों के समूह की अध्यक्षता करने का मौक़ा मिला है| जी-20 दुनिया के प्रमुख विकसित और विकासशील देशों का अंतर- सरकारी मंच है| इसमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल हैं| यानि दुनिया के अर्थतंत्र को कंट्रोल करने वाले लगभग सारे देश जी-20 का हिस्सा हैं|
एक साल की भारत की अध्यक्षता के दौरान देश भर में जगह जगह, अलग अलग विषयों पर 55 बैठकें होंगी, जिनमें जी 20 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे| मोदी सरकार ने 55 बैठकें रख कर दुनिया को विकसित होते भारत के दर्शन करवाने की रणनीति बनाई है, इससे सभी प्रदेशों में विदेशी पूंजी निवेश की संभावनाएं बढ़ेंगी| सभी राज्यों को विदेशी निवेश और पर्यटन को बढावा देने का मौका मिलेगा| अगले साल 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में जी 20 नेताओं का शिखर सम्मेलन होना है|
भारत ने जब अध्यक्षता संभाली, तो फारूख अब्दुल्ला ने कहा कि जी-20 के माध्यम से पाकिस्तान से बात करने का मौक़ा मिल सकता है| हुर्रियत कांफ्रेंस ने भी इसी तरह का बयान दिया है| मोदी सरकार पाकिस्तान से बातचीत की रणनीति छोड़ चुकी है, मोदी सरकार पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अलग थलग करके महत्वहीन करने की रणनीति पर काम कर रही है|
इसी रणनीति को आगे बढाते हुए मोदी सरकार ने जी-20 की एक बैठक कश्मीर में भी रखी है। दुनिया भर के देशों के प्रतिनिधि जब कश्मीर में जुटेंगे, तो कश्मीर को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत भी स्थिति मजबूत होगी और पाकिस्तान अलग थलग हो जाएगा|
न तो यह मोदी सरकार का प्रोग्राम है, न भाजपा का प्रोग्राम है, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति से ऊपर उठ कर इसे राष्ट्रीय स्वाभिमान के अवसर के रूप में ही लिया| जी-20 की बैठकों का सिलसिला कांग्रेस शासित राजस्थान के उदयपुर से शुरू हुआ|
जी 20 की अध्यक्षता संभालने और गुजरात विधानसभा चुनावों की भागदौड़ से निपटते ही 5 दिसंबर को मोदी ने सर्वदलीय बैटक बुलाई, जिसमें छोटे बड़े 40 दलों को आमंत्रित किया गया| राष्ट्रपति भवन में हुई इस बैठक में प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि यह ऐसा आयोजन है, जिस पर पूरे देश को गर्व होना चाहिए और इसे सफल बनाने के लिये सभी को योगदान करना चाहिए|
गुजरात विधानसभा चुनावों की जबर्दस्त तल्खी के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल ने वोटिंग के दिन ही बुलाई गई बैठक में पहुंच कर भारतीय लोकतन्त्र की परिपक्वता का परिचय दिया|
प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के अध्यक्ष खड़गे ने बैठक में तीन महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए, जिन्हें जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत प्रभावशाली ढंग से अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठा सकता है| उन्होंने कहा कि भारत को चीन के साथ सीमा घुसपैठ के मुद्दे को उठाना चाहिए, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की मांग करनी चाहिए और आर्थिक अपराधियों और भगोड़ों से निपटने के लिए एक समान कानून बनाने का आग्रह करना चाहिए|
मल्लिकार्जुन खड़गे, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी, बीजू जनता दल के अध्यक्ष नवीन पटनायक, शिवसेना के अध्यक्ष एकनाथ शिंदे, आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल, वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष जगनमोहन रेड्डी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी, द्रमुक के महासचिव एम के स्टालिन, जनता दल सेक्यूलर के अध्यक्ष देवेगौडा, सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग, तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू और भाकपा के महासचिव डी. राजा ने बैठक में हिस्सा भी लिया और एकजुटता दिखाने का वायदा भी किया| इन सभी नेताओं ने नरेंद्र मोदी के साथ व्यक्तिगत मुलाकातें कर के उन्हें बधाई भी दी, क्योंकि जी-20 की अध्यक्षता भारत के लिए गौरव का विषय है|
हालांकि जी-20 के "लोगो" पर कुछ विपक्षी पार्टियों ने शुरू में एतराज किया था, क्योंकि उसमें कमल के फूल का इस्तेमाल किया था, जो भाजपा का चुनाव निशान भी है| कमल राष्ट्रीय फूल भी है, इसलिए विपक्ष के विरोध को जनता ने स्वीकार नहीं किया| इसलिए मोटे तौर पर राजनीतिक दलों ने स्थानीय राजनीति के इस मुद्दे को छोड़ दिया, क्योंकि इससे किसी राजनीतिक दल के वोट बैंक पर कोई फर्क नहीं पड़ना|
भारत के राजनीतिक दलों की यह परिपक्वता थी कि इस क्षणिक विरोध को तुरंत ही रोक दिया गया क्योंकि इसका भारत की छवि पर विपरीत असर होता| लेकिन हैरानी हुई कि दो मुख्यमंत्रियों नीतीश कुमार और के.चन्द्रशेखर राव ने जी-20 पर बुलाई सर्वदलीय बैठक में जानबूझकर हिस्सा नहीं लिया, जबकि वे अपनी पार्टियों के कर्ताधर्ता भी हैं|
नीतीश कुमार और चन्द्रशेखर राव दोनों ही खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बता रहे हैं, लोकतंत्र में उन्हें इसका हक भी है| लेकिन विरोध की राजनीति करते करते वे नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत विरोध की राजनीति कर ही रहे थे, अब जब राष्ट्रीय एकता दिखाने का मौक़ा था, तो उन्होंने उस पर भी क्षुद्र राजनीति कर दी|
वैसे ममता बनर्जी और अरविन्द केजरीवाल भी मोदी विरोधी राजनीति करते हैं, ये दोनों भी खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानते हैं, लेकिन दोनों ने बैठक में शामिल हो कर भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता का सबूत दिया| जबकि राजनीति में परिपक्व माने जाने वाले शरद पवार बैठक में शामिल नहीं हुए|
राष्ट्रीय जनता दल, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी का कोई प्रतिनिधि बैठक में नहीं पहुंचा| नीतीश कुमार खुद नहीं आना चाहते थे तो वह जदयू अध्यक्ष ललन सिंह को ही भेज सकते थे, इसी तरह केसीआर खुद नहीं आना चाहते थे, तो वह अपने मंत्री बेटे को भेज सकते थे|
शरद पवार खुद नहीं आ रहे थे तो अपनी बेटी सुप्रिया सुले को ही भेज सकते थे| शरद पवार और उद्धव ठाकरे को तो संसदीय कार्यमंत्री ने दो दो बार फोन भी किया था, लेकिन शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने पांच दिसंबर को ही अपने गठबंधन की बैठक बुला ली, जिस दिन सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी|
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