जब दाऊद के नाम से हिल गए थे परवेज मुशर्रफ, जानिए अटल जी के साथ आगरा शिखर वार्ता के फेल होने की वजह
दुबई के अस्पताल में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का 79 साल की उम्र में निधन हो गया। साल 2001 में परवेज मुशर्रफ आगरा शिखर सम्मेलन में वार्ता के लिए आए थे।
Pervez Musharraf: पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का 79 साल की उम्र में रविवार को दुबई में इंतकाल हो गया। लंबी बीमारी से जूझ रहे मुशर्रफ ने दुबई के अस्पताल में आखिरी सांस ली। मुशर्रफ का लंबे समय से स्वास्थ्य ठीक नहीं था। जिसके चलते उनके कई बीमारियों ने घेरा हुआ था। पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ अमाइलॉइडोसिस नाम की बीमारी से ग्रस्त थे। जिसकी वजह से उनके शरीर के सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। परवेज मुशर्रफ 20 जून 2001 से 18 अगस्त 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे। इसके अलावा वे पाकिस्तान के आर्मी चीफ भी रहे।
एक नाम से हिला गया था पाकिस्तान
वैसे तो परवेज मुशर्रफ की जड़ें भारत से ही थीं, लेकिन भारत के प्रति उनके अंदर के रवैये को पूरा देश जानता है। भारत के साथ कारगिल की जंग में परवेज मुशर्रफ की ही बड़ी भूमिका मानी जाती है। हालांकि कारगिल युद्ध के करीब 2 वर्ष बाद साल 2001 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने परवेज मुशर्रफ को वार्ता का न्योता दिया और जगह तय की गई आगरा का जेपी पैलेस, लेकिन इस दौरान कुछ ऐसा हुआ कि मुशर्रफ के चेहरे का रंग उड़ गया, जिसके बाद अटलजी के साथ उनकी शिखर बैठक फेल हो गई।
आगरा में हुआ शिखर सम्मेलन
दरअसल, आगरा में हुआ शिखर सम्मेलन मई-जुलाई 1999 के कारगिल युद्ध के बाद दोनों देशों के नेताओं की यह पहली बैठक थी। भारत ने अपना बड़ा दिल दिखाते हुए मुशर्रफ को न्योता दिया। इस यात्रा के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने मुशर्रफ के सामने 1993 मुंबई बम धमाके के आरोपी आतंकी दाऊद इब्राहिम को लेकर एक प्रस्ताव रखा, जिसके बाद शिखर बैठक फेल हो गई, क्योंकि आतंकियों को पालने वाला पाकिस्तान इस बात पर अड़ा था कि दाऊद वहां नहीं है।
दाऊद का नाम लेते हुए मुशर्रफ के होश फाख्ता
इस पूरे घटनाक्रम की बात करें तो लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी आत्मकथा 'माई कंट्री, माई लाइफ' में इस बैठक का पूरा ब्योरा लिखा है। मुशर्रफ से मुलाकात का जिक्र करते हुए आडवाणी ने बताया कि उन्होंने मुशर्रफ से कहा कि क्यों ना भारत और पाकिस्तान भी प्रत्यर्पण संधि कर लें, जैसे तुर्की ने भारत के साथ प्रत्यर्पण संधि की है। इस कदम से दोनों देशों को फायदा होगा। हालांकि आडवाणी के इस प्रस्ताव पर मुशर्रफ ने शुरुआत में हामी भरते हुए कहा कि हां क्यों नहीं? दोनों देशों को प्रत्यर्पण संधि जरूर करनी चाहिए। लेकिन इसके बाद आडवाणी ने जैसे ही दाऊद इब्राहिम का नाम ले लिया तो मुशर्रफ के चेहरे का रंग उड़ गया। आडवाणी ने मुशर्रफ के सामने प्रस्ताव रखा कि औपचारिक रूप से इस संधि को लागू करने से पहले पाकिस्तान को मुंबई बम धमाकों के दोषी दाऊद इब्राहिम को भारत के हवाले कर दे, ताकि दोनों देशों के बीच शांति प्रक्रिया को मजबूती से पटरी पर लाया जा सके। इसके बाद ही वार्ता की विफलता की बात कही जाने लगी।
फिर फेल हो गई आगरा शिखर वार्ता
इसके बाद आगरा शिखर सम्मेलन के आखिरी दिन 16 जुलाई को संयुक्त प्रस्ताव आना था। लेकिन तत्कालीन पीएम अटल बिहारी बाजपेयी और परवेज मुशर्रफ के बीच हुई चर्चा बेनतीजा निकली, क्योंकि पाकिस्तान न तो शिमला समझौते का जिक्र करने को तैयार था और न लाहौर समझौते का। इसके साथ ही सीमा पार से कश्मीर में आतंकवादियों को मिल रही मदद का जिक्र भी करने को तैयार नहीं हुआ। पूरी बैठक में पाकिस्तान की तरफ से लगातार कश्मीर के मुद्दे पर ही बातचीत पर जोर दिया जा रहा था। इस वजह से बातचीत पूरी तरह से विफल रही।
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