डेविड अमेस हत्याकांड: दुनिया में नेताओं को सुरक्षित रखना है कितनी बड़ी चुनौती?
चुनाव प्रचार हो या फिर जनसंपर्क अभियान दुनियाभर के राजनेताओं को अपनी जनता से मिलना ही होता है. पर ये जोख़िम भरा भी है. आइए जानते हैं कि दुनिया भर में नेताओं को सुरक्षित रखने की क्या व्यवस्था होती है.
ब्रिटिश सांसद सर डेविड अमेस की हत्या ने पूरी दुनिया के नेताओं की एक दुविधा को फिर से उजागर कर दिया है. दुनिया भर के नेताओं की ये आम दुविधा है कि सार्वजनिक रहने और 'सर्व सुलभ प्रतिनिधि' होते हुए भी ख़ुद की सुरक्षा कैसे करें?
इस बारे में हमने दुनिया के कई देशों के अपने संवाददाताओं से जानने का प्रयास किया कि उन देशों के जनप्रतिनिधि इस दुविधा से कैसे निपटते हैं?
ब्राज़ील
कैटी वॉटसन,
बीबीसी दक्षिणी अमेरिका संवाददाता
ब्राज़ील जैसे विशाल देश की राजनीतिक सच्चाइयां काफ़ी अलग हैं.
अमेज़ॉन जैसे सुदूर इलाक़ों में किसी छोटे नेता को सुरक्षा मिल पाने की उम्मीद बहुत कम या न के बराबर होती है. इसका मतलब ये नहीं कि उनकी सुरक्षा की वाजिब चिंता नहीं होती. वहां शक्तिशाली कारोबारी नियंत्रण करने के लिए जुटे होते हैं. ऐसे में नेताओं की सुरक्षा को ख़तरा कोई असामान्य बात नहीं है. लेकिन राजनीतिक रैलियां समुदाय का मामला होती हैं. नेता अक्सर एक जाना-पहचाना चेहरा होते हैं और समाज के ताने-बाने का हिस्सा होना अहम बात है.
साओ पाउलो और रियो डी जेनेरियो जैसे दक्षिण के बड़े शहरों में अंगरक्षकों और बड़े दलबल के साथ नेताओं के दिखने की संभावना काफ़ी होती है. वहां पैसे के साथ असमानताएं भी चरम पर हैं. अमीर नेता कॉरपोरेट जगत की ही तरह अपनी सुरक्षा का इंतज़ाम करते हैं.
राजनीतिक रूप से ब्राज़ील बहुत बंटा हुआ है. जायर बोलसोनारो के कार्यकाल के दौरान ये स्पष्ट हो गया है. उन्हें राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान चाकू मार दिया गया. इस घटना को उन्होंने बंदूक़ क़ानूनों को उदार बनाने के लिए इस्तेमाल किया.
विरोधाभास लाजिमी है. हाल में ब्राज़ीलिया की यात्रा के दौरान जब मैं राष्ट्रपति भवन गई, तो वहां मुझे सुरक्षा व्यवस्था में उल्लेखनीय ढिलाई महसूस हुई. मैं तब सोच रही थी कि यदि डाउनिंग स्ट्रीट गई होती तो इतने आराम से छोटी-सी सुरक्षा जांच के बाद वहां जा पाना संभव ही नहीं था.
नीदरलैंड्स
अन्ना हॉलिगन,
हेग से, बीबीसी न्यूज़
नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रूट को मस्ती में अपनी बाइक पर संसद आते-जाते देखा जा सकता है. इस दृश्य को देश के सुरक्षित, शांतिपूर्ण, सहिष्णु होने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है.
लेकिन उनकी इस आज़ादी पर हाल में रोक लग गई. उनकी हत्या की साज़िश रचने के संदेह में 22 साल के एक युवक को हिरासत में लिया गया है.
पिछले हफ़्ते, एक और डच नागरिक को अदालत में पेश किया गया. उन पर दो राजनेताओं को फ़ेसबुक पर मौत की धमकी देने का आरोप लगाया गया है. अब से दो दशक पहले, पार्टी-नेता पिम फ़ोर्टुइन की एक वामपंथी पशु अधिकार कार्यकर्ता ने हत्या कर दी थी.
डच जनप्रतिनिधि अपने यहां 'कॉन्स्टीचुएंसी सर्जरी' (अपने क्षेत्र के लोगों से मिलना) का कार्यक्रम नहीं करते क्योंकि नीदरलैंड्स ब्रिटेन जैसा विभाजित नहीं है. डच नेता योजना बनाकर और लोगों के बीच प्रचारित करके होने वाले खुले कार्यक्रमों में शामिल नहीं होते. वे जनता से मिलते हैं, लेकिन कभी-कभार और ज़रूरी होने पर.
नीदरलैंड्स में इस्लाम विरोधी नेता गीर्ट वाइल्डर्स सहित केवल कुछ नेताओं को ही सुरक्षा मिली हुई है. अधिकांश नेताओं के बारे में ये आम राय है कि उन्हें अपना काम करने में कोई बड़ा ख़तरा नहीं है.
अमेरिका
तारा मैककेल्वे
बीबीसी वॉशिंगटन संवाददाता
बंदूक़ों से होने वाली हिंसा और कोरोना के ख़तरों ने अमेरिका के कई नेताओं के अपने इलाक़े के लोगों से मिलने के तरीक़े को बदल दिया है. रिपब्लिकन और डेमोक्रैट दोनों नेताओं को हिंसक हमलों में निशाना बनाया गया है.
