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Elections in Turkey: तुर्किये में बदलाव की हवा, क्या टूटेगा एर्दोगन का 20 साल का ‘तिलिस्म’?

तुर्किये में 14 मई, 2023 को राष्ट्रपति चुनाव होना है और इस बार का चुनाव बीस वर्षों से सत्ता पर काबिज रेसेप तैयप एर्दोगन के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है।

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Elections in Turkey

Elections in Turkey: तुर्किये में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं। तकरीबन 20 सालों से भी ज्यादा समय से रेसेप तैयप एर्दोगन का सत्ता पर कब्जा है। यही वजह है कि 14 मई, 2023 को होने वाले आम चुनाव को तुर्किये के इतिहास का सबसे अहम चुनाव माना जा रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि भारी महंगाई और करीब 50 हजार लोगों के लिए काल बने विनाशकारी भूकंप ने एर्दोगन की सत्ता को भी हिला कर रख दिया है, लेकिन एर्दोगन का मजहबी ढाल अभी भी उनके साथ है। लिहाजा जनता का मत कुछ भी हो सकता है।

एर्दोगन के खिलाफ संयुक्त रूप से तुर्किये के छह मुख्य विपक्षी दलों (सीएचपी, मध्य-दक्षिणपंथी आईवाईआई पार्टी, इस्लामिस्ट फेलिसिटी पार्टी, डेमोक्रेट पार्टी, देवा और फ्यूचर पार्टी) ने एक साथ आने का फैसला लिया है और केमाल किलिचदारोलू को अपना प्रत्याशी बनाया है। छह पार्टियों के इस गठबंधन को 'टेबल ऑफ सिक्स' का नाम दिया गया है। 'टेबल ऑफ सिक्स' राष्ट्रपति एर्दोगन द्वारा बनाई गई राष्ट्रपति प्रणाली को बदलने के लिए इकट्ठा हुए हैं। इस प्रणाली को बदलने के लिए उन्हें जनमत संग्रह के प्रस्ताव लाने के लिए तुर्किये के 600 सांसदों में से 400 या 360 सांसदों को अपने पक्ष में करना होगा या फिर चुनाव में इतनी सीटें लानी होगी।

क्या है तुर्किये में चुनाव प्रक्रिया?

तुर्किये के लोग राष्ट्रपति चुनने के अलावा देश के सांसद चुनने के लिए मतदान करते हैं। जर्मन बेवसाइट DW की रिपोर्ट के मुताबिक तुर्किये में 64.1 मिलियन पंजीकृत मतदाता हैं। जिसमें से 3.4 मिलियन विदेशों में रहते हैं जबकि 1.5 जर्मनी में रहते हैं। राष्ट्रपति पद के लिए जितने भी उम्मीदवार मैदान में होते हैं। उनमें से किसी भी एक उम्मीदवार को आधे से ज्यादा वोट मिलने पर वह सीधा राष्ट्रपति बन जाता है। यदि किसी को पचास प्रतिशत मत नहीं मिलते तो सबसे ज्यादा मत पाने वाले दो उम्मीदवारों के बीच फिर से सीधा मुकाबला होता है।

इसलिए इस बार भी तुर्किये में चुनाव के लिए दो तारीख तय की गई हैं। पहली तारीख 14 मई, 2013 को, जब राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे। यदि किसी भी उम्मीदवार को आधे से ज्यादा वोट मिल जाते हैं, तो वो विजेता माना जाएगा लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाया, तो फिर 28 मई, 2023 को दोबारा राष्ट्रपति का चुनाव कराये जाएंगे।

क्या कहता है ओपिनियन पोल?

इस बार तुर्किये में राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए जितने भी ओपिनियन पोल चल रहे हैं। उसमें राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन अपने प्रतिद्वंदी केमाल किलिचदारोलू से पिछड़ते दिख रहे हैं। रॉयटर्स ने पोलस्टर कोंडा द्वारा किए गये सर्वेक्षण को प्रकाशित करते हुए बताया है कि इस ओपिनियन पोल में एर्दोगन को 43.7% और उनके प्रतिद्वंदी केमाल को 49.3% समर्थन मिला है। बीबीसी की खबर के मुताबिक ओपिनियन पोल के नतीजों में एर्दोगन अपने प्रतिद्वंदी केमाल किलिचदारोलू से 10 अंकों से पीछे चल रहे हैं।

राष्ट्रपति पद के लिए ये हैं उम्मीदवार?

