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Parking Problems: पार्किंग माफियाओं के कब्जे में देश की राजधानी दिल्ली

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Parking Problems: देश की राजधानी दिल्ली में स्थित करोल बाग की बैंक स्ट्रीट में 4115 वर्ग मीटर में स्थित स्कूल की जमीन को एमसीडी द्वारा पार्किंग माफियाओं को बेच दिए जाने पर इसी साल जनवरी में खूब बहस हुई थी। उन दिनों एमसीडी के चुनाव नहीं थे तो यह कोई खास मुद्दा नहीं बन पाया।

Parking mafia active thrives in delhi

अब एमसीडी चुनाव आ गए हैं। इस चुनाव में राजनीतिक पार्टियां मैदान में उतर चुकी हैं तो एक बार फिर पार्किंग माफिया चुनावी मुद्दा बना है। दिल्ली में पार्किंग में नियमों की हो रही अनदेखी का मामला एक तरफ है और यहां चल रहे अनगिनत अवैध पार्किंग और उसकी वजह से सड़क पर लगने वाले जाम की समस्या एक तरफ।

दुनिया के बीस बड़े शहरों में आईबीएम ने पार्किंग के मुद्दे पर एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें पार्किंग को लेकर दिल्ली को दुनिया का सबसे खराब शहर माना गया था, जहां पार्किंग के मुद्दे पर सबसे अधिक बहस होती है। इस सर्वेक्षण में नैरोबी और मिलान जैसे शहर दिल्ली के भी पीछे ही खड़े थे।

कहने के लिए देश में सबसे अधिक गाड़ियां दिल्ली शहर में ही हैं, लेकिन इनमें दो पहिया वाहन सबसे अधिक है। जहां तक कारों की बात है तो दिल्ली में जगह के अनुपात में मुंबई से पांच गुना कम कार सड़कों पर हैं। फिर भी दिल्ली में आये दिन जाम की समस्या रहती है।

इसका सबसे बड़ा कारण है कारों के लिए पार्किंग का अभाव। मुंबई या पुणे जैसे शहरों में जहां अपार्टमेन्ट कल्चर है वहां कारों की पार्किंग बिल्डिंग के भीतर ही बनायी जाती है लेकिन दिल्ली में कार खड़ी करने के लिए अधिकांश सड़कों का सहारा ही लिया जाता है।

दिल्ली के जाम में फंसा कोई व्यक्ति सड़क पर कतार से लगी हुई गाड़ियों को देखकर नहीं समझ सकता कि ये वैध पार्किंग है या फिर अवैध रूप से मुख्य सड़क पर कब्जा करके गाड़ियां खड़ी कर दी गई हैं।

यह दिल्ली की किसी एक सड़क का हाल नहीं है। जीटी करनाल रोड पर मजनू के टीले से आप कभी गुजरें तो 50-100 गाड़ियां सड़क पर खड़ी मिलेगी। तीस हजारी कोर्ट के बाहर ऐसे ही गाड़ियों की कतार खड़ी होती है। एक आदमी कैसे समझे कि जिस पार्किंग की वजह से वह जाम का शिकार हो रहा है, वह पार्किंग वैध या अवैध?

दिल्ली की सड़कों से पार्किंग खत्म हो जाए तो यहां की जाम की आधी समस्या का समाधान हो जाए। आरटीआई एक्टिविस्ट गोपाल प्रसाद ने जहांगीरपुरी में चलने वाली अवैध पार्किंग के संबंध में बताया, जिसे वहां के कुछ ताकतवर लोग चलाते हैं। वहां एक पूरी सड़क पार्किंग माफियाओं ने बंद करके रखी हुई है। इन सारी गतिविधियों के पीछे जिसका नाम सबसे अधिक आता है, वह पिछले दिनों जहांगीरपुरी दंगा मामले में जेल से लौटकर आया है।

जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के पास लोधी रोड की झुग्गियों को इसलिए हटाया गया ताकि वहां पेड़ लगाए जाएंगे। वहां वृक्षरोपण तो नहीं हुआ लेकिन क्रंकीट का फर्श बनाकर पार्किंग जरूर बना दी गई।

दिल्ली की सड़कों पर हजारों की संख्या में ऐसी गाड़ियां चल रहीं हैं, जिनके पास अपनी पार्किंग नहीं है। वे सड़क पर खड़ी करने के भरोसे से ही खरीदी गई हैं। दिल्ली जैसे महानगर में जब एक गाड़ी खड़ी की जाती है, वह कम से कम चार लोगों के खड़े होने की जगह लेती है। यदि वह किसी चलती सड़क पर खड़ी की जाती है तो निश्चित तौर पर जाम का कारण बनती है। क्या दिल्ली एमसीडी इस बात की चिन्ता करती है कि जिनके पास गाड़ी पार्किंग की जगह ना हो, उन्हें एजेन्सियां नई गाड़ी ना बेचे।