लुइसियाना के रिपब्लिकन सांसद स्टीव स्कैलिस को 2017 में गोली मारकर घायल कर दिया गया था. वे तब एक बेसबॉल प्रैक्टिस मैच में शामिल थे और उन्हें एक वामपंथी कार्यकर्ता ने गोली मार दी. वहीं 2011 में एरिज़ोना के डेमोक्रैट नेता गैब्रिएल गिफ़ोर्ड्स को एक सुपरमार्केट के बाहर आयोजितकार्यक्रम में एक बंदूकधारी ने गंभीर रूप से घायल कर दिया था.
नेता ऐसे ख़तरों का जवाब अक्सर अपनी पार्टी लाइन के अनुसार ही देते हैं. डेमोक्रैट नेता खुले स्थानों पर भीड़-भाड़ से बचते हैं या सुरक्षा के साथ चलते हैं. वहीं रूढ़िवादी नेता पहले की तरह ही घूमते हैं. वे भीड़ भरे जगहों पर भी लोगों से मिलते हैं.
असल में, रिपब्लिकन नेता बंदूक़ रखने के अधिकारों के समर्थक हैं. वहीं डेमोक्रैट नेता देश के लिए सख़्त बंदूक़ क़ानून चाहते हैं.
अभी भी किसी भी दल के सभी नेता लोगों से मिलने-जुलने के तरीक़े निकालते ही हैं. यह उनके काम का हिस्सा है और वे सभी अपने देश या विदेशों में नेताओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा से समान रूप से भयभीत रहते हैं.
भारत
विकास पांडेय
बीबीसी न्यूज़, दिल्ली
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में एक सांसद होने से नेताओं को कई तरह के विशेषाधिकार मिलते हैं. उनमें से एक सुरक्षा व्यवस्था भी है.
अधिकांश सांसदों को सुरक्षा के लिए कम से कम एक सशस्त्र सुरक्षा अधिकारी तो दिया ही जाता है. हालांकि सभी सांसदों की सुविधा एक जैसी नहीं होती. यह इस बात पर निर्भर करती है कि अमुक सांसद को किस स्तर का ख़तरा है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ख़तरे में होने वाले सांसदों की सुरक्षा की नियमित तौर पर समीक्षा करता है.
सांसद जब अपने चुनाव क्षेत्रों में जाते हैं तो राज्य की पुलिस भी उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा देती है और यह सुरक्षा भी ख़तरे की आशंका और सांसद के रुतबे पर निर्भर करती है. ज़्यादातर सांसद अपने इलाक़े में बैठक करते हैं जिसमें उनके समर्थकों के साथ निजी सुरक्षा गार्ड भी होते हैं.
एक पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारी ने मुझे बताया कि कई सांसदों और मंत्रियों के लिए भारी-भरकम सुरक्षा व्यवस्था अक्सर इज़्ज़त की बात होती है और इस वजह से कई बार उन नेताओं को पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिल पाती जिन्हें वाक़ई इसकी ज़रूरत होती है.
हाल के वर्षों में ऐसे कई हमले हुए हैं. हालांकि वे आमतौर पर स्याही फेंकने और थप्पड़ मारने तक ही सीमित रहे. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 2019 में चुनाव प्रचार के दौरान एक शख़्स ने थप्पड़ मार दिया था.
हालांकि इतिहास में देश के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सहित कई नेता हिंसक हमलों में अपनी जान गंवा चुके हैं.
केन्या
ऐनी सोय
बीबीसी न्यूज़, नैरोबी
केन्या के सांसदों को सुरक्षा के लिए एक सशस्त्र पुलिस अधिकारी की सेवा मिलती है. ये अधिकारी उनके अंगरक्षक का काम करते हैं. हालांकि संसद में बहुमत के नेता या अल्पमत के नेता को अधिक सुरक्षा दी जाती है.
सीनियर नेताओं की सुरक्षा में कई अधिकारी लगे होते हैं. सरकार ने सितंबर में बताया कि उप राष्ट्रपति और उनकी संपत्तियों की सुरक्षा में 257 गार्ड लगे थे.
केन्या के नेता आम तौर पर लोगों से बहुत घुलते-मिलते हैं. राजनीतिक दलों को ये पसंद हैं कि उनके कार्यक्रमों में ज़्यादा भीड़ जुटे. रैलियों में अपने समर्थकों को बुलाने के लिए वे काफ़ी पैसे भी ख़र्च करते हैं.
हालांकि उन्हें चर्चों और मृतकों के अंतिम संस्कार में आसानी से लोग मिल जाते हैं. इसलिए सप्ताह के अंत में कई नेता अपने किसी न किसी कार्यक्रम को कवर करने के लिए मीडिया को बुलाते हैं. यहां नेता अक्सर बिना किसी घटना के लोगों से मिलते रहते हैं.
हालांकि, 2014 में एक बुज़ुर्ग ने एक रैली में विपक्ष के नेता रैला ओडिंगा पर लाठी से हमला कर दिया था. 2008 और 2015 में अलग-अलग घटनाओं में तीन सांसदों की गोली मारकर हत्या कर दी गई. हालांकि भीड़ में किसी को नहीं मारा गया था.
आमतौर पर, नेताओं को उनके सहयोगी और सुरक्षाकर्मी, हैंडआउट लेकर अपनी मांग रखने वाले समर्थकों से बचाते हैं. कभी-कभी, पथराव करने वाली गुस्साई भीड़ से नेताओं को दूर बचाकर ले जाना होता है. चुनाव प्रचार के दौरान अक्सर तनाव बढ़ जाता है.
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