तुर्किये के राष्ट्रपति पद के लिए एर्दोगन के खिलाफ कई अन्य प्रत्याशी भी मैदान में हैं। एर्दोगन को चुनौती देने वाले केमाल किलिचदारोलू, मुहर्रम इन्स और सिनान ओगन हैं। यहां गौर करने वाली बात ये है कि राष्ट्रपति पद के लिए चार उम्मीदवारों में मुहर्रम इन्स ने बीते दिन अपना नाम वापस ले लिया है और उनके समर्थन वाली पार्टियां अब राष्ट्रपति पद के लिए केमाल किलिचदारोलू का समर्थन करेगी। इस तरह से अब सिर्फ तीन ही उम्मीदवार राष्ट्रपति चुनाव के लिए बच गये हैं।

मुहर्रम इन्स: 58 साल के इन्स के बारे में कहा जाता है कि वह राजनेता कम राजनीतिक विश्लेषक ज्यादा हैं। हालांकि, इन्स 2018 में रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति के उम्मीदवार थे। तब उन्होंने 30 प्रतिशत वोट हासिल किया था। लेकिन, इसके दो साल बाद मुहर्रम इन्स ने अपनी खुद की पार्टी, 'धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी होमलैंड पार्टी' की स्थापना की। वैसे उम्मीदारी से नाम वापस लेने के बाद कहा कि यह कदम देश हित के लिए उठाया है। वैसे उनकी होमलैंड पार्टी चुनाव (सांसद) में भाग लेगी।

सिनान ओगन: तुर्किये राष्ट्रपति चुनाव में खड़े होने वाले तीसरे उम्मीदवार हैं। सिनान की पहचान एक धार्मिक कट्टर नेता के रुप में है। हालांकि, राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के चांसेस सिनान के लिए बहुत ही कम है, इसके बावजूद वे मैदान में हैं। क्योंकि एर्दोगन के लिए 'वोटकटवा' का काम करेंगे। वैसे उन्हें अल्ट्रानेशनलिस्ट पार्टियों के गठबंधन का समर्थन प्राप्त है। बता दें कि 2011 में सिनान ने MHP पार्टी के टिकट पर संसद का चुनाव जीता था और 2015 में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था।

जानें कौन हैं केमाल 'गांधी'?

इस वक्त तुर्किये में सबसे ज्यादा चर्चा केमाल किलिचदारोलू की हो रही है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार केमाल किलिचदारोलू को वहां की जनता 'तुर्किये के गांधी' कहती है। क्योंकि वह महात्मा गांधी के चश्मे जैसा चश्मा पहनते हैं। साथ ही केमाल तुर्किये में लोगों के हक, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र की लड़ाई लड़ते हैं और लोगों के बीच उनकी छवि बहुत ही साफ है। 74 साल के केमाल एक पूर्व नौकरशाह हैं और उन्हें भ्रष्टाचारियों पर सख्त कार्रवाई करने के लिए जाना जाता रहा है। उनका एक उपनाम 'डेमोक्रेटिक अंकल' भी है। वह 2007 से धर्मनिरपेक्ष रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (सीएचपी) के अध्यक्ष हैं। यही वजह है कि राष्ट्रपति चुनाव में छह दलों के विपक्षी गठबंधन का वो प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

केमाल 'गांधी' की एक खासियत यह भी है कि वो एर्दोगन की तरह उग्र नहीं होते हैं। Brazil Posts English की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 में संसद में एक शख्स ने उनके चेहरे पर घूंसे मारे थे। इससे उनके गाल व आंख चोटिल हो गई थी लेकिन उन्होंने सहकर्मियों से संयम बरतने को कहा था। साल 2016 में उनके काफिले पर मिसाइल से और 2017 में IS ने बम से हमला किया था, तब भी उन्होंने इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी। साल 2019 में भी उन्हें मारने की कोशिश की गई थी।

