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अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम फंसे, क्या भारत में भी फैल सकता है खतरनाक वायरस मंकी पॉक्स?

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नई दिल्ली, 20 मईः पूरी दुनिया लगभग ढाई वर्षों से कोरोना वायरस से जूझ रही है। कई देश अभी भी इसकी जद में बुरी तरह फंसे हुए हैं। चीन के कई हिस्सों में इसके फैलाव को रोकने के लिए कड़े लॉकडाउन लगा दिए गए हैं। इसी बीच दुनिया पर अब मंकी पॉक्स वायरस का खतरा मंडराने लगा है। अमेरिका में बुधवार को मंकी पॉक्स का पहला केस मिलने के बाद अब फ्रांस, स्पेन, स्वीडन, जर्मनी, इटली और ऑस्ट्रेलिया में भी इसके मामले सामने आए हैं। अब तक यह बीमारी कुल 10 देशों में फैल चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे लेकर सतर्क हो गया है।

दस देशों में फैल चुकी है ये बीमारी

दस देशों में फैल चुकी है ये बीमारी

ब्रिटेन में इसका पहला मरीज 7 मई को मिला था। अब तक ब्रिटेन में मंकी पॉक्स के मरीजों की संख्या 9 पहुंच चुकी है। वहीं, स्पेन में 7 और पुर्तगाल में 5 मरीजों में इसके लक्षण देखे गए हैं। अमेरिका, इटली, स्वीडन, फ्रांस, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में मंकी पॉक्स के 1-1 मामले सामने आए हैं। साथ ही कनाडा में 13 संदिग्ध मरीजों की जांच की जा रही है। लगातार बढ़ते मामले को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन एलर्ट हो गया है।

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लगातार बढ़ रहे मंकी पॉक्स के मामले

लगातार बढ़ रहे मंकी पॉक्स के मामले

मंकी पॉक्स का वायरस स्मॉल पॉक्स से संबंधित है। हालांकि इसके लक्षण स्मॉल पॉक्स की तुलना में काफी हल्के होते हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस वायरस के लगातार केस बढ़ रहे हैं। मंकीपॉक्स एक वायरल इन्फेक्शन है जो कि आम तौर पर जंगली जानवरों में होता है। लेकिन इसके कुछ केस मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के लोगों में भी देखे गए हैं। लेकिन पहली बार इस बीमारी की पहचान 1958 में हुई थी। उस वक्त रिसर्च करने वाले बंदरों में चेचक जैसी बीमारी हुई थी इसीलिए इसे मंकीपॉक्स कहा जाता है।

2017 में नाइजीरिया में दिखा था प्रकोप

2017 में नाइजीरिया में दिखा था प्रकोप

पहली बार इंसानों में इसका संक्रमण 1970 में कांगों में एक 9 साल के लड़के को हुआ था। 2017 में नाइजीरिया में मंकी पॉक्स का सबसे बड़ा प्रकोप देखा गया था, जिसके 75% मरीज पुरुष थे। मंकीपॉक्स किसी संक्रमित जानवर के काटने या उसके खून या फिर उसके फर को छूने से हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि यह चूहों, चूहों और गिलहरियों द्वारा फैलता है।

ब्रिटेन में मिला प.अफ्रीकी स्ट्रेन

ब्रिटेन में मिला प.अफ्रीकी स्ट्रेन

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मंकी पॉक्स एक विलक्षण बीमारी है, जिसका संक्रमण कई मामलों में गंभीर हो सकता है। इस वायरस की दो स्ट्रेंस, पहली कांगो स्ट्रेन और दूसरी पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन हैं। कांगो स्ट्रेन की मृत्यु दर 10 फीसदी और पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन की मृत्यु दर मात्र एक फीसदी है। ब्रिटेन में पश्चिम अफ्रीकी स्ट्रेन की पुष्टि हुई है।

चेचक की वैक्सीन है कारगर

चेचक की वैक्सीन है कारगर

मंकीपॉक्स के अधिकतर मरीज बुखार, शरीर में दर्द, ठंड लगना और थकान जैसे लक्षण का अनुभव करते हैं। अधिक गंभीर बीमारियों वाले लोगों के चेहरे और हाथों पर दाने और घाव हो सकते हैं जो कि शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकते हैं। यह आमतौर पर 5 से 20 दिनों के बीच ठीक हो जाता है। अधिकतर लोगों को इसके लिए हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती है। कई शोधों के मुताबिक चेचक की वैक्सीन मंकी पॉक्स पर 85% तक कारगर होती है।

भारत को मंकी वायरस से कितना खतरा

भारत को मंकी वायरस से कितना खतरा

अब तक भारत में मंकी पॉक्स का एक भी संदिग्ध मरीज नहीं पाया गया है। इसलिए फिलहाल हमें इसका अधिक खतरा नहीं है। लेकिन फिर भी सरकार इसे अनदेखा नहीं कर रही है। अफ्रीका के बाहर यह बीमारी पहली बार इतनी बड़ी संख्या में रिपोर्ट की जा रही है। इसलिए भारत सहित दुनिया भर के स्वास्थ्य अधिकारी इसके मामलों पर नजर रख रहे हैं।

English summary
Europe and North America have detected dozens of cases of monkeypox, a virus that passes from infected animals such as rodents to humans. The World Health Organization said it was coordinating with health officials over the new outbreaks.
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