क्या पाकिस्तान को सिर्फ गरियाता रहेगा भारत?
हाल ही में अबू जुंदाल की गिरफ्तारी ने भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक बार फिर दारार डाल दी। रिश्तों में तब और खटास आ गई, जब पता चला कि 26/11 हमलों के वक्त जुंदाल कराची स्थित कंट्रोल रूम में मौजूद था। यही नहीं आईएसआई का हाथ होने की भी बात जुंदाल ने कबूली है। इन सब बातों के बाद एक बार फिर भारत ने पाक को खरीखोटी सुनानी शुरू कर दी है। सच पूछिए तो हर बार भारत के पास पाकिस्तान को खरीखोटी सुनाने के अलावा कुछ नहीं होता है।
इसमें कोई शक नहीं है कि जुंदाल की गिरफ्तारी भारतीय खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा एंजेंसियों की बड़ी सफलता है। कसाब और डेविड हेडली के बाद इसकी गिरफ्तारी वाकई में एक खुशी की बात है। क्या ऐसा नहीं लगता है कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिये विदेशी मदद पर हम कुछ ज्यादा ही निर्भर हैं। बजाये इसके कि कोई ऐक्शन हो, हर बार भारत पाकिस्तान को कोसना शुरू कर देता है।
भारत में इस्लामी आतंकवाद
इस्लामी आतंकवाद भारत के लिए एक चिंताजनक विषय है। वो भी तब और जब इसकी जड़ें खुद भारत के अंदर तक फैली हुई हों। इंडियन मुजाहिदीन और सिमी जैसे आतंकी संगठनों ने देश में कई घातक आतंकी हमलों को अंजाम दिया है। जयपुर, बैंगलोर, दिल्ली, वाराणसी और मुंबई में आईएम का हाथ होना साफ संकेत देता है कि भारत में इसकी जड़ें बहुत मजबूत हैं। रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि आईएम के लड़ाके पाकिस्तान में जाकर आतंक की ट्रेनिंग लेते हैं। और तो और इनके तार पाकिस्तान में स्थित संगठनों से जुड़े हुए हैं।
सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारण
भारत में इस्लामी आतंकवादियों के गढ़ होने के कई कारण हैं। सामाजिक कारणों की बात करें तो सामाजिक और सांप्रदायिक असमानता प्रमुख हैं। सादिक इसरार शेख, अब्दुल सुभान कुरैशी और रियाज इस्माइल शाहबंदरी जैसे लोगों ने इन्हीं कारणों से आईएम को पैदा किया और पाल पोस कर बड़ा किया। बाबरी मस्जिद कांड के बाद से सिमी जैसे संगठनों ने बयान दिया कि "इस्लाम हमारा राष्ट्र है, भारत नहीं", 2002 में गुजरात दंगों में जिस तरह मुसलमानों को कुचला गया, वह इस्लामी आतंकवाद की आग को हवा देने में पर्याप्त था।
कश्मीर मुद्दा
भारत में आतंकवाद की कहानी कश्मीर के बिना अधूरी है। हाजरों लोगों ने कश्मीर में अपनी जानें गवा दीं। ऐसे में जो लोग लापता हुए, उनके बारे मं भारतीय सरकार ने यह कह दिया कि वे सभी पाकिस्तान चले गये। यही नहीं भारत सरकार ने कहा कि यहां से पाकिस्तान गये लोगों ने पड़ोसी मुल्क में जाकर आतंकवाद की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दी। भारतीय सेना के कई अभियानों में भारतीयों की भी कब्रें बनीं, जिस वजह से भारतीयों के अंदर अपने ही देश के प्रति नफरत भर गई। सबसे अहम बात यह है कि भारत विरोधी तत्वों का इस्लामा बाद में हमेशा से खुल कर स्वागत हुआ।