दिल्ली में भगवान भरोसे गाड़ियों को खड़ी करने के कारण पूरे देश में होने वाली गाड़ियों की चोरी में दिल्ली एनसीआर की भागीदारी 56 फीसदी है। यहां प्रत्येक 12 मिनट में एक वाहन की चोरी होती है। दिल्ली के अंदर रोहिणी, भजनपुरा, दयालपुर और सुल्तानपुरी में सबसे अधिक वाहन चोरी की घटनाएं दर्ज की गई हैं। इन्हीं क्षेत्रों में पार्किंग को लेकर सबसे अधिक मारा-मारी भी होती है। अवैध पार्किंग और गाड़ियों की सबसे अधिक चोरी वाली सूचि में उत्तम नगर (पश्चिम), नोएडा सेक्टर 12, गुरूग्राम का नाम भी शामिल कर सकते हैं।

यदि सड़क किनारे होने वाली अवैध पार्किंग की वजह से जाम लगता है और सैकड़ों लोगों के समय और ईंधन का नुकसान होता है फिर ऐसी पार्किंग को हटाया क्यों नहीं जाता? तकनीक की मदद से ऐसा एप बनाया जा सकता है जहां नेवीगेशन के माध्यम से दिल्ली के सभी वैध पार्किंग की जानकारी आम आदमी को उसके मोबाइल पर मिल जाए और वह किसी अवैध पार्किंग की वजह से जाम में फंसे तो मोबाइल पर ही वह अपनी शिकायत दर्ज करा पाए। दिल्ली में सड़क के किनारे-किनारे कुकुरमुत्ते की तरह उग आए अवैध पार्किंग को यदि खत्म कर दिया जाए तो ना सिर्फ जाम से बल्कि प्रदूषण की समस्या से भी दिल्ली वालों को थोड़ी राहत मिलेगी।

यदि एमसीडी की वैध पार्किंग की बात करें तो वहां भी जमकर नियमों की अनदेखी होती है। जैसे तय सीमा से बाहर तक उनकी पार्किंग चलती है। वे अपनी क्षमता से अधिक गाड़ी अंदर बाहर भर लेते हैं। जबकि यह सब नहीं होना चाहिए। अगली बार जब आप एमसीडी की किसी पार्किंग में जाएं तो जरूर गौर कीजिए कि पार्किंग में कीमत का सही ब्योरा कहीं लगाया गया है या नहीं, पार्किंग वाले की शिकायत करने के लिए वहां एक हेल्पलाइन नंबर लिखा है या नहीं। वहां पर्ची हाथ से नहीं बनी होनी चाहिए। बल्कि गौर कीजिए उसके लिए पार्किंग में हैंडहेल्ड उपकरण है अथवा नहीं। पार्किंग चलाने वाले वर्दी में हैं या नहीं। पार्किंग में ठेकेदार का नाम, नंबर और उसके टेंडर की समय सीमा का वर्णन किया हुआ बोर्ड कहीं लगा है या नहीं। वहां निगम द्वारा तय रकम वसूली जा रही है या नहीं।

यहां जिन बातों का वर्णन किया गया है। यदि उसमें किसी प्रकार की कोई कमी या शिकायत सामने आती है या किसी प्रकार की पार्किंग संचालकों द्वारा लापरवाही बरती जाती है तो नगर निगम के पास उनका चालान काटने से लेकर ठेका रद्द करने तक का अधिकार है। लेकिन सारे नियम, कायदे, कानून, अधिकार धरे के धरे ही रह जाते हैं।

हर साल पार्किंग माफियाओं पर शिकंजा कसने का अभियान शुरू होता है। लाख डेढ़ लाख चालान का रिकॉर्ड बनता है फिर इस चालान के रिकॉर्ड से खानापूर्ति कर के अभियान को अगले किसी अभियान तक के लिए खत्म कर दिया जाता है। इस पूरे प्रकरण में जनता ठगी की ठगी रह जाती है क्योंकि सड़क पर ना उसे अवैध पार्किंग से निजात मिलती है और ना ही जाम से।

उम्मीद करनी चाहिए कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव के जो भी परिणाम आयेंगे, उसका असर पार्किंग माफियाओं पर पड़ेगा। देश की राजधानी दिल्ली में वैध पार्किंग बढेगी और दिल्ली वालों को जाम से निजात मिलेगी।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
Parking mafia active thrives in delhi
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