Shaheed Diwas: भगत सिंह के प्रेरणादायक विचार आज भी भरते हैं रगों में जोश

नई दिल्ली। 23 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी को अपनी वरमाला बनाने वाले शहीद भगत सिंह की हर बात निराली थी। मौत को महबूबा और आजादी को अपनी दुल्हन कहने वाले भगत सिंह के विचार हमेशा दूसरों से काफी अलग रहे, उनके विचारों में ही उनकी सोच झलकती थी, जिन्हें आज भी पढ़ने पर रग-रग मे जोश बढ़ जाता है।
कहा जाता है कि जब फांसी पर भगत सिंह अपने दोनों साथियों संग लटकने जा रहे थे तो तीनों निम्नलिखित गाना गा रहे थे..
- मेरा रंग दे बसंती चोला,
- माही रंग दे,
- मेरा रंग दे बसंती चोला,
- मेरा रंग दे बसंती चोला।

'यदि बहरों को सुनना है तो आवाज को बहुत जोरदार होना होगा'
यदि बहरों को सुनना है तो आवाज को बहुत जोरदार होना होगा, जब हमने बम गिराया तो हमारा धेय्य किसी को मरना नही था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था।अंग्रेजी को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आजाद करना चाहिए।

'कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाये जाते हैं'
जिंदगी तो अपने दम पर ही जी जाती है....
दुसरो के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाये जाते हैं।

यह बस और पिस्तौल का पंथ नहीं
जरूरी नहीं थी की क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो,
यह बस और पिस्तौल का पंथ नहीं था।

'क्रांति' शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए
किसी को 'क्रांति' शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए, जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते हैं।

मैं एक ऐसा पागल हूं ...
- राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है,
- मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद हैं।