ये कैसा सेक्युलरिज्म
भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने में राजनीति का भी बड़ा हाथ है। कई पार्टियां ऐसी हैं जो अल्पसंख्यकों का वोटबैंक पाने के लिये नये-नये पैंतरे आजमाते हैं। यूपी की सपा सरकार को ही ले लीजिये। सपा सरकार चाहती है कि हरकत-उल-जेहाद-अल-इस्लामी (हूजी) के आतंकी तारिक काज़मी और खालिद मुजाहिद के खिलाफ चल रहे मुकदमों को वापस लेने के लिये विधि सलाह लेना चाहती है। ये वो आतंकी हैं, जिन पर लखनऊ और फैजाबाद के कोर्ट परिसरों में बम धमाके करने के आरोप हैं।
सपा सरकार हमेशा से अल्पसंख्यकों या मुसलमानों की हिमायती रही है, इसलिए उनकी वाह-वाही लूटने के लिये वो इस प्रकार के पैंतरे आजमाना चाहती है। जबकि सच पूछिए तो यह एक गंभीर मुद्दा है, कि जब तक किसी व्यक्ति पर आतंकवाद फैलाने के मामले चल रहे हों, तब तक उसकी हिमायत आप कैसे कर सकते हैं।
कमजोर पहलू
भारत पिछले कई दशकों से आतंकवाद के खिलाफ जंग लड़ रहा है, लेकिन कोई बड़ी सफलता नहीं मिली, बल्कि बदले में 26/11 जैसा काला दिन देखने को मिला। सोचने वाली बात यह है कि असली कदम इसी हमले के बाद उठाये गये। फिर भी अभी तक भारतीय कानून आतंक का सफाया करने में पूरी तरह सक्षम नहीं है। देश में आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने पर बड़ी-बड़ी धारायें लगायी जाती हैं, लेकिन ऐक्शन नहीं। फैसला आते-आते सालों बीत जाते हैं। देश में नेशनल काउंटर टेरेरिज़्म सेंटर (एनसीटीसी) स्थापित करने की बात आयी तो उस पर राजनीति शुरू हो गई। देश के किसी भी शहर में अगर अचानक आतंकी हमला हो जाये, तो सबसे पहले उनका सामना पुलिस फोर्स से होगा, सेना या एनएसजी के कमांडो तो बाद में आयेंगे। अफसोस की बात यह है कि हमारी पुलिस के पास आज भी 303 की राइफलें हैं, जिनके बल पर वो एके-47 और ग्रेनेड से लैस आतंकियों से लड़ते हैं।
एक और कमजोर पहलू हमारे देश की विदेश नीति है। अफ्गानिसतान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से लगातार घुसपैठ हो रही है, लेकिन भारत अपने पड़ोसी देशों के खिलाफ ऐक्शन लेने में कतराता रहता है।
ऐसा क्यों नहीं होता?
- राजनीतिक पार्टियां आतंकवाद पर राजनीति बंद क्यों नहीं करतीं?
- भाजपा जैसी पार्टियां भगवा आतंकियों की पेशियों में मदद क्यों नहीं करतीं?
-
सरकार
राष्ट्रीय
सुरक्षा
में
अमेरिका
जैसे
प्रबंध
क्यों
नहीं
करती?
26/11
को
आतंकवादी
कराची
से
मुंबई
तक
समुद्री
रास्ते
से
आ
गये,
इससे
साफ
है
कि
हमारी
कोस्टल
सिक्योरिटी
कितनी
कमजोर
है।
- उन आतंकी संगठनों के खिलाफ त्वरित और मजबूत ऐक्शन क्यों नहीं लिया जाता जो रोज-रोज हमें धमाकते रहते हैं?
- कसाब जैसे आतंकियों पर फैसला लेने में इतनी देर क्यों लगायी जाती है?
- देश के तमाम जेलों में बंद आतंकवादियों का पालन-पोषण किस लिये किया जा रहा है?
क्या हमारी सरकार कभी इन सवालों के जवाब ढूंढ़ेगी या फिर हर बार सिर्फ पाकिस्तान को खोसती रहेगी?