सत्ता मिलने पर एर्दोगन ने की तानाशाही

69 साल के एर्दोगन ने 1994 में ही अपनी राजनीति शुरू कर दी थी, जब वो पहली बार इंस्ताबुल के मेयर चुने गये थे। इसके बाद 2001 में अपनी नरमपंथी इस्लामिक जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (AKP) की स्थापना की और एक साल बाद इसे चुनावों में जीत दिलाई। फिर 2002 में प्रधानमंत्री बनने के बाद एर्दोगन ने 2007 और 2011 के चुनाव भी अपने दम पर जीते। साल 2014 में एर्दोगन ने पार्टी प्रमुख का पद छोड़ा और राष्ट्रपति बन गये।

इसके बाद संवैधानिक सुधारों के जरिये देश में नयी व्यवस्था लागू की, जनमतसंग्रह कराया और देश में राष्ट्रपति शासन प्रणाली की नींव डाली। इसके तहत तुर्की में राष्ट्रपति को संसद नहीं सीधे जनता चुनेगी और उसी के हाथ में कार्यपालिका और सेना की शक्ति होगी। प्रधानमंत्री का पद खत्म कर दिया गया और कुल मिला कर देश का शासन पूरी तरह से एक आदमी के हाथ में यानि राष्ट्रपति के पास आ गया। फिलहाल यह ताकत एर्दोगन के पास है।

पूरी दुनिया की है तुर्किये पर नजर

तुर्किये में होने वाले चुनाव को लेकर पूरी दुनिया पर असर पड़ सकता है। क्योंकि अपने 20 साल के शासन के दौरान एर्दोगन ने इस्लाम के नाम पर खुद को दुनिया के सामने सऊदी शासक से बड़ा खलीफा साबित करने की कोशिश की। इसके अलावा पश्चिमी देशों के साथ-साथ अमेरिका से भी संबंध तनावपूर्ण किये है।

'द गार्जियन' की रिपोर्ट के मुताबिक केमाल किलिचदारोलू ने एक रैली में भाषण के दौरान ऐलान किया था कि अगर उनकी जीत हुई तो वह सीरिया से अपनी फौजों को वापस बुलाएंगे और सीरिया की सरकार से बैठकर बातचीत करेंगे। साथ ही कहा कि सीरिया से आए शरणार्थियों को अगले दो साल में वापस भेजा जाएगा। तुर्किये द्वारा अमेरिका, नाटो और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ अपने संबंधों को फिर से सामान्य करने की दिशा में काम किया जाएगा।

तुर्की का संविधान बदलना चाहता हैं एर्दोगन?

28 अक्टूबर, 2022 में राष्ट्रपति एर्दोगन ने राजधानी अंकारा में एक भाषण दिया था। तब एर्दोगन ने 'तुर्किये का विजन शताब्दी' घोषित किया यानि कि अगले दशक का विजन पेश किया था। उन्होंने कहा कि देश की 100वीं वर्षगांठ पर 'तुर्की की सदी' शुरू होगी। हम 100वीं वर्षगांठ को नए युग का टर्निंग पॉउंट बनाना चाहते हैं, जिससे देश की राजनीति, कार्यप्रणाली और परिणामों में बदलाव आएगा। साथ ही कहा कि नया संविधान 'कानून का शासन, बहुलवाद और समानता' को मजबूत करेगा।

Turkey Election: क्या तुर्की के आधुनिक 'गांधी' बन पाएंगे अगले राष्ट्रपति? अर्दोआन पहली बार चुनाव में पिछड़ेTurkey Election: क्या तुर्की के आधुनिक 'गांधी' बन पाएंगे अगले राष्ट्रपति? अर्दोआन पहली बार चुनाव में पिछड़े

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English summary
turkey elections 2023 challenges for Recep Tayyip Erdogan in last 20 years
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