नेता जी ने ढूंढ निकाला तरीका, कालेधन को बेधड़क बदल रहे हैं ऐसे सफेद धन में
8 नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी के विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद से ही लोगों ने बचने के विकल्प तलाशने शुरू कर दिए थे।
मुंबई। एक तरफ भारत सरकार कालेधन के खिलाफ लड़ रही है तो वहींं दूसरी तरफ कुछ लोगों ने इससे बचने का भी रास्ता निकाल लिया है। वे बचने के लिए को-ऑपरेटिव बैंकों का सहारा ले रहे हैं।
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8 नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी के विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद से ही लोगों ने बचने के विकल्प तलाशने शुरू कर दिए थे। दरअसल, को-आॅपरेटिव बैंकों में अब भी कई जगह कम्प्यूटराइजेशन नहीं हो सका है।
वहां अब भी लेजर बुक्स में खाते का हिसाब किताब रखा जाता है। वे कस्टमर्स से कैश ले रही हैं और बैक डेट में एफडी यानी फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट खोल रही हैं।
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इसके साथ ही इन बैंकों से कैश के बदले डिमांड ड्राफ्ट भी इश्यू किये जा रहे हैं। यह काम ज्यादातर राजीतिज्ञ कर रहे हैं।
बैंकिंग सेक्टर के लोगों ने कहा कि कुछ लोग इस लूपहोल के जरिए अपने कालेधन को सफेद में बदलने की चालाकी कर रहे हैं। वे कैश के बदले डीडी या एफडी विकल्प को चुन रहे हैं।
ऐसा सभी बैंकों को आॅदेश है कि वे लोगों से कैश लें और उसके एवज में नई करंसी के नोट मुहैया कराएं।
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31 मार्च के बाद को-आॅपरेटिव बैंक डीडी को कैंसल कर इसे लेने वाले को कैश मुहैया करा देगी और इसे पाने वाला कालाधन रखने की श्रेणी में भी नहीं आएगा। हालांकि, आरबीआई इस लूपहोल को बंद करने पर काम कर रहा है।
इस केंद्रीय बैंक ने कदम उठाते हुए मंगलवार रात एक प्रेस रिलीज जारी की। उसमें उसने सभी को-आॅपरेटिव बैंकों को नोट निकासी संबंधी नियमों के प्रति चेतावनी दी।